संपादन:- मनोज कुजूर एवं पंकज बांकिरा
हजारों वर्ष पूर्व, झारखण्ड के दक्षिणी छोटानागपुर की प्रसिद्ध, ‘सात भाईयों और एक बहन’ की कहानी, पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे पूर्वजों के द्वारा नयी पीढ़ी को बताई जाती है। इस कड़ी में हमारे बुज़र्गों द्वारा यह कहानी मैं भी सुनता आ रहा हूं। जिसके अवशेष, आज भी छोटानागपुर की धरती पर मौजूद हैं। जो झारखण्ड राज्य के, राँची जिले में स्थित बुढ़मू प्रखण्ड के, गिंजो ठाकुरगाँव नामक गाँव में, ‘बिन्धु टोंगरी’ के नाम से काफी प्रसिद्ध है। सौभाग्यवश, मेरा पैतृक घर, वहाँ से 15-20 किलोमीटर की दूरी पर ही है। मुझे जब पता चला कि, मेरी दादी और दादाजी, जिस कहानी को सुनाया करते थे। उसके अवशेष आज भी मौजूद हैं। तब से, मुझे उक्त स्थल में जाने की तीव्र लालसा होने लगी थी। जब, मैं उस स्थान पर गया, तो एक बुजूर्ग (जिनका नाम मुन्नीलाल था) के द्वारा, मुझे पूरे बिन्धु टूंगरी का भ्रमण कराया गया और इस कहानी से सम्बन्धित सारे अवशेषों को दिखलाया गया एवं इस कहानी की संपूर्ण जानकारी विस्तार से बतलाई गई। उन्होंने, उस स्थान को भी दिखाया, जहां सातों भाइयों ने अपने-अपने तीर को धार प्रदान किया था और अपनी बहन पर तीर चलाया था।
जिस, केंद के वृक्ष पर, मचान बना कर, छोटी बहन को खड़ा किया था। और सातों भाइयों में, सबसे छोटा भाई, अपनी बहन का पका हुआ मांस को न खाकर, चोरी-छुपे से जिस टीला में मांस को डाला था। उस स्थान पर उगे बांस को भी दिखाया। वह ‘बाँस बुदा’ आज भी उसी स्थान पर मौजूद है।
पानी लाने के लिए, जिस डाड़ी (छोटा कुआं) का प्रयोग हुआ था। वह डाड़ी आज भी है। जिसका, वर्तमान समय में सौंदर्यीकरण कर दिया गया है।
यह सतयुगी कहानी इस प्रकार है
एक राजा के सात बेटे और एक बेटी थी। जो, खुशी-खुशी अपना जीवन बिता रहे थे। सात भाई-बहनों में, एकलौती छोटी बहन बहुत ही शांत स्वभाव, आज्ञाकारी एवं संस्कारी थी। उनमें, सबसे बड़े भाई का विवाह हो चुका था। सातों भाइयों में, सबसे छोटा भाई, एक आंख से अंधा था। छोटे भाई के दिल में, अपनी इकलौती बहन के लिए बड़ा प्यार एवं लगाव था। एक दिन, बड़े राजकुमार अपनी पत्नी और अपने छोटे भाइयों को साथ लेकर, अपने खेतों में काम करने चले गए। चूंकि, उस जमाने में खेती-बाड़ी आपसी सहयोग से हुआ करते थे। सभी लोग, खेतों में काम करने जाने से पहले, अपनी छोटी बहन को खाना बनाने का आदेश देकर घर से निकलते हैं।
सातों राजकुमार की बहन, अकेले घर पर खुशी-खुशी सबके लिए खाना बनाने के लिए, जंगल से सरौटी साग को तोड़ कर लाती है और बड़े प्यार से सरौटी साग की सब्जी बनाने से पहले, बैठी (सब्जी/फल आदि काटने का औजार) से साग को काटने लगती है। इसी दौरान, वह अपनी उंगली भी काट बैठती है और रक्त की एक तेज धार निकलने लगती है। जिससे, उसका पूरा हाथ खून-खून हो जाता है। तब, राजकुमारी सोचने लगती है कि, क्या करूं? अगर, घर के दीवार में, खून को पोंछूंगी तो भैया लोग देख लेंगे और चिंता करेंगे। और यदि, अपने कपड़े में पोंछूंगी, तो भाभी खून लगा कपड़ा देखकर (माहवारी समझ), खाना नहीं खाएंगी। राजकुमारी इस डर से, सब्जी पकाने वाले 'छाता साग' में, सारा खून को पोंछकर, खून को बहने से रोकती है। फिर, इसी खून लगे साग को सब्जी बनाती है।
जब उसके सारे भाई और भाभी अपने खेतों से लौटते हैं। तो छोटी बहन हमेशा की तरह, सभी के लिए, साफ थाली में खाना और मिट्टी के लोटे में, पीने के लिए पानी देती है। और सभी एक साथ खाना खाते हैं, और पके हुए साग को खाकर, खाने की जमकर तारीफ करते हैं। और वे सब, अपनी बहन से पूछते हैं कि, बहन तुम्हारे द्वारा बनाया हुआ, यह साग बहुत बार खाए हैं। परंतु, आज की बनी सब्जी का स्वाद, बहुत ही अद्भुत लगा। बताओ ना! कैसे और क्या-क्या मिलाकर, इतना स्वादिष्ट सब्ज़ी बनाई हो? पहले तो राजकुमारी, डर से सहम गई कि, कहीं भाइयों को पता न चल जाए कि, मेरे हाथ की उंगली कट गई है। फिर, वह थोड़ा सोचकर बोलती है कि, कुछ नहीं भैया, जैसा हमेशा की तरह सब्जी पकाती हूं, वैसे ही तो बनाई हूं।
राजकुमारी, अगले दिन, सातों भाइयों के अनुरोध पर, फिर से एक बार, वही ‘छाता साग’ की सब्जी बनाती है। परन्तु, भाइयों को पिछले दिन के जैसा स्वाद नहीं मिलता। फिर, ऐसा ही अनुरोध, तीन-चार बार हुआ। लेकिन, खून लगे साग का स्वाद, उनके मन-मस्तिष्क से उतर ही नहीं रहा था। असलियत जानने की जिज्ञासावश, सातों भाई और भाभी ने, उससे उस दिन के खाना बनाने का तरीका, जानने का जिद करने लगे। मजबूरन, राजकुमारी को सारी घटना बतानी पड़ी।
सच्चाई मालूम होने पर, पांचवां भाई, जो बहुत ही लालची किस्म का था। उसने, बाकि भाइयों से कहा कि, "बहन का खून इतना स्वादिष्ट लगा, तो इसका मांस कितना स्वादिष्ट होगा।" यह बोलकर, सभी भाइयों के बीच चर्चा करने लगता है। सबसे छोटे भाई को छोड़कर, बाकि भाइयों ने, राजकुमारी को मारकर, उसका मांस खाने को राजी हो गए थे। मांस खाने की सोच कर, उन सभी के मुंह से, लार टपकने लगता है। भाइयों के मन में, स्वादिष्ट खाना खाने के लिए, वे कितना लालची बन गए। इसका आभास, राजकुमारी को हो गया कि, किस प्रकार उसके भाई, उनकी मांस खाने की लालसा रखते हैं।
एक दिन, सातों भाई शिकार खेलने के बहाने, राजकुमारी को लेकर, घने जंगल में ले कर जाते हैं। जहां, पूर्व से निर्मित, चार केंद के वृक्षों पर बने, मचान के नीचे पहुंचते हैं। जिस पर, अपनी बहन को, यह झूठ बोल कर चढ़ने के लिए बोलते हैं कि, “इस मचान पर, जंगली जानवर, तुम पर हमला नहीं कर सकेंगे।” इस प्रकार, सातों भाई, अपनी बहन को मचान पर बैठा कर, अपना-अपना धनुष लेकर, शिकार करने का ढोंग करके, चले जाते हैं। तब, राजकुमारी को पूरा आभास हो चुका था कि, आज उसका आखरी दिन है। लेकिन, वह चाहती थी कि, उनके भाईयों की इच्छा पूर्ण हो। इसलिए भी, वह मचान में जा कर बैठ जाती है।
फिर, सभी भाई केंद के वृक्ष पर बने, मचान से कुछ दूरी पर स्थित, टोंगरी (छोटा पहाड़) पर, अपने-अपने धनुष-बाण के साथ पहुँचते हैं और एक चट्टान पर बारी-बारी से, अपने बाणों को तेज धार प्रदान करते हैं। टोंगरी के ऊपर, सबसे पहले, बड़ा भाई, अपने तीर को चट्टान में धार करता है और अपनी बहन पर धनुष से निशाना लगाकर, तीर छोड़ता है। तभी राजकुमारी, पूरी बातों को समझ जाती है कि, भाइयों का, क्या इरादा है? और अपनी मातृभाषा में, गीत को गाने लगती है, "बिंधू-बिंधू दादा, छाती ताईक-ताईक" अर्थात, जान से मारना ही है दादा साहब, तो तीर को सीधे मेरे छाती में, वार करो, इधर-उधर तीर क्यों चला रहे हो। फिर, सभी भाई, बारी-बारी से अपने तीर के धार को, तेज करते हैं और राजकुमारी पर निशाना लगाकर, तीरों को छोड़ते हैं। छहों भाइयों का निशाना खाली जाता है, और सातवां भाई, जो सबसे छोटा था, वह तीर चलाने से इनकार कर देता है। क्योंकि, उसे अपनी छोटी बहन से बहुत लगाव था। और धनुष-बाण चलाने में, सातों राजकुमार में सबसे निपुण था।
राजकुमारी जानती थी कि, उनके सातों भाइयों में, सबसे छोटा भाई (दादा) बाकियों की तरह लालची नहीं है। छहों भाई, छोटे भाई पर पूरा दबाव डालते हुए, आदेश देते हैं कि, अगर वह तीर नहीं चलाएगा, तो बहन की तरह, उसे भी मार देंगे। फिर, छोटा राजकुमार, उदास मन के साथ, तीर को थोड़ा ही धार कर, दूसरी दिशा में, तीर को छोड़ने की कोशिश करता है और तीर को धीरे से छोड़ता है। राजकुमारी, हर बार की तरह, इस बार भी वही गीत गाती है, "बिंधू-बिंधू दादा, छाती ताईक-ताईक", इतने में, छोटे भाई का तीर, सीधे राजकुमारी के सीने को भेद देता है और राजकुमारी की आत्मा, शरीर से अलग हो जाती है। और उसकी आत्मा उसी स्थान पर भटकने लगती है। तभी, वह देखती है कि, उसके शरीर का मांस खाने के लिए, उसके भाई, कैसे लालच करते हैं और सबसे छोटे राजकुमार को, जबरदस्ती मारपीट कर, उसके शरीर को काटने का आदेश देते हैं।
बहन के मांस को पकाने के लिए, बहुत सारी सूखी लकड़ी लाने के लिए, छोटे राजकुमार को जंगल भेजा जाता है। छोटा भाई, जंगल में खोज-खोज कर, ढेर सारा लकड़ी जमा करता है। और सोचता है कि, कैसे इतना सारा लकड़ी को, ले जाऊंगा। दादा जो रस्सी दिए हैं, वो भी सात टुकड़ों में दिए हैं। उन्हें जोड़ने पर भी, यह रस्सी इन लकड़ियों को नहीं बांध पाएगा। देर होने के डर से, राजकुमार उदास होकर रोने लगता है और उसके आंखों से आंसू, धरती में गिरने लगता है। वह अपनी बहन को याद करके रो ही रहा होता है कि, तभी एक नाग देवता, वहां आते हैं। और पूछते हैं कि, “क्यों, रो रहे हो राजकुमार?” वह इधर-उधर देखता है। किन्तु, कोई भी नजर नहीं आता है। फिर, राजकुमार को नाग देवता दिखते हैं। और राजकुमार, नाग देवता को अपनी पूरी आपबीती सुनाते हैं। फिर, नाग देवता उसे कहते हैं कि, “मैं, लकड़ी में रस्सी की भांति लिपट जाता हूँ, और तुम जैसे ही लकड़ी वहां रखोगे, तो मैं धीरे से निकल जाऊँगा।” और राजकुमार ऐसा ही करते हैं। सभी बड़े भाई, यह देख कर चकित रह जाते हैं कि, कैसे उनका छोटा भाई, रस्सी के सात टुकड़े होने के बावजूद भी, जंगल से इतना सारा लड़की लेकर आता है। तत्पश्चात वे लोग, अपने छोटे भाई को, पानी लाने के लिए, एक घड़ा में सात छेद कर भेज देते हैं।
छोटा राजकुमार, पानी लाने के लिए, एक डाड़ी (छोटा कुआं) में जाता है और घड़े में पानी भरता है। परन्तु, उस में छेद होने के कारण, सारा पानी गिर जाता है। और राजकुमार वहीं बैठकर, सोच-सोच कर रोने लगता है कि, बिना पानी के वापस जाऊंगा, तो बड़े भैया लोग, मारपीट करेंगे। यह सारी घटना को, दाड़ी के मेंढक, केकड़ा और मछली सुन व देख रहे थे। और वे तीनों, राजकुमार को रोता देख कर, पूछते हैं कि, “क्यों, रो रहे हो?” फिर राजकुमार, उन्हें अपनी आपबीती को विस्तार से बतलाता है, और कहता है कि, “मैं, अपनी प्यारी बहन के शरीर का मांस, कैसे खा सकता हूं? नहीं खाऊंगा, तो बड़े भैया लोग, मारपीट करेंगे।” तब, मेंढक कहता है कि, “तुम परेशान मत हो, हम सब मेंढक, घड़ा के छेद में चिपक जाते हैं।” फिर, मछली और केकड़ा बोलते हैं कि, तुम हमें ले कर चलो, तुम्हारे भाई जब राजकुमारी के मांस को खाएंगे, तब तुम मछली को खाना, और जब वे हड्डी को खाएंगे, तब तुम केकड़ा को खाना, बड़े भाइयों को शक नहीं होगा। फिर, राजकुमार ने बिल्कुल वैसा ही किया, जैसे केकड़े और मछली ने कहा था। रात को, जब राजकुमारी का पका हुआ मांस खाने को परोसा गया, तब बड़े भाइयों से छुपा कर, वह मांस को, दीमक के टिलहे में डाल देता है। और समय बीतने पर, वहां बांस का एक बड़ा बुदा (झुंड़) उगता है।
इस घटना के वर्षों बाद, एक भीख मांगने वाला जोगी, उसी बांसौदा के पास से गुजर रहा था। और वह, सुन्दर-सुन्दर बांस के बुदा को देख कर सोचता है कि, अगर इतने सुंदर बांस से केन्दरा (वाद्य यंत्र) बनाया जाए, तो कितना सुरीला धुन निकलेगा। उसी क्षण बांस से आवाज आती है, "ना काट-काट रे जोगी, ई तो लागे भैया रोपल बांस", जोगी फिर भी बांस को काटता है। जोगी, इसी उद्देश्य से एक मोटा बांस का टुकड़ा, काट कर ले जाता है कि, इस बांस का आवाज इतना सुंदर है, यदि केन्दरा बनाएंगे, तो कितना मधुर आवाज निकलेगा। और जोगी, इस बांस से एक सुंदर केन्दरा का निर्माण करता है। इस केन्दरा से, इतनी मधुर ध्वनि निकलती है कि, जोगी जहां-जहां भी इसे बजाता है, इसके ध्वनि से लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे।
एक दिन, जोगी घूमते-घूमते बड़े राजकुमार के घर पहुंचता है। और अधिक धन के लालच में, जोगी जोर-जोर से केंदरा बजाना शुरू करता है। परन्तु, इस बार केंदरा का मीठा सुरीला स्वर, कर्कश हो जाता है। और जब भी जोगी कुछ नया धुन बजाने की कोशिश करता है, बार-बार एक ही धुन निकलता है, "ना बाज ना बाज रे केंद्रा, ई तो लगो मोर दुश्मन कर घर"। बार-बार यही धुन निकलने पर, बड़ा राजकुमार, मारपीट कर जोगी को अपने घर से भगा देता है। ऐसे ही घूमते-घूमते, जोगी हर भाई के घर जाता है। लेकिन, हर बार की भांति, वही धुन "ना बाज ना बाज रे केंद्रा, ई तो लगो मोर दुश्मन कर घर" बजाता है। यह धुन सुन, सारे भाई जोगी को डांट-डपट कर भगा देते हैं।
सबसे अंत में, जोगी छोटे राजकुमार के घर पहुंचता है। छोटे भाई के घर के आंगन में, प्रवेश करते ही केंदरा खुद ही बजने लगता है, "जोर जोर से बाज रे केंदरा, ई तो लगो मोर छोट भईया कर घर"। बड़ा ही मधुर, मीठे स्वर का धुन सुन कर, छोटा राजकुमार, ‘चंद्राकर’ मोहित हो जाता है। और यह धुन सुन कर, छोटे राजकुमार से रहा नहीं गया और जोगी से, केंदरा की, मुंह मांगी सोने की मोहरें दे कर, उसे खरीद लेता है। तथा जोगी को अच्छे से मेहमान नवाजी कर, अच्छे से बिदा कर दिया जाता है।
धीरे-धीरे समय बीतता है और छोटे राजकुमार अपने काम से, कुछ दिनों के लिए बाहर जाते हैं। जब वह वापस लौटता है, तो देखता है कि, उसका कमरा बहुत सुंदर ढंग से सजा हुआ है, और घर के सारे बर्तन, अच्छे तरीके से रखे हुए हैं। तब, छोटा राजकुमार सोचता है कि, हमेशा मेरे कमरे की साफ-सफाई, घर के नौकर करते हैं। लेकिन, कभी भी इतना सुंदर सजाया नहीं गया है। फिर, राजकुमार अपने नौकरों से पूछताछ करते हैं कि, मेरे कमरे को, इतना सुंदर किसने सजाया है? नौकरों के मना करने पर, राजकुमार सोचते हैं, शायद कोई भाभी आई होगी और मेरे कमरे को सजा कर गई होगी। जब भी राजकुमार घर से बाहर काम के लिए जाते। यही घटना, हर बार देखने को मिलती और लगातार होने के कारण, राजकुमार के मन में, जानने की जिज्ञासा उमड़ने लगी कि, आखिर मेरे घर को इतने सुंदर ढंग से कौन सजावट करता है? वह अपने भाइयों तथा भाभियों से भी पूछता है। और वे लोग भी, सजावट करने की बात से साफ मना कर देते हैं।
एक दिन, राजकुमार सच्चाई पता लगाने के लिए, किसी काम का बहाना कर, बाहर जा रहे हैं बोलकर निकलते हैं। और छुप कर पुनः वापस आ कर, अपने कमरे में रखे खजूर के गोल, मोड़े हुआ चटाई के अंदर छुप जाते हैं। कुछ समय इंतजार के बाद, राजकुमार देखते हैं कि, एक खूबसूरत सी लड़की, केन्दरा से निकल कर, कमरे के अंदर आती है और सारे कमरे की साफ-साफाई कर, वापस उसी केंदरा में समा जाती है। यह देख, राजकुमार की आँखे, खुली की खुली रह जाती है। चूँकि, उस लड़की की शक्ल राजकुमार की छोटी बहन के जैसी ही होती है। राजकुमार अगले दिन, फिर से एक बार उसी प्रकार छुप जाते हैं और जैसे ही वह सुंदर लड़की पूरे कमरे की साफ-सफाई का काम खत्म कर, वापस केन्दरा में जाने वाली होती है, तब छोटे राजकुमार उस लड़की का हाथ पकड़ लेते हैं और तुरंत केन्दरा को जला देते हैं। जिसके बाद, वह लड़की हमेशा के लिए, मानव रूप में परिवर्तित हो जाती है। और दोनों भाई-बहन, खुशी-खुशी अपना जीवन जीते हैं। आज भी हर गाँव में, आसारी पुजा के दिन बकरा कटता है और पुरे गाँव के घरो में, प्रसाद स्वरूप बकरा का माँस खाया जाता है। और सतबैनी नामक पुजा स्थान पर, वहीं सरौटी साग को चढ़ाया जाता है।
लेखक परिचय: मनोज उरांव, रांची जिला के, ओरमांझी प्रखंड के, ग्राम बुंडू के निवासी हैं। वे रांची यूनिवर्सिटी से भूगोल में, स्नातकोतर किए हैं। और वर्तमान में आदिवासी संस्कृति एवं भाषा को बचाने के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं।