बार रानी महोत्सव आदिवासियों एवं सर्व समाज द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। इसे छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के लैंगा गाँव में मनाया जाता है। बार रानी पर्व को बहुत पहले से मनाते आ रहे हैं। यह बारह दिन का होता है, इसलिए इस त्यौहार को बार रानी कहते हैं। इसमें प्रकृति की पूजा करते हैं। आस-पास के गाँव के लोग आ कर इस पूजा में शामिल होते हैं। यहाँ के लोगों की मान्यता है कि देश-विदेश में जगह-जगह अकाल की ख़बरें सुनाई पड़ती हैं पर हमारे गाँव में बार रानी की कृपा से कभी भुखमरी के दिन देखने को नहीं मिला है।
यह महोत्सव पौष शुक्ल में प्रारम्भ होती है और माघी पूर्णिमा को समाप्त हो जाती है। लैंगा के बार समिति के अध्यक्ष श्री सुखदेव सिंह मार्को और मंच संचालक श्री राम भजन मार्को हैं। इन्होंने अपने गाँव के संगठन की एकता बनाये रखा है। बार महोत्सव होने से 6-7 दिन के पहले बार मैदान में एक दिन की बैठक रखी जाती है। इस बैठक में चंदे के रूप में लिए जाने वाले पैसे और चावल का आंकलन करते हैं। बार उत्सव के लिए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव चुने जाते हैं। महोत्सव में मंच-संचालन, पानी व्यवस्था, लाइट व्यवस्था सब गाँव वालों के सहयोग से होता है।
बार रानी उत्सव को मनाने के लिए गाँव के हर वार्ड के पंचों को पैसा और चावल इकट्ठा करने का काम सौंपा जाता है। इस चंदा को यहाँ के आदिवासी और सर्व समाज के लोग अपनी इच्छानुसार अपने वार्ड के पंच के पास 6-7 दिन के अंदर में जमा कर देते हैं। सभी पंच अपने-अपने वार्ड में इकठ्ठा किये गये चावल, पैसे आदि को बार समिति के नए अध्यक्ष के पास जमा करते हैं। उस पैसे से गाँव में पूजा करने वाले बैगा के लिए सफेद रंग की धोती ली जाती है। जिस पेड़ की पूजा करते हैं उसे भी सफेद कपड़े से बाँध देते हैं। कलश, दीया खरीद कर बार रानी के स्थान में रखते हैं। यहाँ की पूजा-अर्चना गाँव के बैगा द्वारा करवाई जाती है।
पहले बार मैदान की साफ-सफाई की जाती है। बार रानी के स्थान को अलग से घेर दिया जाता है और चूना से पुताई की जाती है। बार रानी के चौरा पर सफेद रंग से लिपाई करते हैं। इसके चारों ओर रंग-बिरंगे पताकों से सजाया जाता है। इसके पास बैठक की अच्छी व्यवस्था की जाती है। महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग बैठक की व्यवस्था होती है। बार उत्सव को सभी गाँव में नहीं मनाया जाता। यहाँ बैंगा गाँव के आदिवासी एवं सर्व समाज अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बारह दिन तक दीपक जलाकर प्रार्थना करते हैं और अपने पूरे गाँव के लिए मन्नत मांगते हैं कि गाँव में रहने वाले लोग सही सलामत और अच्छे रहें। इस गाँव के लोग रोजाना रात में खाना-पिना कर एक-दो घण्टे मिलकर बार रानी के चरण में नाच-गान करते हैं। इसमें सभी लोग अपना-अपना ग्रुप बनाकर नाच-गान करते हैं।
बार महोत्सव के लिए बहुत दूर-दूर के बाजा वालों को आमंत्रित किया जाता है। वे पूरी तय्यारी के साथ अपने ढोल, कलंघी, मादर, गुदमा, नगारा, ड्रेस, सजावट आदि लेकर आते हैं। इनको देखने के लिए आस-पास के कई गाँवों के लोग आते हैं। यहाँ घूमने के लिए छोटा-सा बाजार लगा रहता है, खाने-पीने की व्यवस्था भी रहती है।
पूरे गाँव के लोग बार उत्सव में नाचते हैं। बार उत्सव में सुमरनी गान गया जाता है, जिसके बोल कुछ इस प्रकार हैं,
“झरिया डुमरी पाके, टिकुरिमा बेल।
इंहा के बार रानी, अखरा म खेल।”
बार महोत्सव यहाँ के आदिवासियों एवं सर्व समाज का प्रमुख त्यौहार है। इस पर्व को तीन वर्ष के बाद मनाया जाता है। सभी लोग अपने-अपने घरों में मेहमान बुलाते हैं और उनका मान-समान से स्वागत करते हैं। इस उत्सव में आदिवासी समुदाय के लोग पूजा करते हैं। यह प्रथा बहुत पहले से ही चलती आ रही है, और यहाँ के लोग भी इस परंपरा को पूरे मन और लगन से चलाते आ रहे हैं। इस आदिवासी सांस्कृतिक पर्व को यहाँ के लोग आज भी बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। आदिवासी लोग अपने देवी-देवताओं को तेन्दु पेड़ के नीचे ही रखते हैं। सभी ग्रामवासी मिलकर बार रानी स्थल को सजाते हैं।
बार रानी के स्थान में सिर्फ बैगा और मन्नत मागने वालों को ही प्रवेश करने की अनुमति है। बार उत्सव में बकरे की बलि चढ़ाने का नियम है।
यहां के आदिवासी एवं सर्वसमाज अपनी परम्परा को बचाए रखने के लिए इसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी मानते आ रहे हैं।
उत्सव के अंतिम दिन गाँव के सभी घरों में प्रसाद दिया जाता है और सभी घरों में तरह-तरह के पकवान बनते हैं। बार उत्सव खत्म होने के बाद बैगा को आमंत्रित करके उनका मान-सम्मान करते हैं।
यह आलेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत मिजेरियोर और प्रयोग समाज सेवी संस्था के सहयोग से तैयार किया गया है।
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