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Writer's pictureManoj Kujur

डॉ. करमा उरांव के विचारों, संघर्षों और समर्पण की एक महान यात्रा

डॉ. करमा उरांव के विचारों, संघर्षों और समर्पण की एक महान यात्रा रही है। उनकी यह यात्रा और विचार, आज की युवा पीढ़ी के लिए हमेशा ही प्रेरणास्रोत साबित होंगे। ताकि वे अपने समाज के विकास और संरक्षा में सक्रिय भूमिका निभा सकें। उन्होंने अपने पूरे जीवन में आदिवासी समाज की रक्षा और उनके अधिकारों के पक्ष में लड़ाई लड़ी है। उन्होंने जल, जंगल, जमीन की संरक्षा के महत्व को समझाया और आदिवासी समुदाय की पहचान को जमीन से जोड़ा है।

सभा को संबोधित करते डॉ. करमा उरांव

डॉ. करमा उरांव का जन्म गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड, अंतर्गत लोंगा महुआ टोली गांव में 1951 ई. में हुआ था। वे एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुए थे, उनके परिवार का संबंध व्यापार और कृषि से रहा है एवं उनका बचपन गरीबी में बिता। लेकिन उन्होंने अपने बचपन से ही बहुत मेहनत कर विभिन्न परिस्थितियों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया और रांची विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और डीन के पद तक पहुंचे। डॉ. करमा उरांव ने अपनी प्राथमिक शिक्षा बिशुनपुर से पूरी की और उसके बाद रांची कॉलेज रांची (वर्तमान में डॉ. स्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची) से समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने अपनी पीजी (पीएचडी) की डिग्री भी रांची विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग से प्राप्त की।


डॉ. करमा उरांव ने अपने जीवन में सामाजिक कार्यों में अग्रिणी भूमिका निभाई है। वे आदिवासी समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत और शुभचिंतक रहे हैं। उन्होंने समाज के उत्थान और आदिवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए कई कदम उठाए हैं। डॉ. उरांव की आपातकालीन मदद, उनके विचारधारा और आदिवासी समुदाय के मुद्दों पर उनका ध्यान केंद्रित करने का समर्पण आदिवासी समाज के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना। उन्होंने आदिवासी समाज के धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज और भेषभूषा का प्रतिनिधित्व किया है और उनकी मदद से समाज को देश और विदेश में प्रतिष्ठिता मिली है। उन्होंने सरना धर्म और सरना धर्म कोड, सीएनटी एसपीटी एक्ट, स्थानीयता एवं नियोजन नीति जैसे झारखंड के अन्य ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बातों को मजबूती से रखा। आदिवासियों की आँधाधुंध ज़मीन लूट को लेकर अपनी आवाज़ बुलंद करते थे। झारखंड में डॉ. कर्मा उरांव की आदिवासी मूलवासी एकता के पक्षधर रहने और आदिवासी समाज की मुद्दों पर काम करने की प्रशंसा की जाती है। उन्होंने जल, जंगल, और जमीन की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी और लोगों को इसकी महत्ता को समझाने का प्रयास किया। वे सरकारी नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे और आदिवासी जमीन की लुट को रोकने के लिए संघर्षशील रहे है। उनका मानना था कि जमीन आदिवासी समाज की पहचान है और इसे सुरक्षित रखना आवश्यक है। उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना करके झारखण्ड की अस्मिता और संस्कृति की प्रशंसा और प्रमोट करने का प्रयास किया है। आदिवासी समाज के मुद्दों पर गहन चिंतन किया और उनके उत्थान के लिए प्रयास किए। उनकी अनुभवशाली विचारधारा और उद्दीपक दृष्टिकोण आदिवासी समाज को मार्गदर्शन प्रदान करने में मदद करती हैं।


उन्होंने अपनी विदेश यात्राओं के दौरान अन्य देशों में आदिवासी संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफॉर्मों पर आदिवासी समाज की मुद्दों पर जागरूकता फैलाई है। उन्होंने अपने व्याख्यानों और लेखों के माध्यम से आदिवासी समाज को आर्थिक, सामाजिक और राजनितिक विकास के मार्गदर्शन में मदद की है। वे अपने शोध कार्यों और लेखों के माध्यम से आदिवासी समाज की समस्याओं के समाधान पर ध्यान केंद्रित करते रहे हैं।


दिनांक 14/05/2023 को झारखंड के महान शिक्षाविद डॉ करमा उरांव के निधन की सूचना ने आदिवासी समाज और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित आदिवासी वर्ग को गहरे दुख के साथ रिक्तता आभास करा दिया। डॉ. उरांव ने अपने समाज के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनकी प्रतिष्ठा और अध्यात्मिकता आदिवासी समाज में गहरी थी। वे आदिवासी समुदायों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील थे और सामाजिक न्याय के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करते रहे।


झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई नेताओं ने उनके निधन को झारखंड के लिए अपूरणीय क्षति बताया है, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दुख जताते हुए कहा कि "शिक्षाविद, आदिवासी उत्थान के प्रति सजग रहने और चिंतन करने वाले करमा उरांव के निधन का दुखद समाचार मिला डॉक्टर करमा उरांव से कई विषयों पर मार्गदर्शन मिलता था उनके निधन से आज मुझे व्यक्तिगत क्षति हुई परमात्मा दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान कर शोकाकुल परिवार परिजनों को दुख की यह विकट घड़ी सहन करने की शक्ति दे।"

सभा में उपस्थित डॉ. करमा उरांव

डॉ. करमा उरांव एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री रहे हैं जिन्होंने अपने जीवन में आदिवासी समाज की महत्वपूर्ण समस्याओं के बारे में अध्ययन किया है। उन्होंने अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आदिवासी समुदायों के साथ मिलकर काम किया है।


डॉ. करमा उरांव को उनकी देश और विदेशों में अपने अनुभवों के लिए अनेक अवार्ड और सम्मान से नवाजा गया है। वे न्यायाधीशों, शिक्षकों, अधिकारियों, संस्थाओं और संगठनों को अध्यात्मिकता और संस्कृति की ओर ध्यान देने के लिए हमेशा प्रेरित करते थे। उन्होंने अपने अनुभवों और अध्ययनों के आधार पर विभिन्न अध्ययन कार्यक्रमों और संस्थाओं में भी अपनी भूमिका निभाई है।


मुझे आज भी याद है दिनांक 02/04/2023 को आदिवासी कॉलेज छात्रावास करम टोली में आयोजित बाबा करमा उरांव के साथ बैठक का वह क्षण, जहां आदिवासी शोध एवं सामाजिक सशक्तिकरण अभियान के तहत व्याख्यान एवं परिचर्चा में "उराँव समाज में पारंपरिक विवाह (बेंज्जा) एवं विवाह विच्छेद (बेंज्जा बिहोड़) और न्यायालय व्यवस्था में वर्तमान चुनौतियाँ" विषयक परिचर्चा में उन्होंने कहा था वर्तमान में मौजूदा पारंपरिक पड़हा व्यवस्था को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाना बहुत ही आवश्यक है। आदिवासी समाज के पड़हा व्यवस्था के अंतर्गत कार्यपालिका, राज पालिका, न्यायपालिका व्यवस्था को और भी मजबूत एवं सशक्त किए जाने की आवश्यकता को दोहराया था। उन्होंने लोगों से अपील करी थी कि वे अपने पूर्वजों की सम्पति एवं धारोहर को बचाएं।


उनके निधन से आदिवासी समाज को एक महान व्यक्ति की हानि हुई है जिनका समाज में महत्वपूर्ण योगदान है। वे सदैव समाज की सेवा में तत्पर रहते थे और अपने ज्ञान और समर्पण से आदिवासी समुदाय को सशक्त बनाने में मदद करते थे। डॉ. कर्मा उरांव जैसे विद्वान् की कमी समाज को महसूस होगी, लेकिन उनकी आत्मा और उनके आदिवासी विचारधारा एक प्रेरणास्रोत के रूप में हमेशा याद की जाएगी।



लेखक परिचय: मनोज कुजूर , ग्राम- करकरा, प्रखंड- मंडार, जिला- रांची के निवासी हैं। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड से लोक-साहित्य (folklore) में स्नातकोतर किए हैं। आदिवासी परंपरा, संस्कृति एवं भाषा में विषेश रुचि रखते हैं, साथ ही झारखंड के लोक साहित्य को, लोगों तक पहुंचाने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहते हैं।

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