पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
हमारे कोरबा जिले में ऐसे कई गांव हैं, जहाँ आज तक शासन की कई सुविधाएं नहीं पहुच पाई हैं। लाफा से चैतुरगढ़ जाने वाले रास्ते में नगोई, जेमरा और बगदरा जैसे छोटे-छोटे गाँव बसे हुए हैं। जेमरा में हाई-स्कूल नहीं होने के कारण, आदिवासियों के बच्चों को लाफा या पाला जाना पढता है। और बच्चों को हाई-स्कूल आने-जाने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पडता है। कई बच्चे हाई-स्कूल दुर होने के कारण पढाई छोड़ देते हैं, और कई बच्चे पैसों की कमी के कारण, पढाई पूरी नहीं कर पाते। जिससे, आदिवासी बच्चे शिक्षित नहीं हो पाते हैं। जेमरा और बगदरा गांव, जंगली इलाकों से घिरे हुए हैं। यहाँ के बच्चों को घने जंगलों से गुजर कर स्कूल जाना पड़ता है। इसलिए, आदिवासी माता-पिता अपने बच्चों को लाफा व पाली के हॉस्टलों में रख देते हैं। और हॉस्टल फुल होने पर, बच्चों को घरों में किराए में रखकर, पढ़ाई पूरी करवाते हैं।
कोरबा जिला के पाली ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले ग्राम लाफा से चैतुरगढ़ जाने वाला रोड, जंगल व पहाड़ी इलाकों से घिरा हुआ है। ग्राम पंचायत जेमरा के निवासी अनुज इक्का, जिनकी आयु 30 वर्ष है। इन्होंने हमें बताया कि, “हाई-स्कूल नहीं होने के कारण, आदिवासी बच्चों को घने जंगल से गुजर कर जाना पड़ता है। और कई ऐसे बच्चे हैं, जो आगे की पढ़ाई करने के लिए, हॉस्टल में रुक जाते हैं। और कई बच्चे, लोगों के घरों को किराए में लेकर, आगे की पढ़ाई करते हैं। इसलिए, यहाँ हाई-स्कूल की अति आवश्यकता है। ताकि, आदिवासियों के बच्चे अपने गांव में ही अपनी पढ़ाई पूरा कर सकें।”
आम तौर पर देखा जाता है कि, आदिवासी अपने बच्चों को नवीं-दसवीं की पढ़ाई ही पूरी करा पाते हैं और आगे की पढ़ाई नहीं करा पाते हैं। अगर, 'हाई-स्कूल' गांव में ही होगा, तो आदिवासी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिला सकेंगे। बच्चों को पढ़ने के लिए, बहुत दूर जाना पड़ता है। हाई-स्कूल बहुत दूर होने के कारण, कई आदिवासी, अपने बच्चों को बाहर पढ़ाई करने नहीं भेज पाते हैं। क्योंकि, इनके पास अपने बच्चों को पढाने के लिए पैसे नहीं होते हैं। चूँकि, रोज स्कूल आने-जाने के लिए पैसे जरुरी होते हैं। इसलिए, कई आदिवासी, अपने बच्चों को आगे की पढ़ाई नहीं करा पाते हैं।
हाई-स्कूल जाने के लिए, कई बच्चे बस में आते-जाते हैं। और जेमरा से पाली के लिए, एक ही बस चलती है और यह बस किसी दिन चलती है, तो किसी दिन नहीं चलती है। इसलिए, स्थानीय आदिवासियों का कहना है कि, यहाँ हाई-स्कूल की सुविधा होनी चाहिए। ताकि, आदिवासी बच्चे पढ़ाई पूरी कर सकें और वे अच्छे और काबिल इंसान बन सकें।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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