बस्तर अपने अनोखे रस्म रिवाज और परंपरा के साथ खानपान के लिए जाना जाता है, बस्तर के आदिवासियों में खानपान और खाद्य श्रृंखला की विविधता भरी पड़ी है। वनों से आच्छादित छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग हर बार किसी न किसी रूप में चर्चा में बना रहता है। हम चर्चा करने जा रहे हैं बस्तर का सबसे स्वादिष्ट चटनी 'चापड़ा चटनी' के बारे में, पेड़ों पर पाए जाने वाले लाल चींटे-चींटियों से यहाँ के आदिवासी चापड़ा चटनी बनाते हैं।
आमतौर पर आम, जामुन, अमरूद, साल, काजू, अर्जुन आदि वृक्षों में लाल चींटों का छत्ता होता है। बस्तर संभाग में इन लाल चींटों के छत्ते को चापड़ा कहा जाता है। इसी से यहां के आदिवासी चटनी बनाते हैं। औषधीय गुणों से युक्त यह चटनी स्वादिष्ट भी खूब होती है। इसकी बढ़ती मांग के चलते बस्तर के हजारों ग्रामीणों के लिए चापड़ा चटनी रोजगार का स्थायी माध्यम बन चुकी है। बुखार, पित्त, सिरदर्द व बदन दर्द में आदिवासी इसी का प्रयोग करते हैं।
आमतौर पर चापड़ा चींटी पकड़ने का मौसम गर्मी के शुरुआती दिनों में होता है क्योंकि धूप तेज होने के कारण उसके घोसले में चापड़ा चींटी और उनके अण्डों को निकालना आसान हो जाता है, और इसी मौसम में चापड़ा अंडे भी देती हैं। चापड़ा को पेड़ों से उतारने से पहले सुरक्षा के लिए अपने कान, नाक और मुंह ढक लिया जाता है, उसके बाद छत्तेनुमा घोंसला को नीचे ज़मीन पर रखे कपड़े में गिराया जाता है, तेज़ धूप के कारण चीटियां भाग जाती हैं और जो कुछ चीटियां और अंडे बच जाते हैं उसे पानी में डालकर साफ़ किया जाता है।
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जंगल में चापड़ा का घोंसला ढूंढते हुए रज्जो बताती है कि "वह हर बार गर्मी के मौसम में चापडा एकत्रित करने जंगल जाती है, इसकी मांग बाज़ार में विदेशी सैलानियों तक बढ़ गई है, इसके औषधीय गुणों के कारण भी इसका सेवन लोगों में बढ़ने लगा है। टाइफाइड, मलेरिया जैसी बीमारियों का इलाज ग्रामीण इलाकों में नहीं हो पाता है, ऐसे में बीमार पड़ा हुआ व्यक्ति को ठीक करने के लिए चापड़ा चींटी को उनके शरीर पर झड़ाया जाता है और चपड़ा चींटी अपना अम्लीय तत्व इंसान के शरीर पर छोड़ती है, माना जाता है कि इससे बीमार पड़ा हुआ व्यक्ति ठीक हो जाता है।
औषधीय गुणों से युक्त यह चटनी विदेशी सैलानियों को भी दीवाना बना चुकी है। इस कारोबार में लिप्त आदिवासी समाज का दावा है कि चापड़ा चटनी अनेक बीमारियों तक को हर लेती है जबकि इसका स्वाद का तो कहने ही क्या! यह चटनी रोजगार का बहुत बड़ा जरिया बन चुकी है। लोग जिंदा चींटों की चटनी बनाना ही पसंद करते हैं क्योंकि मरने के कुछ देर बाद उसके अम्लीय तत्व खराब होने लगते हैं। इस चटनी का मुख्य कारक इसके अम्लीय तत्व ही हैं। जिसमें विटामिन सी की मात्रा भरपूर होती है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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