गाँव हो या शहर, हम सभी को भली-भांति ज्ञात है कि अक्सर कई वस्तुओं को हम अनुपयोगी समझ कर फेंक देतें हैं, लेकिन वही अनुपयोगी वस्तुएं कुछ ना कुछ काम जरूर आ जाते हैं।
जैसे प्लास्टिक, जिसको फेंकने के बजाय अपने घरों में झूमर आदि सजावटी सामान बनाकर घरों को सजाया जा सकता है।
कुछ समय पहले फील्ड ट्रिप के दौरान घूमते-घूमते मैं डोंगर ताराई गाँव गई थी। जहाँ मुझे ३५ साल की एक महिला मिली जिनका नाम ललिता पटेल है। उन्होंने मुझे बताया कि उनके घर मे एक ऐसी चीज़ है जिसका उपयोग लहसुन, मिर्ची कूटने के लिए किया जाता है।
इसे गाँव में खलबट्टा के नाम से जानते हैं। पुराने जमाने में लोग लहसुन, मिर्ची आदि को पत्थर में पीसा करते थे। यह अक्सर चतुर्भुज आकार का कटा होता था, जिसमें कूटकर मसाले आदि पिसे जाते थे।
वैसे तो आजकल बाज़ार में सभी चीज़ों के लिए कुछ ना कुछ आधुनिक उपकरण मौजूद हैं। लेकिन गाँव में अब भी इसका असर कम ही हुआ है, गाँव के ज्यादातर लोग मशीन उपकरण का प्रयोग न करके अपने हाथों से ही कुछ ना कुछ जुगाड़ बना कर पीसने का काम करते हैं।
जैसे दूरसंचार के टावर या बिजली के खंभे से नीचे गीरे हुए लोहे, इन लोहों में चीनी मिट्टी भरा रहता है।
चीनी मिट्टी को निकालकर अच्छी तरह से धो लेने के बाद इसका उपयोग मसालों की कुटाई या पिसाई में किया जाता है । इसे ही गाँव में खलबट्टा के नाम से जाना जाता है।
इन खलबट्टों के अनेक फायदे हैं, एक तो इनका इस्तेमाल के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं होती है, दूसरी इनमें मेहनत भी कम लगता है और आसानी से मसालों को पिसा जा सकता है।
मिक्सर एवं ग्राइंडर जैसे मशीनी उपकरणों की तुलना में ये खलबट्टे ज्यादा टिकाऊ होते हैं एवं इनमें से मसालों का स्वाद भी बेहतर आता है। बाजारों में भी इसी तरह के खलबट्टे मिलते हैं जिनका दाम ३५० ₹ से शुरू होता है। और छोटे, बड़े अनेक तरह के लोहे के खलबट्टे खरीदे जा सकते हैं।
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि, गाँव के लोग कुछ न कुछ जुगाड़ कर अपने लिए उपयोगी सामान बना लेते हैं, जो उनके दैनिक जीवन में बहुत ही ज्यादा उपयोगी होते हैं। जैसे साइकिल पर लगने वाले पुराने टायर को एक दूसरे टायर में फंसा कर झूला बनाते हैं, साइकिल के ही टूटे स्पोक का उपयोग अपने बाड़ी(बागान) को घेरने में किया जाता है। इसी तरह प्लास्टिक की बोरी को फाड़ कर अपने घरों के लिए चटाई बनाई जाती है।
कुछ दिनों पहले पुटुवा गाँव के सुधसिंह जी से मेरी मुलाकात हुई, उन्होंने मुझे बताया कि "पुटुवा में रहने वाले ज्यादातर लोग जुगाड़ द्वारा बांस के दरवाजे बनाते हैं, इस गाँव में बांस का प्रयोग और भी अनेक कार्यों में होता है।“
शहरों में धान से चावल निकालने की अलग मशीन होती है, परंतु गाँव में एक मोटे और लंबे लकड़ी के तने से धान को कूटकर चावल निकाला जाता है जिसे ढेंकी कहते हैं। ढेंकी से बने चावल ज्यादा पौष्टिक होते हैं और मशीन की तुलना में इसके चावल कम टूटते हैं।
इन सभी चीजों को बनाने में कोई भी खर्च नहीं आता, हमें अपने आसपास के वातावरण को देखकर कल्पना करनी चाहिए, और किस प्रकार उसका दोबारा उपयोग कर सकते हैं इसके बारे में थोड़ा विचार करना चाहिए। क्योंकि जिसको हम बाज़ार में खरीद सकते हैं उसको हम अपने घरों में भी बना सकते हैं। हमारे अगल बगल में कुछ ऐसे भी समान होते हैं। जिनको हम बिना उपयोग किए ही फेंक देते हैं। लेकिन जुगाड़ लगाया जाए तो वही चीजें हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं। इस्तेमाल की हुई किसी वस्तु का उपयोग यदि हम जुगाड़ लगाकर दोबारा काम में लाते हैं तो इससे पर्यावरण को भी कम नुकसान होगा।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog samaj sevi sanstha और Misereor का सहयोग है l
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