top of page
Writer's pictureShubham Pendro

आज भी ढोढ़ी का पानी पीने के लिए मजबूर हैं इस गांव के आदिवासी

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


आप सभी ने देखा होगा कि, समय के साथ-साथ सभी चीजों में परिवर्तन देखने को मिला है। लेकिन, आज भी एक ऐसा गांव है, जहां के लोग आज भी ढोढ़ी-कुआं से पानी पीते हैं। हम बात कर रहे हैं, उस क्षेत्र की जहां आदिवासी लोग बसे हुए हैं। यहां के लोग उस ढोढ़ी-कुएं का पानी लगभग कई सालों से उपयोग करते आ रहे हैं। क्योंकि, यहां आज भी पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई है। हम आपको बता दें कि, वे आदिवासी जिस इलाके में रहते हैं, उसके आसपास एक भी नलकूप या कुएं की व्यवस्था नहीं है। जंगल किनारे बसे आदिवासी, गांव से कुछ दूरी में रहते हैं और यह जो ढोढ़ी-कुआं है, वह 200 मीटर के दायरे में स्थित है। आदिवासी लोग 200 मीटर तय करके उस ढोढ़ी-कुआं से पानी निकालने जाते हैं। इतनी मेहनत करने के बावजूद भी उन्हें स्वच्छ पानी भी नहीं मिल पाता। वे कुएं के पानी को रस्सी और बाल्टी के सहारे ऊपर खींचते हैं। तब जाकर उन्हें पानी मिल पाता है।

ढोढ़ी-कुएं से पानी निकालती हुई महिलाएं

पहले इस तरह के कुएं में बहुत ज्यादा पानी देखने को मिलता था। लेकिन, अब गांव में पानी का स्तर बहुत ही ज्यादा नीचे चला गया है। जिसकी वजह से पानी की समस्या आए दिन देखने को मिलती है। जब गर्मी और भी ज्यादा बढ़ती है, तो गांव में पानी की समस्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है। नलकूप भी खराब हो जाता है, कुएं का पानी भी सूख जाता है। ग्रामीण दूसरे जगह से पानी का इंतजाम करते हैं और उपयोग में लाते हैं। दूसरे गांव में देखा जाए तो जगह-जगह नलकूप और टैंकर बनाए रहते हैं, पानी की व्यवस्था के लिए। लोगों के द्वारा बताया जाता है कि, दिन में पूरी तरह कुएं का पानी सूख जाता है और रात में पझरा हुआ कुएं का पानी इकट्ठा होता है और दिन में गांव के लिए उसी पानी को उपयोग में लाते हैं।


पोंडी ब्लाक के अंतर्गत आने वाला ग्राम कोडगार के निवासी, जिनका नाम धनप्राताप सोरठे जी है और जिनका उम्र 40 वर्ष है। उनका कहना है कि, "इस ग्राम के सभी मोहल्ले में पानी की व्यवस्था है। लेकिन 10 आदिवासी लोगों के मोहल्ले में पानी की सुविधा नहीं हो पाई है। उस मोहल्ले को ‘पहाड़ पारा’ मोहल्ले के नाम से जाना जाता है। और ना ही उस मोहल्ले में नलकूप है और ना ही कुएं का बंदोबस्त किया गया है। इसलिए, उस मोहल्ले के आदिवासी लोग ढोढ़ी-कुआं से आज भी पानी निकालते हैं, जो पुराने समय में खेत में बनाया गया था। उस ढोढ़ी-कुएं का पानी, गांव के मोहल्ले के लोग पीने के लिए उपयोग में ला रहे हैं। लेकिन, गर्मी के दिनों में पानी का स्तर इतना नीचे चला जाता है कि, पानी पीने योग्य भी नहीं हो पाता। गंदे पानी को पीने के लिए आदिवासी लोग मजबूर हो जाते हैं। हमारे आसपास में बहुत कम ऐसे गांव हैं, जहां इस तरह के ढोढ़ी-कुआं देखा जाता है। अब तो समय के साथ-साथ लोगों में व वस्तुओं में हर चीजों में परिवर्तन देखने को मिला है। पहले के लोग स्वयं कुआं खुदाई कर लकड़ी का घेराव बनाकर एक कुएं को आकार का रुप दे देते थे। लेकिन, अब बहुत मुश्किल से इस तरह के कुआं देखने को मिलते हैं।"

धनप्राताप सोरठे

हमने आसपास के गांव के लोगों के साथ भी चर्चा किया कि, गर्मी के दिनों में दूसरे गांव में पानी का स्तर कैसा होती है। तो उन्होंने हमें जानकारी दिया कि, पहले तो पानी का स्तर बहुत ही अच्छा था, हमें पानी बहुत आसानी से मिल जाया करता था। लेकिन, कुछ समय से पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया है। जिससे हमें पानी की व्यवस्था करना बहुत मुश्किल हो जाता है। हमारे गांव के आसपास ऐसे भी गांव हैं, जहां पानी की समस्या आए दिन बनी रहती है। चाहे वह गर्मी के दिनों में हो या बरसात के दिनों में हो। बरसात के दिनों में नलकूप से गन्दा पानी निकलना शुरू हो जाता है, जो पीने योग्य नहीं होता है। जंगल क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए पानी की समस्या तो और भी ज्यादा बढ़ जाती है। क्योंकि, जंगलों में अगर नलकूप या कुएं तैयार किए जाए तो, जमीन के नीचे से चट्टान निकल जाता है। जिसकी वजह से भी पानी नहीं निकल पाता। अप्रैल माह में पानी की समस्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है। भीषण गर्मी के वजह से कुएं और तालाब भी सूखने लगते हैं। गर्मी के वजह से जमीन फटना शुरू हो जाता है, पशु-पक्षी प्यास के वजह से गर्मी के दिनों में नदी-नाले की ओर बढ़ने लगते हैं और नदी में इकट्ठा थोड़ा बहुत पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं। इस तरह की स्थिति बताती है कि, गर्मी के दिनों में बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


गर्मी के दिनों में और क्या-क्या समस्याएं होती है?


गर्मी की समस्या से निपटने के लिए जंगली जानवर भी गांव की ओर बढ़ने लगते हैं। जहां डैम का निर्माण किया गया रहता है, वहां गर्मी के दिनों में थोड़ा बहुत पानी इकट्ठा हुआ ही रहता है, जहाँ जंगली जानवर जाकर अपना डेरा जमा लेते हैं। जैसे कि, हाथी, जो थोड़ा बहुत पानी अगर देख ले तो वहीं पर अपना डेरा जमाने लगते हैं। जिससे जंगल के किनारे में रहने वाले लोगों को बहुत ही ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है। आप सभी जान रहे हैं कि, हाथी गांव में तबाही मचाने में पीछे नहीं रहते और आए दिन समाचार में देखने को मिलता है कि, हाथी वनांचल क्षेत्रों में जा घुसे हैं और तोड़फोड़ कर रहे हैं।

इस नाले के पानी से पशु-पक्षी बुझाते हैं प्यास

पहले इस तरह की समस्या देखने को नहीं मिलती थी। लेकिन, कुछ समय से जबसे पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई शुरू हुई है। तब से पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया है, साथ-ही-साथ जंगली जानवर भी जंगलों के अंधाधुंध कटाई के वजह से गांव की ओर प्रवेश करने लगे हैं। मुझे लगता है कि, जिस तरह से आज पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, अगर उसे समय पर रोक दिया गया रहता। तो आज लोगों को और पशु-पक्षियों को पानी के समस्याओं से जूझना नहीं पड़ता और ना ही पानी के लिए दर-दर भटकना पड़ता। पानी का स्तर बनाए रखने के लिए पेड़-पौधे ही एक मात्र ऐसे कड़ी हैं, जो पारिस्थितिक तंत्र को ठीक कर सकती है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


Comentários


bottom of page