धरती आबा, बिरसा मुंडा की जन्मभूमि और कर्मभूमि झारखण्ड होना, यह यहाँ के आदिवासियों के लिए बहुत गर्व की बात है। मेरा तो उस क्षेत्र में निवास रहा है, जहाँ बिरसा मुंडा की पढ़ाई हुई, और बाद में जहाँ वे अंग्रेज़ों के विरुद्ध भीषण युद्ध लड़े। ऐसे में उनकी जन्मभूमि पर जाने का विचार ही मुझे रोमांच से भर देता है। मैं धरती आबा के जन्मदिन पर उनके गाँव उलीहातु में था। मेरे लिए यह जीवन का सबसे गर्व पूर्ण छण था। जब से वहाँ जाने का सोचा तभी से शरीर मे अलग हलचल होने लगा, और उस पवित्र पावन धरती पर पहला कदम रखते ही एक सकारात्मक तरंग शरीर में दौड़ने लगी।
इस 15 नवंबर पर पूरे गाँव का माहौल एवं सम्पूर्ण वातावरण इस तरह था मानो सबकुछ हमारा ही स्वागत कर रहे हों। गाँव में प्रवेश करते ही एक वृद्ध महिला और उनके पति से मुलाक़ात हुई, वे दोनों आग सेंक रहे थे और महिला अपने हाथों से खजूर की चटाई बना रही थी।
हम भी साथ बैठ कर उनके साथ बातचीत करने लगे, बातचीत से पता चला कि वे लोग खजूर के पत्ते बाहर (छत्तीसगढ़, ओडिशा) से लाते हैं। गाँव के ज्यादातर लोग खेती पर निर्भर हैं, साल में एक बार धान की खेती करते हैं और बाकी समय कुछ-कुछ लोग साग-सब्जी लगाते हैं। सरकारी योजनाओं के बारे पूछने पर पता चला कि, यहाँ सड़क और नलकूपों के अलावा विकास का कुछ भी काम नहीं हुआ है। गाँव वालों का जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर है और ग्रामवासी अपनी हर ज़रूरत की पूर्ती प्रकृति से ही कर लेते हैं। थोड़ी दूर जाने पर कुछ युवक युवतियां दिखें जो आखाड़ा को बहुत ही सुंदर तरीके से सजा रहें थे। उनमें से एक युवक सतीश मुंडा से हमने बातचीत की, वे बताते हैं कि, "आज (15 नवंबर) धरती आबा के जन्मदिन के शुभ अवसर पर हम लोग अखाड़ा को सजाते हैं, और शाम के समय पूजा पाठ करके नाच-गान करते हैं।" सतीश से युवाओं के बारे में पूछने पर पता चला कि, गाँव में कोई भी युवा टिकता नहीं है, कोई काम की तलाश में पलायन कर जाते हैं तो कोई उच्च शिक्षा के लिए गाँव से दूर चले जाते हैं। अब स्थिति यह है कि बस दो-चार युवा ही गाँव में बचे हैं, वे भी गाँव से चले जाना चाहते हैं।
धरती आबा के स्मारक स्थल ( यही उनका जन्मस्थली भी माना जाता है) पर अनेकों लोगों की भीड़ लगी हुई थी, कई सारे अधिकारी और नेताओं का हुजूम उमड़ा हुआ था। हम लोग उसी भीड़ के बीच से ही धरती आबा के पत्थलगडी और उनकी मूर्ति का दर्शन किए, फिर उनके अनुयायियों से मिलें। सुन्दर मुंडा नामक एक अनुयायी से जब हमने धरती आबा के विचारों के बारे में जानने की इच्छा जताई तब वे बताते हैं कि, “धरती आबा बहुत ही सीधा-सादा व्यक्ति थे, वे बचपन से ही बहुत दयालु थे। उनका जन्मदिन तो अभी तक किसी को सही से पता भी नहीं है। ये जो लोग 15 नवंबर को उसका जन्मदिन मनाते हैं ये अनुमानित है, असल वाला नहीं है। जन्मस्थली में भी संशय है, कुछ लोग उलिहातु कहते हैं, तो कुछ लोग चलकद। धरती आबा बिरसा मुंडा जब आनंद पाण्ड से जड़ी बूटियों की पहचान करना और औषधि बनाने सीखें। तब उस विद्या से लोगों की सेवा करते थे। धरती आबा उस विद्या को अपने तक सीमित नहीं रखना चाहते थे, वे अपने ज्ञान को दूसरों में भी बाँटते थे।
अनेक लोग धरती आबा के साथ गाँव-गाँव जाकर लोगों की सेवा किया करते थे। जहाँ धरती आबा नहीं जा पाते थे वहाँ उनके शिष्य जाते थे। उनका कार्य इतना प्रचलित हुआ कि, दूसरे समुदाय के लोग भी उनके पास आते थे और अपना दुःख तकलीफ सुनाते थे साथ ही वैद्य की शिक्षा भी सीखते थे। धरती आबा भेदभाव को नहीं मानते थे इसलिए वे सभी के साथ मिल जुलकर रहते थे, साथ में खाते पीते थे, उनके इन्हीं व्यवहारों को देखकर ही लोग उन्हें प्यार से धरती आबा कहने लगे। लोग बिरसा मुंडा के नाम से नहीं बल्कि धरती आबा के नाम से ही पुकारते थे। वे अहिंसा के मार्ग पर चलने में विश्वास करते थे, इसीलिए उन्हें जब तक किसी से खतरा नहीं होता तब तक अपने तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे। वे इंसानों के अलावा बाकी जीव जंतु का भी खयाल रखते थे। अब हम लोग भी उन्हीं के बताए हुए मार्ग पर चलते हैं। हम लोग भी घर-घर जाकर निःस्वार्थ भाव से सेवा देते हैं। हम लोग सेवा कार्य से अन्य राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, प. बंगाल और ओड़िशा भी जाते हैं। हमें किसी चीज़ का मोह माया नहीं है, हम सादा कपडा पहनते हैं जिसमें कोई रंग नहीं, न ही कोई बॉर्डर होता है। जितना संभव हो उतना हम लोग सेवा दे रहे हैं और आगे भी ऐसे ही निःस्वार्थ भाव से सेवा देते रहेंगे।“ ये कहकर सुन्दर जी हमें एक प्रार्थना भी सुनाते है जिसमें पूरा पर्यावरण, संस्कृति, जीवनशैली, प्राकृतिक के नियम और धरती आबा के विचारों का वर्णन सरल भाषा में मिला।
इस पावन अवसर पर बहुत से नेता आते हैं जो मंच पर दो चार जन कल्याण के ऊपर अपना भाषण देते हैं, और धरती आबा के जन्म स्थली पर मौजूद मूर्ति एवं पत्थलगाड़ी में अगरबत्ती जलाते हैं, फूल चढ़ाते हैं फिर धरती आबा के परिवार वालों को तथा उनके अनुयायियों को अंगवस्त्र देते हैं। इन सब के बीच फ़ोटो खिंचवाने का और वादा करने का दौर तो चलता ही रहता है। यह सब देखते हुए सुभाष मुंडा बोलते हैं “आज के दिन हमारे गांव में बहुत बड़ा कार्यक्रम होता है। लेकिन यह ऐसा कार्यक्रम है जिससे गाँव वालों को कोई फायदा नहीं होता है, बल्कि ये सभी लोग गाँव में गंदगी फैला कर चले जाते हैं। अगले दो दिनों तक हम ही लोगों को सफ़ाई करना पड़ता है।"
केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हो, इन कार्यक्रमों में पैसा लगाने के साथ-साथ यदि गाँव वालों के हित के बारे में सोचा जाता तो बहुत अच्छी बात होती। सिर्फ़ दिखावा, झूठे आश्वसनों और नेताओं की लचर मानसिकता का ही परिणाम है कि, आदिवासियों के इतने बड़े क्रांतिकारी वीर योद्धा, धरती आबा, बिरसा मुंडा का गाँव अभी भी अविकसित है। ग्रामीणों को शारीरिक, नैतिक, मानसिक और आर्थिक रूप से मज़बूत करने की बहुत ज़रूरत है। सरकार को गाँव के विकास की योजनाएं बनाना चाहिए और सामाजिक संगठनों को भी सरकार का साथ देकर गाँव के विकास के लिए कदम उठाना चाहिए। इस उलीहातु गाँव के सभी लोगों की जीवन खेती पर निर्भर है। अतः ग्राम वासियों को खेती के लिए उचित तकनीक, और उचित बीज देना चाहिए, ताकि उत्पादन सही तरीके से हो सके। गाँव में शिक्षा व्यवस्था को भी बेहतर किया जाना चाहिए। यह बहुत दुःखद और शर्मदाई बात है कि, जिस ज़मीन पर ऐसे महान व्यक्ति के क़दम पड़े वह ज़मीन और वहाँ के लोग अभी भी बदहाली में पड़े हुए हैं।
अंत में मैं उस पवित्र भूमि से कुछ गर्वित भावना, कुछ सुखद अनुभव और मन को थोड़ा भारी किए हुए घर की ओर लौटा।
लेखक परिचय:- चक्रधरपुर, झारखंड के रहने वाले, रविन्द्र गिलुआ इस वक़्त अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर कर रहे हैं, भारत स्काउट्स एवं गाइड्स में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हैं। लिखने तथा फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी करने के शौकीन रविन्द्र जी समाजसेवा के लिए भी हमेशा आगे रहते हैं। वे 'Donate Blood' वेबसाइट के प्रधान समन्वयक भी हैं।
You are an inspiration for today's youth. Keep it up👍
आपके इस लेख को पढ़कर मेरे मन को बहुत ही सुकून मिला,आपने अपने लेख में जिस तरह एक महान हस्ती की जीवनी के साथ उस गांव में बसे लोगों की परेशानियों एवं तकलीफों को सबके सामने उजागर किया है,ये प्रशंसनीय है।इस लेख को पढ़ कर धरती आबा के इस पावन धरती पर जाने की अब हमारी भी दिली ख्वाहिश बढ़ गई है। आशा करते हैं की हमारी सरकार का ध्यान वहां के लोगो की विकास की ओर जाए,ताकि वहां के लोग जिस सिद्दत और इज़्जत के साथ धरती आबा के कर्म और धर्म की निःस्वर्थ भाव से पालन कर रहे हैं,वो बनी रहे।
जोहर।।
आपने अपना अनुभव साझा किया है उसके लिए धन्यवाद। लेख पढ़कर ऐसा लगा मानो मैने भी उस पवित्र भूमि की यात्रा कर ली हो, आशा करते हैं आने वाले दिनों में वहां प्रगति हो और वहां के लोग सम्पन्न हो।
Bahut Shandar anubhav Rabindra Gilua ji ,Yuvaon k liye inspiration hn ap,aise hi samaj or apke sapno ko sakar kijiyega yehi Singbonga Birsa Munda se Tuman 🙏
Very nice 🙂👍