यह सर्वत्र ज्ञात है कि छत्तीसगढ़ की शादियों में प्रकृति पूजा एवं परंपरा का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। पर क्या आप यह जानते हैं कि छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के विवाह अवसर पर उपयोग किया जाने वाला सेहरा, जिसे यहाँ की स्थानीय भाषा में "माऊर" भी कहा जाता है, वो किससे और कैसे बनाया जाता है? आइये आज हम आप को इसके बारे में बतलाते हैं।
जंगली खजूर, जिन्हें लोग सिर्फ़ काँटों का वृक्ष समझते हैं,और छावनी आदि में उपयोग करते हैं, उन्हीं खजूर के मुलायम पत्तों का उपयोग कर यहाँ के आदिवासी अपने विवाह संस्कार के लिए सुन्दर सेहरे का भी सृजन करते हैं। इसके लिए उन्हें किसी पर आश्रित नहीं होना पड़ता।
55 वर्षिय झुमुक राम, ग्राम कोसमी, जिला गरियाबंद निवासी, ने बताया कि वह और उनका परिवार विगत कई वर्षों से यह कार्य करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक शादी में माऊर(सेहरा) बनाने के लिए 2-3 दिनों का समय लग जाता है।
इस दौरान उन्हें इन सब प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है।
सबसे पहले जंगली खजूर के मुलायम पत्तों को काट कर उन्हें सुखा दिया जाता है।
उसके बाद इन्हें पानी में अच्छे से भिगो लिया जाता है, ताकि पत्तियाँ न टूटें।
उसके बाद माऊर के छोटे छोटे हिस्सों को पहले बना लिया जाता है।
फिर इसके बड़े हिस्सों को तैयार किया जाता है।
उसके बाद इसमें रंग-रोगन का कार्य किया जाता है।
सेहरे के सभी भाग बन जाने के पश्चात इन सब को एक दूसरे से जोड़ दिया जाता है।
इस प्रकार माऊर(सेहरा) बन कर तैयार हो जाता है I
झुमुक राम की पत्नी से बातचीत करने से यह भी पता चला कि आदिवासियों के विवाहों की अलग-अलग परम्पराओं और विधियों में अलग-अलग माऊर की आवश्यकता होती है। इस लिए उन्हें रीतियों के अनुसार माऊर बनाना पड़ता है। जैसे, तेल चड़नी माऊर, मड़वा चड़नी माऊर, एवं फेरों आदि के लिए टिकावन माऊर की आवश्यकता होती है। माऊर बनाने के लिए उन्हें इन सब बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखना पड़ता है।
इतने परिश्रम के बाद भी इन्हें थोड़े चावल और नेग के रूप में सिर्फ़ 400-500 रुपये ही मिल पाते हैं। फिर भी वे अपने इस कार्य से बेहद खुश हैं।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अन्तर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है l
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