बीते 1 अप्रैल से छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में रावघाट लौह अयस्क खनन परियोजना को बड़ी संख्या में स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। इस दौरान कलेक्टर कार्यालय में घुसने की कोशिश के बाद पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच झड़प भी हो गई। इस बीच केंद्र सरकार ने रावघाट परियोजना के लिए अंतागढ़ से नारायणपुर तक रेल पटरी बिछाने हेतू 500 करोड़ रुपए की मंजूरी दे दी है। देश में महत्वपूर्ण माने जाने वाले रावघाट रेल परियोजना के तहत अंतागढ़ तक रेल पटरी बिछाने का काम पूरा हो चुका है जिसके बाद अब अंतागढ़, नारायणपुर कोंडागांव जगदलपुर तक पटरी बिछाने के लिए रेल मंत्रालय की ओर से 500 करोड रुपए की मंजूरी मिली है ताकि काम पूरा कराने में राशि का रोड़ा ना हो और आगे भी ट्रेन का विस्तार किया जा सके।
प्रदेश की राजधानी रायपुर से दुर्ग, दल्लीराजहरा, बालोद, कांकेर से भानुप्रतापपुर होते हुए यात्री ट्रेन चल रही है और इसी का विस्तार करने की प्लानिंग हो रही है। पिछले साल जनवरी माह में ट्रेन का स्पीड ट्रायल करने पहुंचे दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर जोन के जीएम गौतम बनर्जी, केंवटी से आगे अंतागढ़ तक ट्रेन के विस्तार करने की हरी झंडी दे चुके हैं।
दरअसल रावघाट परियोजना विकास के पथ पर अग्रसर होने का एक पहलू है, इसका दूसरा पहलू रावघाट परियोजना में उजड़ते जंगल और आदिवासियों का विस्थापन है जो कि मुख्यधारा के विमर्श से गायब है। आखिर वे कौन लोग हैं जो आदिवासियों के विस्थापन पर विकास की राहें आसान कर रहे हैं? और बस्तर में रेल परियोजना विस्तार की मांग कर रहे हैं? भलीभांति इस बात से परिचित होते हुए भी की यदि रेलवे का विस्तार होगा तो केवल जंगल ही नहीं आदिवासियों के घर बार भी उजड़ेंगे। मुख्यधारा में हर बार ही देखा जाता है कि खनिज संपदा के खनन के लिए आदिवासियों पर सामाजिक दबाव का बोझ बनाया जाता है चाहे वह कोयला के लिए हो या रावघाट परियोजना जैसे रेल लाइन विस्तार के लिए।
शहरों में रहने वाले सुविधाभोगी संपन्न वर्ग के लोग बस्तर में रेल लाइन विस्तार के लिए पद यात्रा निकालते हैं लेकिन आदिवासियों के साथ जलवायु परिवर्तन में अपनी सहभागिता दिखाने के लिए, जंगल को बचाने के लिए कभी आगे नहीं आते। ये ऐसे लोग हैं जो आदिवासियों को खत्म करके विकास की राहें आसान करते हैं और सरकार का अप्रत्यक्ष रूप से मददगार होते हैं। रेल लाईन विस्तार आंदोलन में एक भी आदिवासी का नहीं होना बस्तर में रेल की मांग करने पर सवाल खड़ा करता है। बहरहाल ग्रामीणों का कहना है कि "बिना ग्रामसभा की अनुमति के रावघाट से लौह अयस्क का उत्खनन शुरू कर दिया गया है। यह हमारा अयस्क है और कंपनी इसकी चोरी कर रही है। उत्खनन को लेकर किसी भी तरह की ग्राम सभा नहीं हुई है। BSP के कॉन्ट्रेक्टर देव माइनिंग कंपनी ने ट्रक से लौह अयस्क का परिवहन कराना शुरू कर दिया है।"
ग्रामीणों का यह भी कहना है कि 4 जून 2009 में कंपनी को दी गई पर्यावरण स्वीकृति की कंडिका A(xxii) में रात के दौरान किसी भी ट्रक का इन सड़कों पर परिवहन सख्त प्रतिबंधित है। कंपनी ने पर्यावरण मंत्रालय को कई बार आश्वस्त किया है कि समस्त परिवहन दिन के समय ही होगा। इस गैर कानूनी परिवहन को रोकने के लिए ग्रामीणों ने सड़क पर नाका भी बना दिया है। आस-पास के कई गांवों के लोग विरोध के समर्थन में आए हैं। जिनमें मुख्य रूप से खोडगांव, खड़कागांव, बिंजली, परलभाट, खैराभाट समेत अन्य रावघाट खदान प्रभावित गांव हैं। माइनिंग प्रभावित कुछ गांवों को सामुदायिक वन अधिकार पत्र भी मिला है। यह खनन परियोजना का सीधा उल्लंघन है। ग्रामीणों का कहना है कि रावघाट खनन परियोजना को बंद कर दिया जाए। जब तक मांग पूरी नहीं होगी आंदोलन करते रहेंगे। इस दौरान रावघाट इलाके के 23 पंचायत के प्रभावित गांवों के लोगों ने अपनी 20 सूत्रीय मांगों को लेकर कलेक्टर कार्यालय का घेराव किया, बड़ी संख्या में ग्रामीण कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचे थे। रावघाट इलाके के नारायणपुर-कांकेर जिले के 23 गांव रावघाट परियोजना अंतर्गत प्रभावित हैं।
भिलाई स्टील प्लांट के द्वारा इलाके में खनन का कार्य निजी कंपनी देव माइनिंग को दिया गया है। ग्रामीणों की मांग है कि भिलाई स्टील प्लांट के द्वारा इलाके का इको डेवलपमेंट किया जाए। प्रभावित गांवों में विकास कार्य और इस इलाके से आने वाले युवा बेरोजगार ग्रामीणों को रोजगार मुहैया कराया जाए। ग्रामीणों ने शिकायत में कहा कि उनकी समस्याओं को अनसुना कर दिया जाता है इस पर प्रशासन बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा है। इस धरना प्रदर्शन में ग्रामीणों ने कलेक्टर को राज्यपाल के नाम ज्ञापन भेजा है, जिसमें उन्होंने 20 सूत्रीय मांगें रखी हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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