छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से अलग करने का विचार आज़ादी से पहले ही रखा गया था। सर्वविदित है कि 1 नवंबर सन 2000 को छत्तीसगढ़ स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापना किया गया। हम आपको बताना चाहेंगे की जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग हुआ उस समय यहां की शिक्षा स्तर क्या रहा होगा और वर्तमान शिक्षा स्तर में क्या अंतर है ? यदि हम सन्न 2000 के समय छत्तीसगढ़ की शिक्षा देखें तो उस समय शिक्षा लगभग अदृश्य थी, वनांचल क्षेत्रों में शिक्षा क्या है ये भी नहीं जानते थे, अगर शिक्षा कहीं दी भी जाती थी तो उसका महत्व सभी को पता नहीं था। परन्तु धीरे-धीरे गाँवों में अक्षर यात्रा, साक्षर भारत अभियान, एकल शिक्षा केंद्र आदि के माध्यम से लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता लाया गया। शुरुआत में शिक्षकों के अभाव की वजह से गाँव के किसी पढ़े लिखे व्यक्ति द्वारा ही लोगों को पढ़ाया जा रहा था।
हमने प्रेम सिंह अगरिया जी से भी बातचीत की जो उस समय शिक्षा की महत्व को नहीं जानने के कारण तीसरी कक्षा तक ही पढ़ पाए। वे बताते हैं कि "उस समय पढ़ाई का क्रम और पढ़ाने की शैली कुछ अलग ही थी जैसे की वर्णमाला में 'अ' से 'श्र' तक पढ़ाने कि शैली कुछ इस प्रकार था -
अ आनार का
आ आम का
इ इमली का
ई ईख का
उ उन का
ऊ उल्लू का आदि l
जिसे अभी सुनने को नहीं मिलता है l हमनें अंग्रेज़ी विषय नहीं पढ़ा है l गणित में विशेष गिनती और पहाड़ा पढ़ाया जाता था जिसमें पाव, ग्राम, अधहा, आदि रहा जिसको पढ़ना हमारे लिए बहुत कठिन है तथा जिसको धीरे-धीरे हमने कुछ समय तक सीखा उसके पश्चात शिक्षक के पिटाई के कारण पढ़ाई वहीं तक छोड़ दिया इसके बाद अपने माता पिता के कार्यों में सहयोग करने लग गया।"
इस बदलते हुए 21 वर्षीय छत्तीसगढ़ पर एक झलक डालें तो सन्न 2010 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ का साक्षरता 63.6% एवं 2011 में 70.3% रहा l जिसमें संपूर्ण भारत की स्थिति में शिक्षा स्तर में 22वें स्थान हमारे छत्तीसगढ़ ने प्राप्त कियाl उस समय छत्तीसगढ़ पर शासकीय विश्वविद्यालय 4 थे और वर्तमान में 11 हो गए हैं l कोरोना काल में शिक्षा के स्तर में भारी कमी आ गई है, ऑनलाइन की पढ़ाई और स्कूल की पढ़ाई में बहुत अंतर है। शिक्षिका पुष्पा कंवर जी बताती हैं "मैं अभी प्राईमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ा रही हूं जिसमें 40 बच्चे हैं परंतु केवल 10 से 15 बच्चों को ही ऑनलाइन पढ़ाई समझ में आता है, अनेक बच्चों के पास मोबाईल नहीं होने के कारण वे शिक्षा से वंचित हो रहें हैं।"
पहले की अपेक्षा छत्तीसगढ़ के शिक्षा में बहुत सुधार हुआ है। पहले लोग पढ़ने के लिए बहुत दूर-दूर जाते थे और अभी स्कूल को गाँव की ओर ले जाया जा रहा है, सरकार के साथ-साथ कई संगठन भी हैं जो इस राह पर अपनी भूमिका निभा रहे हैं। जिसमें से एक है वन बंधु परिषद का एकल विद्यालय जो गाँव-गाँव तक एकल शिक्षा केंद्र खोलकर संध्या के समय गांव के चबूतरा, चौराहों पर बच्चों को शिक्षा देने का सराहनीय कार्य कर रही है। गाँवों में माता-पिता भी जागरूक होकर बच्चों को काम कराने के बजाय स्कूलों में पढ़ाने भेज रहे हैं।
हालांकि इन 21 सालों में छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था बहुत बढ़िया तो नहीं हुआ है, परंतु काफ़ी सुधार हुआ है। यदि प्रशासन का रवैया शिक्षा को लेकर सही रहा तथा सामाजिक संगठन भी यदि शिक्षा को लेकर जागरूकता फैलाने का कार्य ठीक से करते रहें तो छत्तीसगढ़ के आदिवासी सुशिक्षित होने में वक़्त नहीं लगाएँगे।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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