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Writer's pictureRavi Kr. Binjhwar

आइये जानें, गांव की महिलाएं, कैसे खरपतवार तुलसी के पौधे से, अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं

Updated: Apr 6, 2023

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


कोरबा जिला के जिला मुख्यालय से, लगभग 56 किमी पोंडी-उपरोड़ा तहसील में स्थित, एक छोटा सा गांव रिंगनियां है। यह गांव, मेन रोड से 5 किमी अंदर, जंगल में बसा हुआ है। इस गांव में रहने वाले लोगों में, 90 फीसदी लोग आदिवासी समुदाय से आते हैं। इस गांव का मुख्य व्यवसाय कृषि है। जिसमें, प्रमुख फसल धान, मक्का व दाल है। ये कृषि के साथ-साथ जंगल से मिलने वाली कंद, फूल, फल, लकड़ी, पान, जड़ी-बूटी आदि पर भी निर्भर रहते हैं।


ये लोग, इसी जंगल से मिलने वाली, फल-फूल को इकट्ठा कर, बहुत मुनाफा कमा लेते हैं। उदाहरण के रूप में साल का फल, महुआ का फूल, मशरूम, चरोटा का बीज, बहेरा का फल, हर्रा का फल, धांवई का फूल और भेलवा का फल इत्यादि जंगल से प्राप्त होते हैं। इसी में से एक ऐसा खरपतवार पौधा, जिसे तुलसी पौधा के नाम से जाना जाता है।

तुलसी का पौधा

बरसात के पानी में, यह पौधा उगना शुरू करता है और सर्दी में जाकर तैयार होता है। इस तुलसी पौधे की अधिकतम ऊँचाई 6 से 7 फीट तक होती है, और यह पौधा, रिंगनियां गांव में काफी मात्रा में देखने को मिलती है। इसी बड़ते हुए पौधे को, महिलाओं द्वारा इकट्ठा कर फट्टा में बेंचते हैं। वैसे तो गांव में रहने वाले, हर व्यक्ति मेहनती होते हैं। वे खाली रहना पसंद नहीं करते। धान कटाई और मिसाई के तुरंत बाद, इस पौधे को महिलाओं द्वारा एकत्रित करना शुरू कर दिया जाता है।


इसी को जानने के लिए, रिंगनियां गांव में रहने वाली आदिवसी महिला, बिधन बाई बिन्झवार, जो इस पौधे को एकत्रित करती हैं। उनसे बातचीत (पूछने) करने पर, निम्नलिखित जानकारी मिला। सर्वप्रथम, इस पौधे को पूर्ण रूप से सुख जाने से पहले, हंसिया के सहायता से धीरे-धीरे लुआई (कटाई) की जाती है। क्योंकि, इसके सुख जाने पर, हिलाने मात्र से इसका बीज गीरने लगता है। इसलिए, इसे सूखाने से पहले, आराम से अच्छी तरह से कटाई की जाती है। और कटे हुए भाग को किसी प्लास्टिक या झिल्ली में रखते हैं। ताकि, जो बीज निकलता है, उसे जमीन में गिरने से बचाया जा सके। जिससे बीज, झिल्ली में ही रहे। और उसी झिल्ली में समेट कर घर लाते हैं और फिर जहाँ तेज धूप पड़ता है, वहाँ अच्छी तरह फैला देते हैं।

सूखे पौधे को पिटाई करते हुए

सुखने के बाद, इस पौधे को लकड़ी के बैट से, अच्छी तरीके से पिटाई की जाती है। ताकि, उसका सारा बीज झड़ जाये। पिटते समय, अपने मुँह और नाक को, किसी साफ कपड़े से बांध लेते हैं। ताकि, उसमें से निकलने वाली धूल से बचा जा सके। क्योंकि, इसकी धूल गले में बैठ जाती है और तबियत खराब होने की संभावना रहती है।

छलनी से बीज को अलग करते हुए

पीटने के बाद, उसे छलनी के मध्यम से छाला जाता है। जिससे, तुलसी का दाना (बीज) नीचे गिर जाता है और उसके पत्ते अलग कर लिए जाते हैं। फिर, उसे शूपा के सहायता से अच्छी तरह से साफ करते हैं।

तुलसी का सुखा बीज

तैयार किए गये इस बीज को, गुरुवार को, गुरसिया मार्केट में बेचा जाता है। क्योंकि, इस दिन मार्केट होने के कारण, व्यापारी इसके उचित मूल्य 2100-2400 रुपये प्रति क्विंटल दर से खरीदी करते हैं। पिछले कई वर्ष से, इसका मूल्य 3000-3500 रुपये प्रति क्विंटल था। इस वर्ष इसकी खरीदी में गिरावट देखने को मिला। जिससे, उन महिलाओं को निराश होना पड़ा, जो इस पौधे को इकट्ठा करने में लगे हुए थे। इसलिए, इस बार तुलसी को, कम ही लोग इकट्ठा कियें। बिधन बाई बिन्झवर ने, इस वर्ष 2200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 1.5 क्विंटल तुसली के बीजों को बेचा। जिसमें, उनको 3300 रुपये ही मिल पाए। और इन पैसों से,उन्होंने अपनी बहुत सी जरूरतों को पूरा किया।


इस प्रकार के कार्य, एक मेहनती महिला ही कर पाती है। इनके मेहनत को देखते हुए, इस तरह के खपतवार पौधे के बीजों को, उचित से उचित मूल्य में खरीदना चाहिए। जिससे, इसका फ़ायदा, हर वह महिला ले पाएं, जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


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