छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में वर्षों से गोंड आदिवासी समुदाय निवासरत हैं। इस जिले में आदिवासीयों की बहुलता है और उनकी एक अलग ही पहचान है। यह क्षेत्र पहले बिन्द्रानवागढ के नाम से मशहुर था और इस क्षेत्र में गोंड राजा का राजतंत्र हुआ करता था। गरियाबंद जिले को राजाकचना धुरवा की कर्म भुमि माना गया है। यहाँ आज भी उनका किला देखने को मिलेगा।

इस वर्ष 16-17 अप्रैल को अखिल भारतीय गोंड अमात समाज, बिन्द्रानवागढ़ केन्द्रीय समिति द्वारा दो दिवसीय महाधिवेशन का आयोजन किया गया। यह विकास खण्ड छुरा के बोडराबांधा में सम्पन्न हुआ जिसमें कई हज़ारों की संख्या में गोंड आदिवासी समाज के लोग शामिल हुए। यहाँ के गोंड आदिवासी हर पाँच साल में महाअधिवेशन करते हैं, जिसमें मातृ शक्ति, पितृ शक्ति, युवा शक्ति एवं युवती शक्ति मौजूद होते हैं। सभी लोग पारम्परिक वेशभूषा में इसमें शामिल होते हैं।
यह कार्यक्रम कलश यात्रा से आंरभ होती है, जहाँ देव गुडी से गाँव की ओर साज-सज्जा श्रृंगार कर गुदुम बाजा बजाते गीत गाते हुए मातृ शक्ति एवं युवती शक्ति कलश को अपने सिर पर रख कर भ्रमण करती हैं। जिसमें सभी सगा जन उपस्थित होते है, आगे-आगे कर्मा नृतक दल नृत्य-गान करते हुए चलते हैं। बस्तर के मादंरी पीठा जैसे मनोरम नृत्य भी देखने को मिलते हैं। भ्रमण कर पुनः देव गुड़ी के पास आकर कलश स्थापना कर बडा़देव की सेवा गोगो किया जाता है। पांच कलश में दीप प्रज्वलित कर गोंडवाना के देवी-देवताओं को सेवा जोहर एवं अर्जी विनती करते हैं और सतरंगी ध्वजारोहण किया जाता है।
इस महाधिवेशन में बुद्धिजीवीयों ने समाज कि दशा-दिशा को बातते हुए गाँव-गाँव में गवरा कलश स्थापना करने की बात कही जो हमारे पुरखों द्वारा दी गई परम्परा है, संस्कृतिक व पंडुम पर्वों को वर्तमान में लोग भुल रहे हैं जिसके कारण आज गोंडवाना के लोग भटक गए हैं इसपर भी चर्चा की गई। शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए समाज के लोगों को प्रेरित किया गया। रात में गोंडवाना सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ जिसमें से रेला पाठा नृत्य गान प्रस्तुत किया गया, कर्मा नृत्य गान हुआ। और समाजिक नियामवली संशोधन में चर्चा व परिचर्चा किया गया।

दूसरे दिन अपने पुरखा शक्ति को सेवा अर्जी किया गया। इस साल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री माननीय तिरूमाल भुपेश बघेल जी आदिवासी गोंड समाज के इस कार्यक्रम में शामिल हुए जिनका पारम्परिक तरीके से स्वागत किया गया। और उन्हें आदिवासियों का पारम्परिक भोजन भी खिलाया गया। माननीय मुख्यमंत्री जी ने आने उद्बोधन में आदिवासी शहीदों को याद कर, जल-जंगल-ज़मीन को बचाने की बात कही, और लोगों को सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ लेने के लिए बोले।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
Comentários