मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले के ब्लॉक बक्सवाहा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले डोंगर गांव में कई आदिवासी परिवार रहते हैं। इन परिवारों का कहना है कि इनकी जमीन वन विभाग द्वारा हड़पी जा रही है। इस गाँव के लगभग 70 लोगों ने जब अपनी समस्या को लेकर कलेक्ट्रेट में घेराव किया तो वहां पर इन लोगों की कोई सुनवाई नहीं हुई।
जब हमने इन लोगों से बात की तो उनका कहना है कि इस गाँव में इन परिवारों की अपनी ज़मीनें हैं लेकिन जब ये लोग अपनी ज़मीन पर बुवाई करते हैं तो वन विभाग द्वारा इन लोगों को काम करने से रोका जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि आवास योजना के अंतर्गत घर बनवाने की पहली सरकारी क़िस्त भी कई लोगों को मिल गई है, लेकिन जब-जब ये लोग आवास बनवाने का काम शुरू करवाते हैं तब-तब वन विभाग द्वारा इनके घर तुड़वा दिए जाते हैं। लोगों की मानें तो वन विभाग का कहना है कि ये ज़मीनें वन विभाग की हैं, यहाँ पर ये ग्रामीण आवास नहीं बनवा सकते।
गाँव में बसे आदवासी परिवार करीब 50 सालों से इसी गाँव में रह रहे हैं, लेकिन आज उनकी रिहाइश पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कई ग्रामीणों का यह भी कहना है कि अगर ये ज़मीनें वन विभाग की होतीं तो प्रशासन द्वारा इन्हें यहाँ पट्टा न दिया जाता। यह लोग पिछले कई महीनों से अपनी ज़मीन के हक़ की मांग कर रहे हैं। यह लोग बस यही चाहते हैं कि इन्हें प्रशासन की तरफ से घर बनवाने की इजाज़त मिल जाए।
किसानों की फसलों पर चला दिए ट्रैक्टर-
डोंगर गाँव निवासी कल्लू का कहना है कि उन्होंने अपनी ज़मीन में राई और सरसों की बुवाई की थी। उस समय तो किसी ने कुछ नहीं बोला लेकिन जब सरसों तैयार होने वाली थी तभी वन विभाग की टीम ने खेतों में ट्रैक्टर चलवा दिए और हमारी सारी फसल नष्ट करा दी गई। महंगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी की मार झेल रहे किसानों के सामने यह नयी मुसीबत आ खड़ी हुई है। इनकी महीनों की मेहनत और इस मेहनत पर लगे पैसे को वन विभाग बेख़ौफ़ होकर रौंद रहा है।
इसी गाँव की रहने वाली शिमला ने बताया कि उनकी जमीन करीब 50 साल पुरानी है, और आज से पहले तक इन्हें कभी अपनी ज़मीन को लेकर कोई विवाद नहीं झेलना पड़ा। यहाँ तक कि सरकारी पट्टे भी मिल गए। उन्होंने बताया कि कुछ महीनों पहले उनकी ज़मीन की जांच पड़ताल कराई गई थी और उसके बाद ही लिखित पट्टा मिला था। अब जब आवास बनवाने की पहली क़िस्त आयी तो शिमला ने ज़मीन पर दीवारें खड़ी कराना भी शुरू कर दिया था, लेकिन कुछ ही दिन बाद वन विभाग की टीम ने जेसीबी से उनकी बनी बनाई दीवारें गिरवा दीं। शिमला और उनके परिवार के हंगामा करने पर वन विभाग यह कह कर चला गया कि ये ज़मीन जंगल की ज़मीन है।
गाँव के कई ऐसे परिवार हैं जो अपनी ज़मीनों को लेकर दर-दर भटक रहे हैं। जिनके पास कोई दूसरी झोपड़ी या कच्चा घर नहीं है, वो लोग गाँव में ही इधर-उधर पन्नी डालकर रह रहे हैं।
प्रशासन से नहीं मिल रही कोई सहायता-
ग्रामीणों का कहना है कि उनके पास अपनी ज़मीनों के कागज़ हैं, प्रूफ है। लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें ज़मीन पर खेती-बाड़ी करने या घर बनवाने से रोका जा रहा है। लोगों की मानें तो अगर वन विभाग उनकी ज़मीनें छीनना चाहता है तो या तो उन्हें गाँव में ही कहीं और जगह दी जाए या फिर ज़मीन छीनने का मुआवज़ा मिले। महीनों से परेशान इन परिवारों की सुनवाई न ही कलक्ट्रेट में हो रही है और न ही किसी और विभाग में।
गजराज बताते हैं कि ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट का घेराव करके यहाँ पर धरना प्रदर्शन भी किया था और यह भी कहा था कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होंगी, तब तक ये लोग अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे रहेंगे। लेकिन कलेक्टर ऑफिस से सिर्फ आश्वासन दिया गया। उन्होंने बताया कि एसडीएम ने भी आश्वासन दिया था कि वन विभाग से बात की जाएगी और उनसे जवाबदेही मांगी जाएगी, और उसके बाद निराकरण किया जाएगा और फिर कार्रवाई की जाएगी लेकिन अभी तक कोई भी सुनवाई नहीं हुई न ही कोई यहां देखने आया है। लोगों का कहना है कि अगर इन लोगों की मांगें अब पूरी नहीं हुईं तो बक्सवाहा थाना क्षेत्र के आदिवासी हड़ताल पर जाएंगे और सड़कों पर उतरेंगे।
प्रशासन कर रहा है जांच-पड़ताल-
जब हमने इस बारे में एसडीएम यूसी मेहरा से बात की तो उन्होंने कहा है कि यह लोग अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे हुए थे और उन्होंने गाँव में निराकरण भी करवाया है। एसडीएम का कहना है कि वो ज़मीनें वन विभाग की की हैं, लेकिन वो जंगल में आती हैं या नहीं, इसका फैसला शासन द्वारा लिया जायेगा। शासन जो भी निर्णय लेता है, उसके बारे में ग्रामीणों को बता दिया जाएगा और फिर उसी हिसाब से कार्यवाही की जाएगी।
कलेक्टर जीआर का कहना है कि उन्होंने इस बारे में वन विभाग के बीडी मिश्रा से बात की है और इस मामले में जांच- पड़ताल कराई जा रही है। कलेक्टर ने यह भी बताया कि कुछ लोगों ने जंगल में वन विभाग की जमीन पर कब्जा जमाया हुआ है। उनके पास पट्टा नहीं है, इसी कारण उनका काम रुकवाया जा रहा है। कलेक्टर जीआर द्वारा ये भी बताया गया है कि वो इस मामले में कुछ लोगों को निराकरण के लिए भेजेंगे, और उसके बाद उचित कार्यवाही की जाएगी।
इस खबर की रिपोर्टिंग अलीमा द्वारा की गयी है।
नोट:- यह लेख ख़बर लहरिया की अनुमति के साथ पुनर्प्रकाशित किया गया है।
कज़ाख़िस्तान और ऑस्ट्रेलिया वाला सीन अपनाना होगा !!