छत्तीसगढ़ के बस्तर में अभी तक नक्सल समस्याओं की ही सुर्खियां बनते देखा गया होगा, होगा भी क्यों नहीं सारे कॉरपोरेट मीडिया को ये खबरें ज्यादा सुहाती हैं। फलाना नक्सली ने आत्मसमर्पण किया, नक्सलवाद कुचल कर सड़कें बनाएंगे, बोधघाट लाएंगे या आदिवासियों ने फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ किया प्रदर्शन, कैम्प के विरोध में किया प्रदर्शन ऐसी ही हेडिंग के साथ ज्यादातर खबरें आपने पढ़ीं होंगी। लेकिन इस बार मैं आपको बस्तर की एक दूसरी हेडिंग वाली खबर बताने जा रहा हूं। यह कोई कैम्प के विरोध में प्रदर्शन या पुलिस ने कथित नक्सली पकड़े हैं उससे जुड़ी खबर नहीं है, बल्कि खबर यह है कि उत्तर बस्तर में स्थित कांकेर जिले के 18 ग्राम पंचायतों के 68 गांवों के हजारों आदिवासियों को इसलिए रैली करनी पड़ी क्योंकि उनके गांव में जो स्कूल हैं वहां शिक्षक नहीं हैं।
कोरोनाकाल में जो ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है वह बेमतलब है। उनके क्षेत्र में नेटवर्क नहीं है, कई गांवों में स्कूल भवन नहीं हैं, मातृ भाषा में उन्हें शिक्षा चाहिए, छात्राओं के लिए गर्ल्स हॉस्टल चाहिए, उनको उनके विकासखण्ड में कालेज चाहिए। बस्तर में शिक्षा को लेकर अगर आदिवासी सड़क पर उतर रहे हैं जो केंद्र और राज्य की सरकार कहा करती है, तो यह पूरे सूबे के लिए शुभ संकेत है।
नाम न बताने की शर्त पर इस बीहड़ क्षेत्र में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही एक छात्रा कहती है मुझे कालेज जाने के लिए 60 किमी दूर जाना पड़ता है, फिर भी मैं जाती हूं क्योंकि मुझे इस क्षेत्र की समस्या दिखानी है, अपने गांव के जर्जर स्कूल दिखाने हैं, शिक्षक विहीन स्कूलों की बातें बतानी हैं ताकि मैं जो झेल चुकी हूं वो मेरे छोटे भाई-बहन न झेंले।
बता दें कि कांकेर जिला मुख्यालय से 120 किमी की दूरी पर कोयलीबेड़ा ब्लाक है। यह ब्लाक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। ब्लाक मुख्यालय के ऑफिस कोयलीबेड़ा में नहीं लगते हैं बल्कि 100 किमी दूर पखांजूर में दफ्तर स्थित हैं। पूरा क्षेत्र सुरक्षा बल के जवानों से घिरा हुआ है, लगभग तीन से चार छोटे-बड़े माइंस इस क्षेत्र में संचालित हो रहे हैं।
सोमवार (June 28) को शिक्षा संबंधी समस्याओं को लेकर पालक बालक संघर्ष समिति के बैनर तले 18 पंचायतों के 68 गांवों के हजारों आदिवासी एकजुट हुए जिनकी लगभग संख्या 8 हजार के आस पास थी। दूर गांवों से पहुंचे आदिवासियों ने कोयलीबेड़ा में रैली कर आमसभा के बाद नायब तहसीलदार के माध्यम से राज्यपाल को अपना ज्ञापन भेजा।
संघर्ष समिति के सहदेव उसेंडी ने बताया कि “क्षेत्र में हजारों आदिवासी छात्र एवं छात्राओं को माध्यमिक या उच्चशिक्षा से महज इसलिए वंचित किया जा रहा है क्योंकि वे जाति व निवास प्रमाण पत्र हासिल नहीं कर पा रहे हैं। 50 साल की राजस्व मिसल रिकार्ड वंशावली के लिए सरपंच से लेकर पटवारी कलेक्टर, तहसीलदार के चक्कर काटने के बावजूद स्थाई प्रमाण पत्र नहीं मिल रहा है। एक तात्कालिक सर्वेक्षण के मुताबित सिर्फ कोयलीबेड़ा विकासखंड में ही 3000 से ज्यादा बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है।”
ग्रामीण बाजार स्थल से तहसील कार्यालय तक हजारों की संख्या में रैली की शक्ल में पहुंचे लोगों ने तहसील कार्यालय के सामने आमसभा किया। आंकड़े के मुताबिक कोयलीबेड़ा में स्थित 18 पंचायतों के शिक्षा क्षेत्रों पर नजर डालें तो इसकी लगभग 50000 तक जनसंख्या है। कॉलेज और उच्च शिक्षा की ठीक से व्यवस्था नहीं है, हायर सेकेंड्री स्कूल 2 हैं जिसमें एक में भवन नहीं है, दूसरा अधूरा है, हाई स्कूल 6 हैं, मिडिल स्कूल 24 हैं, प्राइमरी स्कूल 94 हैं तो कॉलेज है नहीं।
लड़कियों का आश्रम व हॉस्टल अकेला है, इसी से यह अंदाजा लगाया जा सकता हैं। पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा की स्थिति कितनी दयनीय है। यही वजह है कि बच्चे शिक्षा से कोसों दूर होते जा रहे हैं, विगत दो सालों से कोरोना काल के दौरान से स्कूल बंद पड़े हैं जिसकी वजह से बच्चे गलत दिशा में जा रहे हैं। कम उम्र के बच्चे बोरगाड़ी जा रहे हैं, तो वहीं लड़कियां अन्य काम के लिए पलायन कर रही हैं, और दैहिक शोषण का शिकार हो रही हैं।
ऑनलाइन शिक्षा में बच्चों की शिक्षा
सभी स्कूलों में विषय के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्त नहीं है। व्यायाम शिक्षक (PTI) के साथ ही खेल-कूद का मैदान व सामग्री की सुविधा नहीं है। ऑनलाइन शिक्षा बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव डाल रही है। क्योंकि ग्रामीण अंचल क्षेत्र में नेटर्वक का अभाव है और आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। प्रयोगशाला, ग्रंथालय, कम्प्यूटर कोर्सेस की सुविधा नहीं है। शुद्ध पेयजल, स्नानगृह, शौचालय की सही सुविधा उपलब्ध नहीं है, और अस्वस्थ बच्चों के लिए इलाज की भी कोई व्यवस्था नहीं है।
प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के पाठ्यक्रम में आदिवासी जीवन शौली
छात्र छात्राओं के लिए हर आश्रम, छात्रवास में शिक्षक व शिक्षिका की नियुक्ति होना चाहिए, और छात्रवृति में वृद्धि होनी चाहिए और इस तरह प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के पाठ्यक्रम में आदिवासी जीवन शौली, सांस्कृतिक, भाषा, लोकगाथाओं, अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले आदिवासी वीर योद्धाओं की जीवनियों पर कोई शोध कार्य नहीं कराया गया। आदिवासी छात्र-छात्राओं को प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक किताबें नोटबुक, अन्य जरूरी स्टेशनरी जरूर उपलब्ध कराना चाहिए, टूयुशन शुल्क, परीक्षण शुल्क, ग्रंथालय शुल्क, प्रयोग शाला शुल्क आदि से पूरी छूट मिलनी चाहिए, छात्रावासों में सभी स्तरों पर अंडा व पोषक आहार देना जबरन बंद किया गया था उसे जारी रखना चाहिए।
क्या थीं मांगें ग्रामीणों की
1.समय पर स्कूल खोला जाय। कोरोना का बहाना न बनाया जाय। पेड़ के नीचे नहीं पढ़ाया जाए। कोरोना गाइड लाईन का पालन करते हुए भवन के अन्दर ही पढ़ाई करायी जाए।
2. कालेज सत्र की शुरूआत कोयलीबेड़ा में व कालेज भवन की स्वीकृति इसी सत्र में हो। विगत काई वर्षों से ग्रामीण कालेज के लिए आवेदन कर रहे हैं। ग्राम पंचायत कोयलीबेड़ा ग्रामसभा व 18 पंचायत के समाज प्रमुखों के कालेज के लिए प्रस्तावित जमीन पर राजस्व विभाग व पुलिस विभाग द्वारा हेलीपेड के लिए जगह आरक्षित करना उचित नहीं है। कालेज ग्रामसभा द्वारा प्रस्तावित स्थल पर बनाया जाए।
3. कक्षा 06 से 12 तक हायर सेकेन्डरी कोयलीबेड़ा के अधूरे भवन को तत्काल पूरा किया जाय। इसी तरह सिकसोड़ हायर सेकेन्डरी स्कूल में भवन निर्माण किया जाए। खेल सुविधा नहीं है, ग्रंथालय प्रयोगशाला व कम्प्यूटर सुविधा भी अच्छे से नहीं मिल रही है। लिहाजा उसकी व्यवस्था की जाए।
4. कक्षा 06से 10 तक हाई स्कूल चारगांव, सुलंगी, कड़में, उदनपुर, कौड़ोसालेभाठ में खेल सुविधा नहीं है। ग्रंथालय, प्रयोगशाला व कम्प्यूटर सुविधा भी अच्छे से नहीं मिल रही है। कड़में हाई स्कूल में भवन नहीं है विषयवार शिक्षक किसी हाई स्कूल में नहीं है। लिहाजा इन समस्याओं का तत्काल निराकरण किया जाए।
5. बस्तर के वीर योद्धाओं के इतिहास को पाठ्यांशों में शामिल किया जाय ।
6. एकल शिक्षक शालाओं में शिक्षकों की नियुक्ति किया जाय।
7. छात्रों की छात्रवृति में वृद्धि की जाए।
3. कक्षा 01 से 12 वीं तक छात्र छात्राओं को मुफ्त गणवेश व किताबें दी जाएं।
9. ग्रामसभा से जाति प्रमाण प्रत्र जारी हो।
10. छात्रवृति का स्कूलों में नगद भुगतान हो।
11. ऑनलाइन पढ़ाई हमें नहीं चाहिए, हमें स्कूली शिक्षा चाहिए क्योंकि गांव में नेटवर्क की समस्या है तथा बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर हैं उनके लिए संभव नहीं है आनलाईन शिक्षा हासिल कर पाना।
12. पाठ्यांशों में बस्तर इतिहास व भाषा, संस्कृति भी शामिल हो।
13. मातृभाषा में शिक्षा दो।
14. सभी स्कूलों में (कोयलीबेड़ा, पानीडोबीर, चारगांव, कड़में, बदरंगी, कौड़ोंसालेभाट) आश्रम व हास्टल की व्यवस्था हो। विशेषकर लड़की आश्रम व हॉस्टल खोलना बेहद जरूरी है।
15. रिक्त पदों में शिक्षकों को भर्ती किया जाए।
16. शाला खंड शिक्षा अधिकारी (BEO,BRC) कोयलाबेड़ा कार्यालय में रहकर स्कूलों का निरीक्षण करें।
17. 6वीं से 8वीं तक 10 हजार; 9वी से 12वीं तक 15 हजार छात्रवृति बढ़ाया जाए।
18. मध्यान्ह भोजन के लिए 4रू दे रहे हैं उसे बढ़ाकर 20रू. किया जाए।
19. आश्रम व छात्रवास में प्रति बच्चों के लिए भोजन राशि 13रू. दिया जा रहा है उसे 30रू. किया जाए।
20. सभी स्कूलों में लाइट व पंखों की व्यवस्था हो।
21. उपस्वास्थ्य केन्द्रों में पर्याप्त दवाइयां उपलब्ध कराई जाएं।
22. कृषि विभाग कोयलीबेड़ा में पर्याप्त खाद बीज समय पर उपलब्ध कराया जाए ।
23. आगनबाड़ी केन्द्र 2 वर्ष से बन्द है, इसको तत्काल खोला जाय।
यह लेख पहली बार जनचौक पर प्रकाशित हुआ था
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