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Writer's pictureNitesh Kr. Mahto

हिडमे मरकाम को किया गया रिहा, पुलिस नहीं कर पाई आरोपों को साबित

बस्तर, घने जंगलों से आच्छादित छत्तीसगढ़ राज्य का बड़ा संभाग जिसकी 70 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है, इस पूरे क्षेत्र में गोंड, मारिया, भतरा, मुरिया, हल्बा, धुरुवा जैसे कई जनजातियां रहती हैं। यह क्षेत्र ओड़िशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के सीमाओं से सटी हुई है। परंतु क्या यह क्षेत्र अपने खूबसूरत झरनों, पहाड़ों, और आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है? नहीं, बस्तर विख्यात है नक्सली घटनाओं, पुलिस अत्याचारों, आदिवासी आंदोलनों के वजहों से। जैसे ही आप बस्तर संभाग में घुसते हैं प्रत्येक चार से पांच किलोमीटर पर आपको पुलिस/ CRPF के कैंप देखने को मिलेंगे। दूर गांवों और जंगलों तक में बड़ी-बड़ी छावनियां बनी हुई हैं।

गलत तरीके से गांवों में बनाए जा रहे पुलिस कैंप और गलत तरीके से इस क्षेत्र में किए जा रहे खननों के विरोध में यहां के आदिवासी कई सालों से विरोध कर रहे हैं। परंतु जैसा की हमेशा होता आया है, जब भी सत्ता के खिलाफ़ विरोध हुआ है या सवाल उठाए गए हैं। सत्ताधारियों ने अलग-अलग दांव पेंच लगाकर उन विरोध के स्वरों को बंद करने का प्रयास किए हैं। यहां के आदिवासी आंदोलनकारियों पर निराधार केस लगाकर, उन्हें नक्सली तथा क्रिमिनल बताकर जेल में बंद कर दिया जाता है, वो भी बिना किसी सबूत के।


हिडमे मरकाम के साथ भी यही हुआ, क्योंकि वे गांवों में गलत तरीके से पुलिस कैंप बनाकर आदिवासियों पर हो रहे अन्याय का विरोध कर रहीं थीं, क्योंकि वे अवैध तरीकों से हो रहे खनन का विरोध कर रहीं थीं, क्योंकि वे आदिवासियों के वन अधिकार और जेल में गलत तरीके से बंद आदिवासियों के अधिकार की बात कर रहीं थीं। इसीलिए उन्हें 9 मार्च 2021 को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में हो रहे भरी सभा के बीच से अर्ध सैनिक बलों और लोकल पुलिस द्वारा उठा लिया गया और जेल में बंद कर दिया गया।


वह सभा भी 18 वर्षीय पंडे कवासी के मृत्यु के विरोध में बुलाई गई थी। पंडे कवासी की मृत्यु पुलिस कस्टडी में हुई थी जिसे बाद में आत्महत्या बतलाया गया।

हिडमे मरकाम, फ़ोटो स्रोत:- Survival International

हिडमे मरकाम को पुलिस द्वारा एक लाख का ईनामी नक्सली बताया गया और नक्सली गतिविधियों में शामिल होने तथा हिंसा और हत्या करने जैसे पांच FIR उन पर दर्ज किए गए थे। उन पर UAPA यानी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत भी केस दर्ज़ किया गया। परंतु लगभग 2 सालों तक जेल में रखने के बाद पुलिस, हिडमे मरकाम के खिलाफ़ लगाए गए आरोपों को साबित करने में असफल रही और पांच में से चार दर्ज़ केसों से बरी कर दिया गया एवं एक केस पर उन्हें पहले ही जमानत दिया गया था। 5 जनवरी की शाम को उन्हें जगदलपुर जेल से रिहा किया गया। उनके वकील क्षितिज डूबे द्वारा The Wire को बताया गया कि बचा हुआ एक केस भी कुछ ही दिनों में खत्म हो जायेगा।


अरेस्ट होने से पहले तक हिडमे मरकाम सोनी सोरी जैसे कई आदिवासी आधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले लोगों के साथ करीबी से काम कर थी। जेल बंदी रिहाई मंच में उनका अहम योगदान रहा है, जिसके जरिए वो जेल में गलत आरोप में बेवजह बंद किए व्यक्तियों के अधिकारों के लिए लड़ रही थी।


Survival International के लिए बनाए गए एक वीडियो में वे आदिवासी महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है इसके बारे में बताती हैं: "उन्हें हर दिन मारा जा रहा है, उन्हें हर दिन जेल में डाला जा रहा है। हमारी महिलाएं जहां भी जाती हैं, एक ही तरह का दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। आगे बढ़ने का एकमात्र संभव तरीका है सभी महिलाओं का एकजुट होना, हमारे जल जंगल और जमीन को बचाने के लिए - उन्हें खनन से बचाने के लिए।"


हिडमे मरकाम के गलत गिरफ्तारी के विरोध में अनेक आदिवासी संगठनों, कार्यकर्ताओं और कई मानवाधिकार संगठनों द्वारा आवाज़ उठाया गया था। संयुक्त राष्ट्र के सात विशेषज्ञों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनकी तत्काल रिहाई की मांग की थी। इसी मुद्दे पर Survival International, Hindus for Human Rights, Civil Watch International जैसे अन्य संगठनों के सहयोग से आदिवासी लाइव्स मैटर द्वारा एक प्रेस कांफ्रेंस का संचालन भी किया गया था।


यह एक खुशखबरी है कि हिडमे मरकाम को रिहा कर दिया गया, परंतु यह दुःखद है कि पुलिस एवं सरकार द्वारा झूठे आरोप लगाकर आदिवासियों के हक़ के लिए लड़ने वाले लोगों को गिरफ़्तार किया जाता है। इससे पहले 15 जुलाई को सुकमा के 121 निर्दोष आदिवासियों को आरोप साबित नहीं होने के कारण रिहा कर दिया गया था। परंतु 5 सालों तक उन्हें जेल में बेवजह रखा गया था।


हिड़मे मरकाम, सोनी सोरी जैसे आदिवासी आधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं को पुलिस द्वारा बेवजह अत्याचार करके उनकी आवाज़ को दबाने का प्रयास किया जाता है। उम्मीद है हिड़मे की तरह बिना आरोप में बंद किए गए अन्य आदिवासियों को जल्द रिहा किया जाएगा।

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