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Writer's pictureTumlesh Neti

जानिए कैसी होती है इस आदिवासी समुदाय की न्याय व्यवस्था?

सूरत द्वारा सम्पादित


हर मानव समाज को शांतिपूर्वक ढंग से चलने के लिए एक शांतिपूर्वक न्याय व्यवस्था की जरूरत होती है, जिससे वहाँ के मानव समाज की किसी भी तरह की समस्या को दूर किया जा सके। ये सभी चीजें हमारे आदिवासी समुदाय में भी लागू होती हैं, क्योंकी हमारे आदिवासी समुदाय में बहुत-सी जाति, जनजाति, समाज के लोग रहते हैं जिनके बीच आज तक कोई मतभेद देखने को नहीं मिलता है, इसका कारण यह है कि हमारे सभी आदिवासी समुदायों की अपनी एक न्याय व्यवस्था होती है, जिसके चलते आदिवासी समुदाय के अंदर मतभेद की सूचना नहीं मिलती है।

बुज़ुर्ग का सम्मान करते गाँव वाले

इस न्याय व्यवस्था के होने से आदिवासी समुदाय अपनी सुख-शांति, विकास, धर्म, संस्कृति, भाषा के लिए विकास और रक्षा कर पाता है। लेकिन एक लेख में पूरे आदिवासी समुदाय की न्याय व्यवस्था को लिख पाना मुश्किल होगा और हमारे इतने बड़े आदिवासी समुदाय की न्याय व्यवस्था को जान पाना संभव नहीं है क्योंकि आदिवासी समुदाय की न्याय व्यवस्था भाषा, संस्कृति, परंपरा, समय, जगह के अनुसार बदलती रहती है। इसलिए मैं अपने गोंड समुदाय की न्याय व्यवस्था के बारे में बात करूँगा, गोंड आदिवासी समुदाय विश्व की सबसे ज्यादा संख्या वाले और सबसे विशाल संस्कृति में से एक हैं। गोंड समुदाय को अलग-अलग जगह अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे अमात गोंड समाज, ध्रुव गोंड समाज, राज गोंड समाज और भी बहुत सारे नाम होते हैं इस पर और भी विचारधारा सुनने को मिलती है। मैं छत्तीसगढ़ गरियाबंद जिले में रहता हूँ और मैं अमात गोंड समुदाय से आता हूँ, मेरे अमात गोंड समुदाय की न्याय व्यवस्था बिलकुल जमीनी स्तर से शुरू हो जाती है, जैसे कोई भी मतभेद गाँव में होता है तो सबसे पहले अपने गाँव के जो समाज प्रमुख हैं उसका समाधान निकालते हैं। अगर कोई मतभेद दो गाँवों के बीच होता है, तो समाज के लोगों द्वारा एक समिति बनाई गई होती है जिसके अंदर चार से पांच गाँव आते हैं और यह संख्या बढ़ भी जाती है, इस समिति के अंदर के गाँव में कोई भी सामाजिक काम को ये समिति हल करती है। अगर मतभेत दो समिति के बीच होता है तो वहाँ पर एक सर्कल की जरूरत होती है, जिससे चार से पांच समिति को जोड़कर एक सर्कल का निर्माण किया जाता है जो सभी समितियों के द्वारा मामलों को हल करता है। इस तरह के हर क्षेत्र में अमात गोंड समाज के लोगों द्वारा गाँव, समिति और सर्कल बनाया जाता है, जिससे समाज के सभी काम, मतभेद, और कार्यक्रम का निवारण किया जाता है। चार-पांच सर्कल को जोड़कर एक राज बनाया जाता है, इस राज में सर्कल स्तर के सभी कार्यक्रमों को सफल बनाया जाता है और सर्कल के मतभेदों को सुलझाया जाता है। अब इसके बाद एक केंद्रीय समिति का भी गठन किया जाता है जिसके अंतर्गत अमात गोंड समाज के 26 राज्य आते हैं यह मेरे बिंद्र नवागढ़ परीक्षेत्र की बात है, यह सब समय और जगह अनुसार अलग-अलग भी हो सकते हैं, लेकिन मेरे क्षेत्र में इसी तरह की न्याय व्यवस्था मेरे समुदाय में देखने को मिलती है इन 26 राज्यों का कार्यभार इस केंद्रीय समिति के अंतर्गत होता है और केंद्रीय समिति ही इन सभी सरकारों का संचालन करती है। इन सभी समिति, सर्कल, राज्य एवं केंद्र में पदाधिकारीगण चुने जाते हैं जो कि अपने समिति, सर्कल, राज्य व केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हैं इन्हीं की देखरेख में सारे कार्यक्रम सफल बनाए जाते हैं और अपने समुदाय की शांति व्यवस्था, परंपरा और संस्कृति को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी इन्हीं लोगों की होती है।


अमात गोंड समाज की केंद्रीय समिति द्वारा अपने समुदाय के सभी जन्म से लेकर मृत्यु तक की जो भी सामाजिक गतिविधियाँ होती हैं इसमें जन्म संस्कार, विवाह संस्कार, मृत्यु संस्कार इन सब के विषय में एक किताब भी प्रकाशित करते हैं जिसके अंतर्गत इन सभी संस्कारों में गोंड समुदाय के अंदर किन-किन नियमों का पालन किया जाता है उन सभी के बारे में विस्तारपूर्वक लिखा होता है। इसी के अनुसार समिति सर्कल और राज के अंतर्गत सभी कार्यक्रम किए जाते हैं और यह किताब पूरे केंद्रीय क्षेत्र में मान्य होती है और इसी कारण से हमारे समुदाय के विवाह कार्यक्रमों में मतभेद की आशंका बहुत ही कम होती है क्योंकि सभी को उस नियमावली किताब के अंतर्गत ही अपने सभी कार्यक्रमों का निर्वहन करना होता है। इस किताब को समय-समय पर नई-नई परिस्थितियों के अनुसार संशोधित भी किया जाता है जिसके लिए केंद्रीय समिति द्वारा एक सभा का आयोजन किया जाता है जिसे हम लोग 'अखिल भारतीय अमात गोंड समाज महाधिवेशन' के नाम से जानते हैं।

अच्छी बात यह है कि यह महा अधिवेशन कुछ दिन पहले ही मेरे क्षेत्र में हुआ है जिसके ऊपर मेरे एक मित्र ने एक लेख भी लिखा है अगर आप लोग रुचि रखते हैं तो इस महाधिवेशन के संपूर्ण क्रियाकलाप आपको उस लेख में पढ़ने को मिल जाएँगे। इस महाधिवेशन में इस साल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जी का आगमन भी हुआ था और यह अधिवेशन 2 दिन का रखा गया था जिसके अंतर्गत इसी नियमावली के संशोधन के विषय में और अपने समुदाय के विकास, शिक्षा, रोजगार के ऊपर चर्चा की गई जिसके लिए अमात गोंड समाज के सभी नागरिकगण भारी संख्या में उपस्थित हुए थे।



अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि भारत सरकार द्वारा आम नागरिकों में शांति व्यवस्था बनाने के लिए तो बहुत सारे नियम शासन-प्रशासन पुलिस की व्यवस्था की गई तो फिर हम आदिवासी समुदायों में इस तरह की न्याय व्यवस्था बनाने की जरूरत क्यों पड़ी होगी? सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का हमारा आदिवासी समुदाय बिलकुल समर्थन करता है और उसके अनुसार उसका अनुसरण भी करता है लेकिन हमारा आदिवासी समुदाय इतना विशाल समुदाय है कि इसके अंदर की अनेक जीवन-शैली में हर पग पर अलग-अलग परंपराएँ, संस्कृति, जीवन-शैली देखने को मिलती है जिसकी रक्षा हमें स्वयं ही करनी होती है इस कारण से आदिवासी समुदाय में, अपनी संस्कृति जीवन-शैली और परंपराओं को बचाने के लिए इस तरह की न्याय व्यवस्था बनाई जाती है क्योंकि आजकल के आधुनिक युग में लोग अपनी संस्कृति को हल कर दूसरे की संस्कृति के अनुसार जन्म उत्सव, विवाह उत्सव आदि में परिवर्तन कर रहे हैं जिसके चलते हमारे समुदाय की सभी परंपराएँ विलुप्त-सी होती जा रही थीं, इस कारण से इस तरह की न्याय व्यवस्था बनाई गई जिससे हमारी संस्कृति, सभ्यता सुरक्षित रह सके और समय-समय पर इन सब की जानकारी हमारे समाज के युवकों को भी दी जा सके। यह तो थी मेरे अपने अमादपुर समुदाय की न्याय व्यवस्था। अगर आपको और भी आदिवासियों की न्याय व्यवस्था के बारे में जानना है तो हमें जरूर बताइएगा।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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