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"अफवाहों पर विश्वास न करें, कृपया टीका लगवाएँ"—छत्तीसगढ़ की मितानिन आपसे कह रही हैं

Writer's picture: Varsha PulastVarsha Pulast

Updated: May 8, 2021

आप सभी जानते हैं कि कोरोना संकट अपने चरम पर है। दूसरी लहर ने हजारों लोगों की जान ले ली है और कई लोग बहुत बीमार हो रहे हैं। वायरस का मुकाबला करने के लिए सरकार 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का टीकाकरण कर रही है। इस परियोजना में मितानिन महिलाओं के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के सभी लोगों को कोरोना टीकाकरण के बारे में जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है। मितानिन छत्तीसगढ़ की महिला स्वास्थ्य स्वयंसेविकाएँ हैं जो गाँवों एवं छोटे शहरों में स्वास्थ्य प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। वर्तमान में 60,000 से अधिक मितानिन हैं जो जमीनी स्तर पर काम कर रही हैं

हमने एक मितानिन महिला से बात की। उनका नाम है अंजना यादव और उनकी उम्र 35 साल है। उन्होंने हमें बताया कि गाँव में अभी फिलहाल टीकाकरण कराया जा रहा है। लेकिन गाँव के लोगों को टीकाकरण के महत्व और आवश्यकता के बारे में जागरूक करने में उन्हें बहुत ही ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वे गाँव में सभी घरों में जाकर सर्वे कर रही हैं और लोगों को कोरोना महामारी के बारे में बता रही हैं।

अंजना यादव हज़ारों मितानिन में से एक हैं जो घर-घर जाकर जागरूकता अभियान चला रही हैं

मितानिन महिलाएँ गाँव के लोगों को सभी प्रकार की बीमारियों के बारे में जागरूक करती हैं। साथ ही इन बीमारियों से कैसे बचा जाए इसके बारे में भी बताती हैं। अंजना ने हमें बताया कि पहले वे पारा बैठक, मोहल्ला बैठक करवा कर गाँव के लोगों को संक्रमण के बारे में जागरूक करती थी। लेकिन अभी कोरोना महामारी के बाद तालाबंदी होने के कारण उनको एक-एक घर जा जाकर सभी लोगों को व्यक्तिगत रूप से बताना पड़ता है कि किस तरह से कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है। अंजना ने यह भी कहा कि बहुत से लोग टीका लेने से हिचकिचाते हैं क्योंकि टीका लगाने के बाद बुखार आता है। लेकिन वह लोगों के मन से उस डर को यह कहकर हटाने की कोशिश कर रही है कि यह सिर्फ एक प्रभाव है और इस बुखार से किसी भी तरह से उनके स्वास्थ्य को नुकसान नहीं पहुँचेगा।


अमर कुंवर कोरबा जिले की एक मितानिन हैं। वे बांगू पंचायत के लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल करती हैं। यह क्षेत्र ज्यादातर आदिवासियों द्वारा आबाद है। वे कहती हैं कि उनका जागरूकता कार्यक्रम बहुत सफल रहा है और 45 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों ने अपने टीके लगवा लिए हैं। "हम लोगों को बताते हैं कि आपको टीके अवश्य लगवाने चाहिए ताकि आप वायरस से सुरक्षित रहें।" जागरूकता अभियान के अंतर्गत वे सबको बताती हैं कि वैक्सीन से कोई नुकसान नहीं होता है। वैक्सीन लगने के बाद किसी-किसी को एक-दो दिन बुखार आ सकता है जिसके लिए वैक्सीन लिए हुए लोगों को सरकारी हॉस्पिटल की तरफ से ही दवा दे दी जाती है। "कुछ लोग ऐसे हैं जिनको ये भी बताना पड़ता है कि वैक्सीन लेने के बाद तुरंत उठकर घर नहीं जाना है। करीब आधा घंटा स्वास्थ्य कर्मियों की देखरेख में टीकाकरण स्थल पर ही रहना है।" केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि 45 वर्ष से कम उम्र के लोगों को टीके उपलब्ध कराए जाएंगे लेकिन छत्तीसगढ़ के गाँवों में इसे लागू किया जाना बाँकी है। अमर कुंवर कहती हैं, "एक बार जब टीका 18-45 की उम्र के लोगों के लिए शुरू हो जाएगा तो हम उन्हें भी टीका लेने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।"

मितानिन दीवारों पर भी दवाइयों की सूचि लिखती हैं ताकि सारे गाँववालों को रोगों और उसके उपचार के बारे में पता चले,

पिछले एक साल से मितानिन महिलाएँ कोरोना संक्रमण से बचने के लिए लोगों को बता रही हैं कि वे हमेशा मास्क का प्रयोग करें, लोगों से 2 मीटर की दूरी बनाकर रखें, किसी से हाथ न मिलाएँ, किसी से गले न मिलें और हाथ को साबुन से बार-बार धोएं। कोरोना संक्रमण से बचने के सभी उपायों की जानकारी मितानिन के द्वारा दिया जाता है। मितानिन को गाँव की रीढ़ की संज्ञा दी गई है क्योंकि गाँव के लिए जितनी भी योजनाएँ आती हैं उसे मितानिन ही लोगों तक पहुँचाती है।


दीवार-लेखन के माध्यम से जागरूकता

हमने सोनपुरी पारा की एक और मितानिन महिला से बात की। उन्होंने हमें बताया कि वे दीवार-लेखन का काम करती हैं। दीवार-लेखन सूचनाओं को आम जन तक पहुँचाने का एक असरदार तरीका है। दीवार पर लिखी हुई सूचना पर लोगों की नजर आसानी से पड़ जाती है। कोरोना संबंधित सूचनाओं को पहुँचाने में ये बहुत कारगर साबित हुआ है। फिलहाल कोरोना काल में ज्यादा न किसी से मिलना है न ही बात करना है। इसलिए महत्वपूर्ण सूचनाओं और सुझावों को गाँव की दीवारों पर लिख दिया जाता है ताकि लोगों की नजर उस पर पड़े और बिना किसी व्यक्तिगत संपर्क के उन तक सूचना भी पहुँच जाए। दीवार-लेखन में रोगों से बचने की विधि भी लिख दी जाती है जिसे पढ़कर लोगों में अपनी सुरक्षा के प्रति जागरूकता आती है।


गर्मी के दिनों में मितानिन महिलाओं के द्वारा और भी बहुत सारी बीमारियों के बारे में जागरूकता अभियान चलाया जाता है। जैसे, हैजा, दस्त, शरीर में पानी की कमी इत्यादि। मितानिन उन्हें बताती हैं कि अगर दस्त हो रहा हो तो थोड़ा सा नमक और थोड़ा सा शक्कर मिलाकर घोल बनाकर पीना है। उससे शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है।


जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से परेशान अपने घरों में बंद रहने को मजबूर है उस समय हमारी सुरक्षा के लिए जी-जान से काम कर रहे लोगों में मितानिन महिलाएँ भी एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। उनके जज़्बे और योगदान को सलाम है। वे जमीनी स्तर पर लोगों को जागरूक कर उनकी रक्षा करने का काम कर रही हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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