दुनिया में जितने भी संस्कृतियां हैं उन सभी संस्कृतियों की अपनी एक विशेष पहचान होती है, और किसी संस्कृति को अलग बनाती है उसकी भाषा और वहाँ का खान-पान। आदिवासियों का भी खान-पान का तरीका ही उन्हें दूसरों से अलग और अनोखा बनाता है।
छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है और यहाँ के आदिवासी समुदाय आज भी अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए हुए रखे हैं। यहाँ के ज्यादातर समुदाय पहाड़ों और जंगलों में निवास करते हैं और जो खेती-बाड़ी करके तथा वनोत्पादों का संग्रह कर अपना गुजर-बसर करते हैं। मौसमी बदलाव का सामना भी यहाँ के आदिवासी अपने आस-पास मौजूद संसाधनों की सहायता से प्राकृतिक रूप से ही करते आए हैं। जैसे कि अभी इस गर्मी का सामना यहाँ के लोग अपने मुख्य भोजन चावल में थोड़ा सा बदलाव करके कर लेते हैं। पके हुए चावल के स्वरूप में थोड़ा बदलाव कर इसके दो नए व्यंजन बनाए जाते हैं, एक को जुड़ भात (बासी भात/भोरे बासी) कहा जाता है और दूसरे को पेज भात (माड़ भात) कहा जाता है।
जूड़ भात
जुड़ भात एक तरह से चावल ही होता है, छत्तीसगढ़ के लोग खाद्य पदार्थों को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते हैं क्योंकि उसकी महत्व के बारे में उन्हें पता होता है, उसी का परिणाम है जुड़ भात। यहाँ के आदिवासियों का मुख्य भोजन है चावल अतः लोग अपने खानपान में ज्यादा करके चावल का ही इस्तेमाल करते हैं, अतः दिन हो या रात घर में चावल ही पकता है। रात को जब पका हुआ चावल कुछ बच जाता है तब उसे फेंकने के बजाए उस पर पानी डाल कर रख दिया जाता है, इससे वह चावल खराब नहीं होता, और सुबह आदिवासी उसी चावल का सेवन बची सब्जी या अचार और प्याज के साथ करते हैं और इसे ही जुड़ भात/बासी भात/भोरे बासी कहा जाता है।
जुड़ भात खाकर सुबह-सुबह ही आदिवासी खेतों का जंगलों में काम करने चले जाते हैं, इस चिलचिलाती धूप और भीषण गर्मी में इसी जुड़ भात से उनकी रक्षा होती है। जुड़ भात के सेवन से पेट और शरीर ठंडा रहता है, इससे लू आदि लगने की संभावना कम रहती है। जुड़ भात खाने से प्यास भी कम लगती है, इससे जंगल अंदर काम करने वाले आदिवासियों को अनेक साहूलियत हो जाती है। अख़बार में छपी एक ख़बर के अनुसार वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने पाया है कि जुड़ भात खाने से बीपी और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां नियंत्रण में रहती हैं।
पेज भात
यह भी पका हुआ चावल ही होता है और इसका सेवन भी गर्मी के दिनों में ही ज्यादातर किया जाता है। सामान्यतः चावल को पानी में डालकर पकाया जाता है और चावल के पक जाने पर उस पानी को फेंक दिया जाता है, लेकिन पेज भात या माड़ भात बनाने के लिए उस पानी को फेंका नहीं जाता है बल्कि उसपर और अधिक पानी डालकर पकाया जाता है। इस चावल का सेवन चावल के पानी जिसे की पेज/माड़ कहते हैं उसके साथ ही किया जाता है। गर्मियों में पेज भात खाने के भी अनेकों फ़ायदे हैं, उबले हुए चावल का पानी होने के कारण इस पेज पोषक तत्वों की मात्रा बहुत अधिक है, जिससे इसके सेवन से शरीर में बहुत देर तक ऊर्जा बनी रहती है। ग्रामीण आदिवासियों का यह भी मानना है कि इस पेज का उपयोग करने से बाल नहीं झड़ते हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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