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Writer's pictureTara Sorthey

वह क्या है जो किसी व्यक्ति को आदिवासी बनाता है?

Updated: Sep 14, 2021

हमारे भारतवर्ष में विभिन्न धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं और उन्हें उनकी संस्कृति, परंपरा, वेशभूषा से पहचानते हैं। लेकिन इस बदलते समय के अनुसार लोगों की वेशभूषा भी बदलने लगी है। उनके हाव-भाव, बोलचाल बदलने लगे हैं। किसी कारणवश लोगों में धर्म परिवर्तन जैसी भावनाएं आने लगी हैं, जो लोगों के पारंपरिक धर्म के विरुद्ध माना जाता है। धर्म परिवर्तन होने पर धीरे-धीरे लोगों के अपने पारंपरिक समाज की जनसंख्या कम होने लगी है। सभी वर्ग के लोगों में अपने धर्म को बचाने के लिए विभिन्न प्रयास कर रहे हैं।


भारत की जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत हिस्सा आदिवासियों का है। हमारे देश के सभी राज्यों में आदिवासी रहते हैं, लेकिन क्षेत्र के अनुसार उनकी बोली, रहन-सहन और वेशभूषा अलग-अलग होते हैं।

Photo: Ashish Birulee

आदिवासियों की पहचान, आदिवासी कौन हैं?


आदिवासी दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है, 'आदि' और 'वासी'। आदि का अर्थ होता है प्राचीन और वासी का अर्थ होता है निवासी। अर्थात पुराने समय से निवास करने वाले लोगों को आदिवासी कहा गया है।


आदिवासी और उनके जीवन-संस्कृति को जानने के लिए उनको उनकी नज़र से देखना होगा। आदिवासी किसी का अहित नहीं करते। वे स्वयं से पहले दूसरों के हित के बारे में सोचते हैं। आदिवासी मूल निवासी होते हैं, आदिवासी ही ऐसे समाजों में हैं, जिन्होंने अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाए रखा है।


आदिवासी को जनजाति भी कहा जाता है। इन जनजातियों के उपजाति भी होते हैं। वे प्राचीन काल से ही प्रकृति के प्रेमी और रक्षक रहे हैं। उन्होंने प्रकृति में उपस्थित जैव-विवधताओं और संसाधनों की सुरक्षा कर अपनी पहचान बनाई है। आदिवासियों ने कभी भी जीव-जंतुओं को इस प्रकार नुकसान नहीं पहुंचाया है कि उनकी आबादी पर ही संकट आ जाए। इसके परिणामस्वरूप आदिवासियों के आसपास जैव-विविधता सबसे अधिक सघन और सुरक्षित पाई जाती है। आदिवासी प्रकृति के विभिन्न अवयवों, जैसे पेड़-पौधे, नदी, पहाड़, सूरज-चाँद आदि को अपना भगवान मानते हैं। जिसकी वजह से प्रकृति के पेड़-पौधों को बेतरतीब काटने को वे अपराध समझते हैं। इसलिए वे दूसरों को भी पेड़-पौधों को काटने से रोकते हैं। प्राचीन काल से ही आदिवासी अपनी प्रकृति की सुरक्षा करते आ रहे हैं, फिर भी उन्होंने इस प्रकृति पर अपना हक नहीं जताया लेकिन कुछ ऐसी ताकते और लोग बाद में आए जिन्होंने प्रकृति में उपस्थित स्रोतों पर कब्जा किया और आदिवासियों को उनके हक से वंचित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।


जब भी आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन पर किसी बाहरी ताकतों ने कब्जा करने की कोशिश की है, आदिवासियों ने इनकी रक्षा के लिए अपना जी-जान लगा दि है। भारत मे अंग्रेजों के खिलाफ पहला आंदोलन भी आदिवासियों ने ही शुरू किया था।


आदिवासी जल, जंगल, जमीन की रक्षा करना अपना कर्तव्य मानते हैं। इनकी रक्षा में शहीद आदिवासियों के द्वारा किए गए कार्यों को भूलना नहीं चाहिए। समय-समय पर आदिवासियों ने अपने जल, जीव, जंगल को बचाने के लिए विभिन्न आंदोलन चलाए, विद्रोह किए हैं। आज भी जहाँ प्राकृतिक संसाधनों की लूट की कोशिश होती है, आदिवासी उसके खिलाफ आंदोलन करते दिखाई देते हैं।


संथाल विद्रोह, खारवाड़ विद्रोह, कोया विद्रोह और बहुत से ऐसे विद्रोह हैं, जो आदिवासियों द्वारा किया गया है। बस्तर जैसे क्षेत्र में आदिवासियों की जनसंख्या काफी अधिक है। बस्तर के आदिवासियों द्वारा खनन को लेकर आंदोलन किया गया। बीजापुर में भी आंदोलन किया गया। झारखंड के महानायक बिरसा मुंडा के बारे में आपने सुना ही होगा। उन्होंने आदिवासी समाज की रक्षा के लिए बहुत से प्रयत्न किए। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के कानूनों को मानने से इनकार किया और उनके खिलाफ विद्रोह किया। इसके साथ-साथ बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को अंधविश्वासों से दूर रहने को कहा। ऐसे मादक पदार्थों के सेवन करने पर रोक लगाया जिनकी वजह से स्वयं और दूसरों को नुकसान होता है।


आइए जाने कुछ आदिवासी वीर-वीरांगनाओं को जिन्होंने आदिवासियों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए हैं।


प्राचीन काल से ही आदिवासियों ने स्वयं को अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक बनाया है और अपने हक की लड़ाई लड़ी है। जैसे-जैसे समय बीतता गया कई क्रांतिकारी वीर महापुरुष और वीरांगनाएँ सामने आते गए, जिन्होंने आदिवासियों के हक की लड़ाई के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। आदिवासियों ने अपने समुदाय के उत्थान और प्रकृति के बचाव के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। रानी दुर्गावती, संकर शाह जैसे वीर हमारे भारत देश में जन्म लिए। शहीद रानी दुर्गावती गोंडवाना समाज से संबंधित थीं। उन्होंने बुलवाना समाज के उत्थान के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। कुछ समय व्यतीत होने के बाद डॉ खूबचंद बघेल जैसे वीर महापुरुषों का जन्म हुआ। उन्होंने आदिवासी किसानों के हक के लिए लड़ाई लड़ी और आदिवासियों के जमीनों से संबंधित कई महत्वपूर्ण कार्य किए। डॉ खूबचंद बघेल ने भारत छोड़ो आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण आंदोलन में हिस्सा लिया। अन्य क्रांतिकारियों के साथ उन्हें भी गिरफ्तार किया गया। डॉ खूबचंद बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ महासभा की स्थापना की गई। हमारे छत्तीसगढ़ राज्य में भी कई आदिवासी वीर महापुरुष की गाथाएं हैं जो "जल, जमीन और जंगल" के आंदोलन से संबंधित है। उन्होंने अपने हक को बचाने की पूरी कोशिश की है।


छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आंदोलन का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। सोनाखान के जमींदार शहीद वीर नारायण सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन किया। बस्तर का भूम काल विद्रोह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन किया गया। यह आदिवासियों के सबसे बड़े ससस्त्र आंदोलनों में से है। इस विद्रोह के सेनापति गुंडाधुर थे। इस तरह से हमारा छत्तीसगढ़ आदिवासी आंदोलनों का केंद्र रहा है।



वह क्या है जो किसी व्यक्ति को आदिवासी बनाता है?


आदिवासी आज भी अपनी परंपरा और संस्कृति को भूले नहीं हैं। वे अपने परंपरागत रीति रिवाजों को आज भी मानते हैं। चाहे वह जन्म हो या फिर शादी-ब्याह, आदिवासी अपने पारंपरिक रीतियों को बड़े उत्साह के साथ जीते हैं। आदिवासियों के जीवनशैली की खासियत यह है कि इनसे कभी प्रकृति को हानि नहीं पहुंचती है। आदिवासी प्रकृति से कुछ छीनने की कोशिश नहीं करते हैं, बल्कि वे प्रकृति को माँ समझकर उसके साथ आदरपूर्वक जीवन जीते हैं। और इन सबके लिए हमारे आदिवासियों ने बहुत संघर्ष एवं प्रयास किया है।


आदिवासियों में जितने रीति-रिवाज, लोक गीत, साहित्य आदि हैं, वह अन्य समाजों में देखने को नहीं मिलता है। आदिवासी अपनी संस्कृति को आज भी अपनी नई पीढ़ियों में बरकरार रखना चाहते हैं। वे हमेशा कोई भी कार्य करने से पहले अपने पारंपरिक नियमों का पालन अवश्य करते हैं, ताकि वे नई पीढ़ियों में बनी रहे। वे अपने पुरखों की कहानी भी सुनाते हैं ताकि शहीदों के बलिदानों को याद रखा जा सके। आदिवासी अपनी संस्कृति को बचाकर रखना चाहते हैं। वे एकता बनाकर रहना चाहते हैं, और इन सब के लिए हमारे आदिवासियों ने बहुत से संघर्ष किया है। यही है, जो लोगों को आदिवासी बनाता है।


Note: यह लेख आदिवासी आवाज शिखर सम्मेलन लेखक पुरस्कार 2021 के तीन विजेताओं में से एक है।


लेखक के बारे में: तारा सोरठे ग्राम कोड़गार, कोरबा छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं। वह गोंड आदिवासी महिला हैं और आदिवासी महिलाओं के साथ - साथ अन्य जनजाति के महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य करना चाहती हैं। वर्तमान में ALM के साथ जुड़ कर आदिवासी मुद्दों, संस्कृति एवं अन्य विषयों पर कंटेंट क्रियेट करती हैं।


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