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Writer's pictureShivram Binjhwar

छत्तीसगढ़ के आदिवासी आज भी खुले कुओं का पानी पीते हैं, जागरुकता और साफ़ पानी की है जरुरत

सालों पहले जब छत्तीसगढ़ के गाँवों में मशीनों द्वारा नल की खुदाई नहीं होती थी, और लोग कुआँ खोदना भी नहीं जानते थे तब गाँव तथा जंगल में रहने वाले आदिवासी, खेतों में से निकलने वाले प्राकृतिक झरने (ढोढ़ी) का पानी निकाल कर पिया करते थे।


एक छोटे से बने गड्ढ़े रूपी ढोढ़ी से पानी निकलता तो था परन्तु जैसे ही गर्मियों में भूमि का जलस्तर कम होता जाता ढोढ़ी भी सूखने लगता। धीरे-धीरे लोग ढोढ़ी को और गहरा करते जाते जिससे ज़्यादा पानी जमा होने लगता था। 9-10 फिट गहरे ढोढ़ी का पानी गर्मियों में भी नहीं सूखता, लेकिन ऐसे ढोढ़ी कम ही गाँवों में होते थे I अधिकांश गाँवों में, गर्मी के महीनों में साफ़ पानी की उपलब्धता में कमी आ जाती है। लेकिन, गाँवों में लोगों के पास प्रदूषित पानी पीने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आदिवासी गाँवों में लोग अक्सर प्रदूषित पानी के कारण बीमार पड़ जाते हैं, फिर भी उन्हें विकल्प देने के लिए पर्याप्त पानी की आपूर्ति नहीं होती है।

ढोढ़ी को घेरकर बनाया गया कुआँ

गाँव के बड़े बुज़ुर्गों का कहना है कि, इन ढोढ़ीयों को गाँव के देवी देवता सुरक्षित रखते हैं, एवं सालाना इन ढोढ़ीयों की पूजा भी होती है, यदि ठीक से पूजा न हुई तो कुछ अनहोनी होने की संभावना रहती है। ढोढ़ी भी दो तरह के होते हैं, एक से सिर्फ़ पानी पिया जाता है और दूसरे तरह के ढोढ़ी का इस्तेमाल सिर्फ़ स्नान करने के लिए किया जाता है।


जिनके अपने खेतों में ढोढ़ी होती हैं, वे उस ढोढ़ी के पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए भी करते हैं। वैसे तो अब ढोढ़ीयों से पानी निकालने का चलन कम हो गया है। अब घरों में लोग कुआँ खुदवा ले रहे हैं, या फिर बोरिंग करवा रहे हैं। परंतु अभी भी कई घर ऐसे हैं जहाँ लोग सिर्फ़ ढोढ़ी के पानी का ही इस्तेमाल करते हैं।


इसके विभिन्न कारण हैं, कई लोग कुआँ खुदवाने या बोरिंग करवाने के सामर्थ्य नहीं रखते हैं। कुछ लोगों को नल का पानी लोहाइन (लोहे जैसा) लगता है। कुछ लोगों को लगता है कि ढोढ़ी का पानी पीने से प्रकृति के साथ भी तालमेल बना रहता है। कुछ लोगों के लिए ढोढ़ी का पानी आस्था से भी जुड़ा हुआ है, इनसे दूर जाकर वे अपने देवी-देवता को नाराज़ नहीं करना चाहते।


खुले ढोढ़ी से पानी पीना बीमारियों को आमंत्रण देना है। लोगों में जागरूकता फैलानी ज़रूरी है कि अब पहले की तरह स्थिति नहीं है। अब उतनी आसानी से ढोढ़ी में साफ़ पानी आता नहीं है, पर्यावरण के दूषित होने की वजह से पानी में भी कीटाणुयों के पनपने की पूरी संभावना है, ऐसे में लोग बीमार पड़ सकते हैं।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog samaj sevi sanstha और Misereor का सहयोग है l

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