भारत के कई आदिवासी युवा हर साल सशस्त्र बलों में शामिल होते हैं। हर साल सरकार कई विज्ञापन निकालती है सेना में भर्ती के लिए जैसे कि सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स, तिब्बत बॉर्डर पुलिस, इंडियन आर्मी इत्यादि। आदिवासी युवा बड़ी संख्या में इस तरह के पदों के लिए आवेदन करते हैं क्योंकि वे देश की सेवा करना चाहते हैं।
सेना में शामिल होने की इच्छा रखने वाले युवा अपने गांव के खेतों और आंगन में कई वर्षों के कठोर अभ्यास से गुजरते हैं। तभी वे परीक्षण के लिए जाने के लिए पर्याप्त फिट महसूस करते हैं। कई युवा आदिवासी आर्मी में रहकर हमारे देश की सेवा कर रहे हैं जिन्हें देखकर और ज्यादा आदिवासी युवाओं में अपने सपने को साकार करने का पूर्ण भरोसा जागता है। लेकिन, कोरोना महामारी के कारण अभी बहुत सारी भर्तियां इस्तगित हो गई हैं जिस कारण आदिवासी युवा काफी निराश हैं।
आज हम बात करेंगे छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के कुछ युवाओं के बारे में जो कई दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।
सचिन ध्रुव (गाँव: मोहोतरा पांडुका)
सचिन ध्रुव गरियाबंद जिला का रहने वाला है। बचपन से ही वह बहुत एथलेटिक और फिट रहा है। उन्होंने ओपन एथलेटिक्स (नेशनल मैराथन ) में बहुत सारे मेडल्स जीते हैं। अपने गांव से हर साल सेना जाने वाले अपने भाइयों को देखकर खुद भी सेना में जाने का सपना देख कर कड़ी मेहनत करता है । हमसे बात करते हुए सचिन ने बताया की उनको शुरू से ही पढ़ाई और खेल में रुचि थी इसलिए वे स्कूल में ही लंबी कूद, ऊंची कूद, और मैराथन जैसे खेलों के लिए तैयारी करते थे । सचिन स्कूल में राष्ट्रीय कैडेट कोर्स (एन.सी.सी.) का छात्र भी रहा है।
सचिन के गांव से लगभग 15 लोग भारतीय सेना और पुलिस विभाग में अपनी सेवा दे रहे हैं जिनको देखकर सचिन को भी अपनी देश की सेवा करने की उम्मीद जगती है। "मैं बचपन से ही मेरे गाँव के लोगों को आर्मी और पुलिस में काम करते देखते आ रहा हूं, तो मेरी बचपन से हे आर्म्ड फोर्सेज में जाने की इच्छा थी। अपने देश के लिए कुछ करने का था इसलिए मैं जब भैया लोग छुट्टी लेकर आते थे उनसे घंटों बात करता था, उनसे पूछता था कि उन्होंने अपनी तैयारी कैसे की कौन सी पुस्तक पढ़ी। उनसे बात करके मुझे और भी भरोसा हो जाता था कि मैं भी अपने देश के लिए कुछ कर पाऊंगा। उनके बताए हुए हर काम मै करता हूं।"
सचिन के जैसे और भी युवक हैं को सेना में जाना चाहते हैं। महामारी से पहले वे ४-५ लोग सुबह 4:00 बजे उठके तयारी करते थे। जब पूरा गांव सोया होता है वे पांच दोस्त 5 किलोमीटर दौड़ते थे। "गांव जंगल इलाके में होने से सुबह जंगली जानवर भी दिख जाते थे लेकिन हम लोग ग्रुप में जाते हैं ,तो इतना डर नहीं लगता है। मेरे साथ मेरे जैसे 3-4 दोस्त और दौड़ते हैं और हम मिलके लंबी कूद, ऊंची कूद अधिक की अभ्यास करते थे। पढ़ाई करने के लिए हम लोग कई सारे पुस्तकों को पड़ते हैं। पहले सुबह उठने में दिक्कत होती थी, लेकिन हम लोग एक जगह सोते थे तो कोई न कोई दोस्त सभी को उठा देता था।"
लॉकडाउन से पहले सचिन ने इंडियन आर्मी में शारीरिक परीक्षण और स्वास्थ्य परीक्षण में पास कर लिया था लेकिन लॉकडाउन हो जाने के कारण लिखित पेपर अभी बाकी है जो कि 2 बार स्थगित हो गया है। परीक्षा स्थगित होने से सारे युवक दुखी और निराश हैं।
डायमंड ध्रुव (गाँव: तोरेंगा पांडुक)
डायमंड ध्रुव जब छोटे थे, तो उन्हें सेना में शामिल होने का कोई शौक नहीं था। लेकिन जब उन्होंने दसवीं में अपने स्कूल के राष्ट्रीय कैडेट कोर्स (एन.सी.सी.) में भाग लिया तब से उन्हें भारतीय सेना में जाने का लक्ष्य मिल गया। डायमंड बचपन से ही खेल कूद में रूचि रखते थे और हॉकी बहुत अच्छा खेलते थे। वे हॉकी को राज्य स्तरीय तक खेल चुके हैं। "दसवीं के बाद से मैंने सिर्फ और सिर्फ भारतीय सेना में जाने का ही सपना देखा है। मैं स्कूल में था तो मेरी उम्र 18 नहीं हुए थी, इस कारण से मैं सेना की भर्तियों में भाग नहीं ले पा रहा था। जैसे ही मैं 18 साल का हुआ उसके बाद मैंने अपना पहला इंडियन आर्मी भर्ती के लिए फॉर्म भरा और मेरी तैयारी अच्छे से चल रही थी।"
उनके जैसे अन्य युवाओं की तरह, डायमंड भी जल्दी जागते थे और व्यायाम करते थे। पिछले साल उन्होंने भारतीय सेना के लिए आवेदन किया था लेकिन उनका चयन नहीं हुआ। वह इस साल फिर से कोशिश करना चाहते थे।
कोविद 19 महामारी के कारण लोगों के लिए पहले की तरह व्यायाम करना मुश्किल हो गया है क्योंकि ग्रामीणों ने सबको अनुरोध किया है की बे एक जगह इकठ्ठा न हो। इसीलिए युवकों ने सुबह दौड़ना बंद कर दिया है। अब उन्हें डर है कि वे अपनी फिटनेस खो देंगे।
देश भर में कई युवा ऐसे होंगे जो सेना में भर्ती नहीं हो पा रहे हैं। यह देखते हुए कि उनमें से कुछ ने शारीरिक परीक्षण को पास कर लिया है और उन्हें केवल लिखित परीक्षा पास करनी है, यह अच्छा होगा यदि सेना जल्द ही परीक्षा आयोजित करे।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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