छत्तीसगढ़ लोक पर्वों की धरा है, जहाँ परम्पराओं को ‘पुरखाउति सोक्ता’ मान कर त्योहार की तरह बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है I पौष मास की अंजोरी पाख के पूर्णिमा तिथि में मनाये जाने वाला छेरछेरा त्योहार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है I
इस पर्व को मनाने के पीछे की कहानी यह है कि, कौशल प्रदेश (छत्तीसगढ़) के राजा कल्याण साय, जो की एक आदिवासी राजा थे, वे मुगल सम्राट जहाँगीर के सल्तनत में युद्ध कला की शिक्षा प्राप्त कर लगभग आठ वर्षों बाद वापस अपने राज्य लौटे I तब यहाँ कि प्रजा अपने राजा के स्वागत में बड़े उत्साह के साथ, गाजे बाजे लेकर उनसे मिलने राजमहल पहुंची I अपने राजा से मिलने पहुँचे प्रजा के उत्साह और लोक गीतों से भाव विभोर होकर महारानी ने महल में पहुँचे सभी लोगों के बीच अन्न और धन का वितरण कर अपनी खुशी जताई I
फिर राजा कल्याण साय ने इस उत्सव को पर्व के रूप में मनाने का आदेश दिया I तभी से, छत्तीसगढ़ के लोग प्रति वर्ष इस पर्व को बड़े धूम धाम से मनाते चले आ रहे हैं I कल्याण साय के राज्य में जनता काफ़ी खुशहाल थी, इस समय राज्य की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी। इसीलिए राजा की जनता कल्याण साय की बहुत सम्मान करती थी।
इस त्योहार से जुड़ी और भी ढेर सारी दंत कथाएं हैं। कई लोग इसे पौराणिक कथा से भी जोड़कर देखते हैं, माना जाता है कि इसी दिन भगवान शंकर ने देवी अन्नपूर्णा से भिक्षा माँगी थी। त्योहार मनाते हुए लोग एक दूसरे के घर जाकर भिक्षा मांगते हैं, और हर्ष से दिए हुए दान को स्वीकार करते हैं।
इस त्योहार को दान पुण्य का त्योहार भी कहा जाता है I कहते हैं कि इस दिन दान करने वाले को मारतनीन देवी का रूप मानते हैं, जो सभी को अन्न और धन देती हैं I इस दिन कोई भी व्यक्ति किसी के घर से खाली हाथ नहीं लौटता, उसे दान में कुछ न कुछ अवश्य मिलता है I अमीर हो या गरीब, इस दिन सभी लोग छेरछेरा मनाने का आंनद लेते हैं, इसीलिए छत्तीसगढ़ में इस पर्व का एक अलग ही महत्व है I
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अन्तर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है l
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