हमारा देश कई राज्यों से मिलकर बना हुआ है और सभी राज्यों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं। विशेषताओं में हमारा छत्तीसगढ़ भी पीछे नहीं है, यहाँ की खनिज संपदा और लोक संस्कृति इसकी बड़ी विशेषता है, परंतु यहाँ की एक और चीज़ पूरे देश में प्रसिद्ध है, वह है धान। धान की बहुतायत में उत्पादन होने के कारण यह राज्य धान का कटोरा कहलाती है। कृषि छत्तीसगढ़ के लोगों का मुख्य पेशा है, यहाँ की लगभग 70% आबादी का मुख्य कार्य कृषि ही है और राज्य में कुल 37.46 लाख कृषक परिवार हैं।
आदिवासी प्रकृति प्रेमी होते हैं, उन्हें प्रकृति से काफ़ी लगाव होता है, यही वजह है कि वे आधुनिक की बजाय परंपरागत तरीकों से ही खेती करते हैं। ग्रामीण आदिवासी एकल और मिश्रित दोनों प्रकार की खेती करते हैं। खेती करना तो आदिवासियों में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, परंतु पहले लोग सिर्फ़ अपने खाने के लिए ही खेती करते थे पर अब खेती करके आर्थिक स्थिति को भी मजबूत किया जा रहा है। अब आदिवासी धान, तथा फसलों को बेचकर पैसा भी कमा रहे हैं। पहले आदिवासी झूम खेती किया करते थे जिसमें किसी एक स्थान का चुनाव करके पेड़ पौधों को काटकर मिट्टी तैयार की जाती थी, फ़िर धान या कोई अन्य फसल बोकर व्यवस्थित ढंग से खेती करते थे। जब तक वह भूमि उपजाऊ रहती थी तब तक उस स्थान पर आदिवासी कृषक खेती करते थे और जैसे ही उसका उपजाऊपन खत्म हो जाता था उस जगह को छोड़कर अन्य जगह में वे खेती करते थे। हमारे छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के पैसे कमाने का मुख्य जरिया कृषि है, नव राज्य गठन के बाद खेती करने के तरीकों को आदिवासियों द्वारा थोड़ा बदला गया जिससे उनके आर्थिक आय में काफ़ी वृद्धि हुई है।
कृषि के विकास तथा कृषकों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं, जिसके सफल प्रयासों से राज्य को 5 बार कृषि कर्मण पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। छत्तीसगढ़ में राजीव गांधी न्याय योजना का आरंभ किया गया जिसके तहत किसान वर्गों को 9000 रुपए प्रति एकड़ सहायता राशि प्रदान किया जाएगा, इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना है। राजीव गांधी किसान न्याय योजना के अंतर्गत उन किसानों को यह सहायता राशि प्रदान की जाती है, जो कोदो, कुटकी, जौ, बाजरा जैसे फसल को अधिक महत्व देते हैं, और उसकी खेती करते हैं, यह फसल ऐसे फसल हैं जो आदि जमाने से ही चला आ रहा है, इन्हीं फसलों से ही कृषि के विकास का कार्य प्रारंभ हुआ।
27 वर्षीय रवि शंकर जी एक कृषक परिवार के सदस्य हैं, और स्वयं भी एक कृषक हैं, वे बचपन से ही खेती के कामों में लगे हुए हैं। वे बताते हैं कि, "पहले सिर्फ़ धान की खेती करते थे, धीरे-धीरे फसल का उत्पादन कम होने लगा था। परंतु अब मिश्रित खेती करने और उन्नत किस्म के धान के बीजों का प्रयोग करने से उत्पादन बढ़ा है। अब धान को मंडी में बेचकर अपना आर्थिक स्थिति में भी बदलाव आ रहा है।"
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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