पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
छत्तीसगढ़ के आदिवासी सावन माह की अमावस्या पर होने वाली हरेली त्यौहार को साल की पहली त्यौहार के रूप में मनाते हैं। लगातार बारिश से खेतों की शुरुआती जुताई-रोपाई का काम होने पर खेतों में हरियाली बरकरार रहने के लिए, इस त्यौहार को मनाया जाता है। हरेली में कृषि से जुड़े प्रत्येक औजारों की पूजा की जाती है, और बच्चे गेंड़ी का आनंद लेते हैं। इस अवसर पर सभी के घरों में विशेष प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं। चावल के आटे से बनी चीला रोटी को इस दिन लोग खूब चाव से खाते हैं। इस त्यौहार में सभी के घर यह चीला रोटी बनता है। कोई इसे नमकीन बनाता है, तो कोई इसे मीठा भी बनाते हैं। यह खाने वालों की पसंद के ऊपर होता है। इस तरह से यह त्यौहार परम्पराओं से भरी हुई है।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी पुराने समय से चली आ रही इस हरेली त्यौहार को मानते आ रहे हैं। पुरखों द्वारा बनाई गई परंपरा को आज भी यहाँ के आदिवासी जीवित रखे हुए हैं, जिसे प्रति वर्ष सावन माह में मनाया जाता है। गांव के आदिवासी अहले सुबह से ही इस त्यौहार की तैयारी में लग जाते हैं। सुबह होते ही लोग खेती में इस्तेमाल होने वाले सभी औजारों (हल,फावड़ा, हँसिया इत्यादि) को धोने के लिए तालाबों एवं नदी की ओर निकल जाते हैं। इन औजारों पर पूजा करते समय चावल के आटा का लेप लगाया जाता है।
गौशाला जिसे स्थानीय आदिवासी अपनी भाषा में (कोठा) कहते हैं। इस कोठा के समतलीकरण के लिए मुरुम का उपयोग किया जाता है। चूँकि निरंतर बैलों और गायों के चलने एवं मल-मूत्र से जमीन खुरदुरी और गीली हो जाती है। हरेली के दिन गांव के लोग खेतो में काम नहीं करते हैं। हरेली में खेतों में काम करने पर कई गांवों में आर्थिक दंड लेने की परम्परा है। इस नियम को मानना या ना मानना गांव-गांव के ऊपर होता है।
आदिवासी अपने-अपने खेतों में भेलवा या चार पेड़ के छोटे-छोटे डंगाल (टहनी) को खेतों के बीच में लगाते हैं,साथ ही हल्दी वाली दूध को छिड़कते हैं। गौशाला में भी इनके डंगाल को लगाते हैं। इन डंगाल को लगाने के पीछे की मान्यता है कि खेतों और गौशाला में लगाने पर उक्त फसल और पशुधन में किसी प्रकार की बीमारी नही होगी तथा इनके जीवन मे हमेशा हरियाली रहेगी। हरेली के अवसर में गेंड़ी बनाकर चढ़ने की परम्परा है, इसलिए गांव के सभी बच्चे बांस की बनी गेंड़ी पे चढ़ने का खूब आनंद लेते हैं। बांस की लकड़ी में कमची लगाकर बनाई जाने वाली गेंड़ी के प्रति युवाओं का उत्साह देखते बनता है।
कई गांवों में गेंड़ी दौड़ का भी आयोजन किया जाता है। पिछले साल छत्तीसगढ़ शासन द्वारा निर्देश दिया गया था कि उक्त वर्ष में हरेली त्यौहार के दिन स्कूलों में गेंड़ी प्रतियोगिता का आयोजन रखा जाय और विजेताओं को विशेष पुरस्कार दिया जाए।
हरेली पर्व के साथ शुरू हुआ गौ-मूत्र की खरीदी : नवभारत टाइम्स के अनुसार कोरबा जिले के सेन्द्रीपली और चिर्रा गौठान में कोरबा कलेक्टर सहित अन्य जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में कृषि यंत्रों की विधिवत पूजा अर्चना और लोगों की खुशहाली की कामना की गयी। इसके बाद गायों को चारा खिला कर उनकी पूजा की गयी। पूजा के दौरान विधायक एवं कलेक्टर समेत ग्रामीणों ने गेंड़ी चढ़कर हरेली पर्व की खुशियां मनाई। हरेली पर्व के अवसर पर जिले के सेन्द्रीपली और चिर्रा गौठान में गौ-मूत्र की खरीदी की शरुआत की गयी। पहले दिन जिले के 16 हितग्राहियों से 87 लीटर गौ-मूत्र की खरीदी इन दो गौठानों में की गयी। गौ-मूत्र में नीम, सीताफल, पपीता, करंज और आमरुद आदि के पत्ते मिलाकर जैविक खाद एवं कीट नियंत्रक तैयार किये जायेंगे।
कृषि विकास कल्याण विभाग और जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा गौ मूत्र खरीद पर 4 रुपये प्रति लीटर कीमत तय की गई है। ग्रामीणों को गोबर के साथ-साथ अब गौ-मूत्र से भी अच्छी-खासी आमदनी हो सकेगी, जिसकी खरीदी स्वयं-सहायता समूह के द्वारा करायी जायगी।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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