आदिवासी समुदाय के लोग ज्यादातर जंगल के पास के गाँवों में रहना पसंद करते हैं क्योंकि वे अपनी आजीविका के लिए वनोपज पर निर्भर करते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के जंगलों में बांस का उत्पादन होता है, जिसका उपयोग हस्तशिल्प और टोकरी बनाने के लिए किया जाता है।
कोरबा के गाँवों में बसोड़ समाज रहता है जो बांस की कला में निपुण हैं। अनादि काल से इस समुदाय के सदस्य सुंदर व आवश्यक वस्तुओं का निर्माण करते रहे हैं जैसे की सूपा, झाँपि, और टुकनी। झोराघाट गाँव के बसोड़ समाज के निवासी, बंधन सिंह का परिवार भी बरसों से बांस का काम करता आरहा है। बंधन सिंह की उम्र 27 वर्ष है और उनका परिवार काफी बड़ा है। उन्होंने हमें बताया की उनका पूरा परिवार बांस की कला में निपुण है। ये परिवार सूपा, झाँपि, और टुकनी बनाते हैं। सूपा का इस्तेमाल चावल से कंकड़ और धुल हटाने के लिए किया जाता है। झाँपि एक तरीके का टोकरी होता है जिसका उपयोग शादी के समय किया जाता है। झाँपि में भरकर दुल्हन के लिए लड़के वालों उपहार भेजते हैं। टुकनी का उपयोग लोग कोई भी सूखा समान रखने के लिए करते है जैसे कि धान या चावल।
बहुत प्रतिभाशाली होने के बावजूद, बसोड़ समुदाय के बहुत सारे सदस्य गरीब रहते हैं क्योंकि उनकी कलाकृतियाँ सस्ते दर पर बेची जाती हैं। वे अपने इस काम को लगातार पूरे साल करते रहते है इसलिए इस परिवार के लोग ज्यादा पढ़े लिखे नही है। जंगल के पास रहने के बावजूद, उन्हें बांस लाने के लिए गहरी यात्रा करनी पड़ती है। दूसरा विकल्प बाजार में बांस खरीदना है, लेकिन यह बहुत महंगा है। एक बांस के लिए उनको 50 से 100 रुपये तक देना पड़ता है।
इनके द्वारा बनाये गए बांस की सभी वस्तुओं की कीमत अलग अलग रखी होती है और ये सभी कीमतें उस वस्तुओ में लगी मेहनत पर निर्भर होती है। जैसे कि, सूपा जो कि ये चांवल से कंकड़, धान, आदि चीजो को अलग करने के लिए उपयोग किया जाता है, जिसकी कीमत १०० रुपये बताते है। झाँपि की कीमत एक जोड़ी ka २००० रुपये परता है। उनका बनाया हुआ सामान खरीदने के लिए व्यापारी खुद उनके पास आते हैं और घर से ही खरीद के ले जाते है जिससे उनको ये समान बेचने में किसी तरह की कोई परेशानी नही होती है। बांस के साथ किसी भी वस्तु को बनाने में बहुत समय और प्रयास की आवश्यकता होती है। इसलिए यह ज़रूरी है कि उन्हें अधिक पैसा दिया जाए ताकि वे अपने घर को ठीक से चला सकें और अपने बच्चों को स्कूल भेज सकें।
यह आलेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत मिजेरियोर और प्रयोग समाज सेवी संस्था के सहयोग से तैयार किया गया है।
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