पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
लाख एक बहुपयोगी राल है, जो एक सूक्ष्म कीट का दैहिक श्राव है। लाख के कीट अत्यंत सूक्ष्म होते हैं, तथा अपने शरीर से लाख उत्पन्न करके हमें आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक भाषा मे लाख को लेसिफर कहा जाता है। लाख शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'लक्ष' शब्द से हुई है। संभवतः इसका कारण मादा कोष से अनगिनत शिशु कीड़ो का निकलना है। लगभग 34 हजार लाख के कीड़े एक किलोग्राम कुसमी लाख पैदा करते हैं। लाख का ऊपरी भाग सफ़ेद रंग का होता है, जिसे छूने से उसका रंग, हाथ मे लग जाता है। लाख को दबाने पर वह टूट जाता है, और उसके अंदर से लाल रंग का खून जैसा निकलता है।
लाख का प्रयोग, भारतीय युगों से करते आ रहे हैं। महाकाव्य महाभारत में प्रसिद्ध 'लाक्षगृह' के विस्तार का उल्लेख है। लाख से निर्मित एक भवन, जिसको कौरवो ने पांडवो को जला के मृत्यु देने के लिए बनवाया था। इस से स्पष्ट होता है कि, ‘भारतीय’ लाख की ज्वलनशील प्रकृति से अवगत थे।
कोरबा जिले मे लाख की खेती मुख्यतः बेर, कुसुम और पलाश के वृक्षों पर की जाती है। सबसे पहले पेड़ में बचे लाख के बीज को काटकर निकाल लिया जाता है। लाख के बीज को काटने के पश्चात्, जिस वृक्ष पर उसको लगाना है, उसकी छठाई करते हैं। छठाई का काम चार महीने पहले ही करते हैं। चुंकि, जब अगली फसल लगाने का समय आये, तो वृक्ष पर नई टहनियाँ आप आ जाये। काटे हुये लाख को एक साइज में बराबर काट लेते हैं, फिर 6 से 7 दिनों के लिए उन्हें ऐसे ही घर मे रख देते हैं। कुछ दिनों मे लाख से छोटे-छोटे कीट निकलने लगते हैं। फिर उसे तार या जाली की मदद से अलग-अलग बांध लेते हैं, जिससे लाख के कीट जाली से निकल सकें। फिर उसे वृक्ष की उन टहनियों मे बांध देते हैं, जिनमें लाख नहीं होते और जो टहनियाँ नई हो। लाख से कीट निकल कर पुरे वृक्ष पर फ़ैल जाते हैं, और वही नए लाख की उत्पत्ति करते हैं।
बेर वृक्षों का उपयोग फलों के लिए तो होता ही है। लेकिन, दूसरी दृष्टि से देखे, तो यह लाख की खेती के लिए अति उपयोगी है। बेर की विशेष बात यह है कि, इस पर सभी प्रकार के लाख-कीट पाले जा सकते हैं, चाहे वह वर्ष की दो फसली लाख कीट हो या उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के कुछ भागों में पायी जाने वाली तीन फसली। दो फसली लाख-कीट की रंगीनी और कुसमी, दोनों प्रकार के लाख का उत्पादन इस वृक्ष पर किया जाता है। रंगीनी लाख से वर्ष में दो फसलें, ग्रीष्मकालीन और वर्षाकालीन ली जाती हैं। जिसके लिए क्रमशः नवम्बर या दिसम्बर माह और जून या जुलाई माह में कीट संचारण करते हैं, जो 8 और 4 माह पश्चात् जुलाई और नवम्बर या दिसंबर में तैयार हो जाती है। गर्मी में मई और जून माह मे तापमान अधिक होने और बेर पर पत्तियों के आभाव के कारण लाख-कीट मरने लगते हैं। अतः इस वृक्ष से कच्ची फ़सल ही काट लेते हैं।
बेर का उपयोग कुसमी लाख के लिए बीहन उत्पादन हेतु कर सकते हैं। जबकि रंगीनी लाख पालते समय, इसे कच्ची लाख के लिए ही उपयोग करते हैं।
कुसुम के साथ सम्मिलित खेती करने पर, ऐसे कृषकों को अधिक लाभ होता है, जिनके पास कुसुम वृक्ष बहुत कम हो। क्यूँकि इन्हे पांच के बजाय दो खंड ही बनाकर खेती कर सकते हैं।
उत्पादकता :- औसत आकार के एक वृक्ष पर, करीब 2-3 किलोग्राम बीहन लगाकर, सामान्य परिस्थितियों में 6 माह पश्चात, 15 से 20 किलोग्राम बीहन-लाख का उत्पादन लिया जा सकता है।
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दो फसली कुसमी लाख की खेती
कुसमी लाख से भी वर्ष में दो फसलें, शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन, प्रत्येक 6 माह के क्रमशः जुलाई-अगस्त और जनवरी-फरवरी में लगाई जाती है। कुसमी लाख का उत्पादन, बेर पर आसानी से किया जा सकता है। लेकिन, गर्मी के दिनों में बेर पर पत्तियों के आभाव के कारण, ग्रीष्मकालीन फसल अधिक तापमान नहीं सहन कर पाती और उसके मरने की सम्भावना अधिक होती है। अतः ऐसे क्षेत्रों में अन्य प्रकार के कुसमी पोषक वृक्ष, जैसे कुसुम और गलवांग इत्यादि की अवश्यकता होती है।
कुसुम वृक्षों का उपयोग ग्रीष्मकालीन फ़सल के लिए एक वर्ष के अंतराल पर तथा बेर का प्रतिवर्ष शीतकालीन फ़सल के लिए करते हैं।
कुसुम वृक्ष में काट छांट की आवश्यकता नहीं होती तथा कीट उत्पन्न के कुछ दिनों में ही कीट संचार किया जा सकता है।
फ़सल कटाई का कार्य जनवरी-मार्च के बीच, जब बीहन तैयार हो जाये और शिशु कीट निकलना प्रारम्भ कर दे, तब करना चाहिए।
कटाई से प्राप्त बीहन, कुसुम वृक्षों पर लगा सकते हैं, एवं अवश्यकता से अधिक होने पर बाजार में भी बेचा जा सकता है।
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बेर वृक्षों का कुसमी लाख खेती से लाभ
रंगीनी लाख की तुलना में उत्पादन अधिक मिलता है।
कुसुम वृक्ष से इसका समन्वय अच्छा हो जाता है।
कुसुम वृक्ष पर शीतकालीन फ़सल सामान्यतः कम होती है, जिससे अगली फ़सल लगाने के लिए, बीहन लाख की कमी हो जाती है। अतः इस फ़सल के लिए बेर अति उपयुक्त है।
कुसुम पर फ़सल कटाई के पश्चात, पुनः संचारण के लिए डेढ़ वर्ष का इंतजार करना पड़ता है। जबकि, बेर 6 माह पश्चात् ही संचारण के लिए तैयार हो जाती है।
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कुसुम पर शीतकालीन फसल पकने के पहले ही जनवरी-फरवरी माह में, अधिकतर लाख पपड़ी टहनी से अलग हो कर ढीली पड़ने लगती है। जिसे बीहन लाख के रूप में, उपयोग करना लाभप्रद नहीं होता। क्योंकि, इससे शिशु कीट का विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता और फ़सल कटाई करते समय, झटके से पपड़ी झड़ने का खतरा बना रहता है।
लाख का इस्तेमाल मुख्यतः श्रृंगार की वस्तुओं, सील, चपड़ा, विद्युत् कुचालक, वॉर्निंश, फलों व दवा पर कोटिंग, पॉलिश व सजावट की वस्तुएँ तैयार करने में किया जाता है। इस तरह यह बहुपयोगी है, जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिलती है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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