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जानिए गोंड वीरांगना, महारानी दुर्गावती मांडवी के बारे

Writer's picture: Tumlesh NetiTumlesh Neti

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी, ये कविता हम सब ने पढ़ी होगी और हमने रानी लक्ष्मी बाई की वीरता के किस्से भी सुने हैं। भारत के विभिन्न आदिवासी समुदाय भी ऐसी ही एक रानी की वीरगाथा सुनाते हैं जो अपने राज्य, अपने देश, अपनी इज्जत के लिए अपना बलिदान दिए हैं। और ऐसी ही एक कविता गोंडवाना राज्य के वीरांगना रानी दुर्गावती के लिए भी बोली जाती हैं। आदिवासी क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष आज यानी 24 जून को उनकी पुण्यतिथि को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है।


दुर्गावाती का जन्म कीरत साय (कीर्ति सिंह चंदेल) के यहाँ 05 अक्टूबर सन् 1524 में हुआ था। कीरत साय (कीर्ति सिंह चंदेल) एक राजा थे। वर्तमान समय में यह कालिजर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में आता है। कीरत साय बहुत बड़े दुर्गा भक्त थे, जिस दिन उनकी पुत्री का जन्म हुआ उस दिन भी दुर्गा अष्टमी था इस लिए कीरत साय ने अपनी पुत्री का नाम दुर्गावती रख दिया। कीरत साय का नाम बड़े आदर से लिया जाता था उनके राज में सभी सकुशल एवं संपन्न थे।



विवाह प्रस्ताव की सूचना संग्राम शाह जी को मिला तो उन्होंने ने भी इसे एक राजनीतिक रणनीति की भांति लिया। 1542 में राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपत शाह के साथ दुर्गावती का विवाह तय कर दिया। इस तरह से राजपूतों की बेटी दुर्गावती गोंड़वाना साम्राज्य की रानी दुर्गावती बन गई। क्योंकि राजा दलपत शाह का वंश मंडावी गोत्र से थे इसलिए दुर्गावती विवाह के बाद रानी दुर्गावती मंडावी कहलाने लगी। यह विवाह संधि भारत के और भी कई राजाओं को चुभने लगी थी क्योंकि इस विवाह से राजा दलपत सिंह और भी शक्तिशाली हो गए थे। मालवा के राजा इस विवाह से सबसे ज्यादा नाखुश थे।

कुछ ही समय बाद रानी दुर्गावती ने सन 1945 में एक वीर पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम वीरनारायण रखा गया, परंतु इसके कुछ ही वर्ष बाद राजा दलपत शाह की मृत्यु 1550 में हो गई। बिना राजा के प्रजा अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगी थी और राज्य में विद्रोह होने लगे तो रानी दुर्गावती ने अपने छोटे से पुत्र को गद्दी में बिठा कर एक संरक्षक की भांति राज्य में शांति बनाए रखी।


जैसे ही राजा की मृत्यु की सूचना बाज बहादुर सिंह को मिली तो उसने तुरंत ही रानी दुर्गावती के राज्य में आक्रमण कर दिया लेकिन रानी दुर्गावती की सूझबूझ और कुशल युद्ध नीति से लाल बहादुर सिंह युद्ध में हरा दिए गए। कुछ ही समय बाद बाज बहादुर सिंह के ऊपर अकबर का कब्जा हो गया। रानी दुर्गावती का राज्य बहादुर सिंह के राज्य से बिल्कुल लगा हुआ था इसलिए अकबर की नजर अब रानी दुर्गावती के राज्य पर भी थी। अकबर ने अपनी सेनापति अब्दुल मजीद खान के द्वारा एक संदेश रानी दुर्गावती को भेजावाया कि रानी दुर्गावती अपने प्रिय हाथी सरमन और सूबेदार आधार सिंह को लेकर उनके राज दरबार में उपस्थित हों। तुरंत ही इस संदेश को पढ़कर रानी दुर्गावती को अकबर के मंसूबों का पता चल गया की अकबर की नजर अब उनके राज्य पर है लेकिन उन्होंने इस संदेश को युद्ध के ऐलान की तरह लिया और उन्होंने अकबर को युद्ध के लिए चुनौती दे डाली।

अकबर लगातार तीन बार रानी दुर्गावती के शौर्य के सामने अपने आपको हारा हुआ पाया फिर चौथी बार रानी दुर्गावती को युद्ध में बंदी बनाने का योजना बनाई गई, इस योजना के चलते रानी दुर्गावती दुश्मनों के सामने चारों तरफ से घिर गईं, तब दुश्मनों के हाथों मरने के बजाय उन्होंने अपने ही तलवार से मर जाना चुना।


वे हार कर भी जीत गईं। रानी दुर्गावती की इसी वीरता को याद कर के हुए आज के दिन उनकी पुण्यतिथि को देश भर में मनाया जाता है। रानी दुर्गावती के बलिदान को सम्मानित करने के लिए भारत सरकार द्वारा उनके नाम की डाक टिकट भी जारी किया गया है। रानी दुर्गावती मंडावी आदिवासी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। अपने हक़ के लिए लड़ने वाली सभी आदिवासी महिलाएं रानी दुर्गावती की कहानियों से प्रेरणा प्राप्त करती हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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