कोरोना महामारी दूसरी दफा अपना भयंकर स्वरूप दिखा रही है। आज पूरा विश्व इस महामारी से त्रस्त है। कोरबा में एक दिन में छः सौ से अधिक लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं। ये एक चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है।
कोरोना के संक्रमण को रोकने एवं वायरस को कमजोर करने के लिए अब 18 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों को वैक्सीन (टीका) दिया जा रहा है।
सोशल मीडिया बहुत आवश्यक जानकारियों को न समझ पाने वालों को समझाने, सही गलत से परिचित कराने का एक बहुत बड़ा माध्यम है। समाज में हर तरह के लोग रहते हैं। सबके पास सही तथ्यों की जानकारी नहीं हो पाती। बहुत से लोग सोशल मीडिया या आसपास के लोगों द्वारा फैलाये गए झूठे प्रचारों और भ्रांतियों के विरोध में तर्क-वितर्क नहीं कर पाते हैं। गाँवों में सोशल नेटवर्क के कम फैलाव के बावजूद, उड़ती हुई भ्रामक ख़बरों और एक दूसरे से सुनी-सुनाई बातों का गहरा प्रभाव पड़ता है। वैश्विक महामारी के दौरान ऐसी अफवाहें लोगों की सुरक्षा और संक्रमण के विरुद्ध लड़ाई को कमज़ोर करती है। इन भ्रामक खबरों और लोगों में उसके प्रचार का असर स्वास्थ्य संबंधित कार्यकर्ताओं एवं अन्य लोगों पर भी पड़ता है। हमने एक आदिवासी गाँव के लोगों से बात की तो पता चला कि गलत सूचना, अफवाह और अंधविश्वास के कारण लोग टीका नहीं लगवा रहे हैं।
ग्राम पंचायत सरभोका की आशा मितानिन श्रीमती जुलियाना एक्का बतातीं हैं कि एक अफवाह जो बहुत ज्यादा फैला हुआ है, वह यह है कि वैक्सीन लेने से लोगों की मृत्यु हो जाती है। जुलियाना ने कहा, "अपने भ्रमण क्षेत्र (पारा बसाहट) में 45 वर्ष से ऊपर उम्र के 90 लोगों को वैक्सीन (टीका) लगा। घर-घर जाकर लोगों को समझाने में, उन्हें टीकाकरण केंद्र तक लाने में कई दिन लग गए। लोग कहते थे टीका में जहर भरा रहता है, उदाहरण देते हुए बोलते थे, कोट (गांव का नाम है) में कोटहीन (कोट गांव से ब्याह कर लाई गई बहु को कोटहीन कहते हैं) के भाई की टीका लगने से मृत्यु हो गई। लोग ये भी कहते थे कि हम तो बहुत जी लिए, अब मर गए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, हम टीका नहीं लगवायगें।" जुलियाना एक्का को लोगों को टीका लगवाने के लिए मनाने में कई दिन लग गए। उन्होंने कहा, "मुझे कई घरों से भगा दिया गया था लेकिन मैंने जाना नहीं छोड़ा। एक दिन मैं कोठहीन के घर बैठ गई, और लोगों द्वारा कही गई बातों के बारे में उनसे पूछा, 'बहन आपके भाई का देहांत टीका लगने से हुआ।' तो उसने मुझे बताया कि, 'नहीं मेरे भाई का देहांत टीके से नहीं हुआ, उन्हें तो कुछ और बीमारी थी, जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई।' तब जाके मैंने लोगों को सच्चाई से अवगत कराते हुए उन्हें ठीके के महत्व और जरूरत को समझाया और 90 लोग ने आ कर टीके का पहली डोज लगवाया।
जब 18 से ऊपर के उम्र वाले लोगों को टीका लगवाने की बारी आई तो उनमें भी जागरूकता की कमी देखने को मिल रही है। जुलियाना बताती हैं कि जब उन्होंने घरों में जाकर नौजवानों से पोंडी उपरोड़ा स्वास्थ्य केंद्र में टीका लगवाने के लिए कहती हैं तो नौजवान लोग तैयार नहीं हो रहे हैं। गाँव वाले कहने लगे कि उन्हें कुछ हो गया तो उनके बच्चों की देखभाल कौन करेगा? बाद में सरपंच श्री गुरबाहर टोप्पो ने पंचायत के 18 से 44 वर्ष आयु के लोगों को तैयार किया जिसमें से सिर्फ पांच लोग ही तैयार हुए। उन्हें 02/ 04/ 2021 को पोंडी उपरोड़ा स्वास्थ्य केंद्र में ले जाकर टीका लगाया गया।
जवान लोगों में वैक्सीन का दर : 18 से ऊपर उम्र वाले लोगों में टीके के प्रति शंका और भ्रम स्थिति नजर आ रही है। सोशल मीडिया में छाई तरह-तरह की भ्रांतियाँ (टीके में बच्चे न होने की दावा, टीका से मृत्यु होने की और हॉस्पिटल में मानव अंग तस्करी जैसी अफवाहें) इसका कारण है।
सारभोका में टीकाकरण केंद्र बनाया गया है। अब इन भ्रांतियों के मध्य भी हमें ग्राम पंचायत सरभोका टीका सेंटर में कुछ जागरूक नागरिक दिखे जो टीका लगवा रहे हैं। ग्राम पंचायत सरभोका में दिनांक 13/05/2021 को वैक्सीनेशन की संख्या 30 थी।
मरवाही पेंड्रा, गौरेला जिला एवं कोरबा जिले के सिवाना के आसपास गाँवों में भी अफवाहें लोगों को वैक्सीनेशन से दूर कर रही है। कटेल टोला के निवासी श्री घनश्याम कुजूर, लोगों में फैली बातों के बारे में बताते हैं कि "लोग टीका लगवाना ही नहीं चाहते कहते हैं, 'टीका से बच्चा नहीं होता, टीका के बाद बीमार पड़ जाते हैं, हॉस्पिटल जाने पर शरीर के कुछ कुछ अंग निकाल लिये जाते हैं इत्यादि'। इसका प्रमाण उनके पास नहीं है, सूचना में श
स्रोत के बारे में पूछने पर मोबाइल में देखने की बात करते हैं।
श्रीमति जुलियाना बतातीं हैं कि धीरे धीरे चीज़ें बेहतर हो रही है और लोगों में टीके की तरफ रुझान देखा जा रहा है : "ग्राम पंचायत सरभोका में, लोगो में अब जागरूकता देखने को मिल रही है क्योंकि जब मैं गाँव भ्रमण पर जाती हूँ तो कुछ लोग मुझसे पूछते हैं, टीका कब लगेगी, मुझे लगवानी है।" इसका मतलब यह है कि लोगो में कहीं न कहीं जागरूकता आ रही है, आने वाले समय में जब वैक्सीन पर्याप्त मात्रा में आ जाएगी, तब यह सिद्ध हो जाएगा की वास्तव में लोगों में जो डर था वह दूर हुआ या नहीं।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।
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