भीषण गर्मी में शरीर को ठंडक पहुचाने के लिए आदिवासी करते हैं ताड़ी का उपयोग
- Ajay Kanwar
- May 10, 2022
- 3 min read
शरीर को ठंडा रखने के लिए आदिवासी भी पेड़ से प्राप्त एक पेय पदार्थ का इस्तेमाल करते हैं जिसे ताड़ी कहा जाता है। इस रस को खजूर के पेड़ से निकाला जाता है एवं इसको पीने वालों की संख्या बहुत है, कहा जाता है कि ताड़ी हमारे शरीर के लिए बहुत लाभदायक होती है इसमें किसी प्रकार का नुकसान भी नहीं होता है। लेकिन आवश्यकता से अधिक पीया जाए तो किसी को भी नुकसान हो सकता है। खजूर के फल को खाने के बारे में लगभग बहुत लोग जानते हैं लेकिन खजूर के पेड़ से ताड़ी निकाल कर पीने के बारे बहुत कम लोगो को ही पता है। हमारे आसपास खजूर के पेड़ बहुत मिलते हैं लेकिन ताड़ी कोई नही निकालता है सिर्फ़ खजूर के फल को खाया जाता है। बहुत लोग खजूर के पेड़ से निकलने वाले रस (ताड़ी) से अपना रोजगार भी करते हैं, उनके कमाई का यह एक जरिया है।

इस वर्ष लोग अत्यधिक गर्मी से परेशान हैं पिछले साल की अपेक्षा इस साल अधिक गर्मी है, तापमान रिकॉर्ड ऊंचाइयों को छू रहा है। इस भीषण गर्मी में घर से बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि अत्यधिक गर्मी में निकलने से लू लगने की संभावना है। गर्मी की वजह से लोग शरीर की गर्मी को शांत करने के लिए तरह-तरह की ठंडे पेय पदार्थों का उपयोग पीने के लिए कर रहे हैं। अधिकतर वे लोग जो इस गर्मी में कहीं सफर करते हैं। ताड़ी पीने वालों का तो ये भी कहना होता है कि इसको पीने के बाद आप कितनी भी गर्मी में निकलो आपको कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अभी गर्मी में रोड किनारे गन्ना रस बेचने वाले बहुत दिखते हैं सबसे ज्यादा गन्ना गर्मी में ही खपत होता है, उसी तरह रोड किनारे कहीं-कहीं ताड़ी बेचने वाले भी मिल जाएंगे।
खजूर के पेड़ से निकलने वाले रस (ताड़ी) को लोग गर्मी में बहुत ज्यादा पसंद करते है, हमारे शरीर की गर्मी को शांत करने के साथ-साथ इससे हमारा पेट भी साफ रहता है, कहा जाता है कि पेट में परेशानी होने वाले लोगों के लिए यह बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। खट्टा मीठा लगने वाले इस ताड़ी को पुरुष एवं महिलाएं दोनों ही पी सकते हैं, लेकिन इसको अधिक पीने से हल्का नशा भी पकड़ लेता है। जो पहले से कुछ नशा करते रहते हैं ऐसे लोगों को कोई फर्क नही पड़ता है लेकिन जो लोग कुछ भी नशा नहीं करते हैं ऐसे लोगो को थोड़ा पीने पर भी हल्का नशा पकड़ सकता है। बहुत लोग तो इसको नशे के रूप में भी पीते हैं क्योंकि यह शराब से सस्ता मिलता है।

जब मैं हैदराबाद के रमेश सिंह से बात किया तो उन्होंने मुझे बताया कि वे छत्तीसगढ़ में पिछले आठ सालों से ताड़ी बेच रहे हैं जब भी गर्मी का समय आता है तो वे छत्तीसगढ़ आकर ताड़ी बेचते हैं। वे अपने पूरे परिवार के साथ यहाँ आए हैं, उनके परिवार में उनके माता-पिता और एक भाई हैं। रमेश सिंह का कहना है कि वे गर्मियों में सिर्फ़ ताड़ी बेचकर पैसा कमाने के लिए आते हैं। गर्मियों के शुरुआत में आकर बरसात के शुरुआत तक बेचते रहते हैं, जैसे ही बरसात आता है तो फिर चले जाते हैं वे एक दिन में 1000 रुपये तक का ताड़ी बेच लेते हैं। वे रोड किनारे झोपड़ी बनाकर बैठे रहते हैं और एक छोटे प्लास्टिक के एक जग में 30 रुपये के हिसाब से ताड़ी बेचते हैं। वैसे ताड़ी बेचने वाले जिनका यहाँ स्थायी घर है, वे गाँव-गाँव जाकर ताड़ी बेचते हैं। ताड़ी बेचने वाले हर साल अपना स्थान बदलते रहते हैं, वे रोज़ाना लगभग 10 से 15 खजूर के पेड़ों को छीलकर उससे ताड़ी निकालते हैं। खजूर का रस बहुत धीमी गति से निकलता है तो ताड़ी को इक्कठा होने में समय लगता है इसलिए पेंडो पर मटके बांध कर रख दिया जाता है जिससे मटके में खजूर का रस टपक-टपक कर गिरता रहे। जब मटका आधे से ज्यादा भर जाता है तो उसे नीचे उतार लिया जाता है, और फ़िर किसी दूसरे पात्र में रख कर उस मटके को पुनः पेड पर लटका दिया जाता है।
गाँव में खजूर का पेड़ होने के बावजूद भी गाँव के लोग इन सब चीज़ों पर आदिवासी ध्यान नही देते हैं, जिससे बाहर से आकर लोग यहाँ पैसा कमा रहे हैं। अगर गाँव के लोग स्वयं करने लगते तो अनेकों को कमाने का एक जरिया मिल जाता। ताड़ी का प्रयोग अनेक आदिवासी करते हैं, ऐसे में मेहनत कर इसे बेचना लाभदायक है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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