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Writer's pictureTara Sorthey

क्या आदिवासी समुदाय में नशा मुक्ति के प्रति जागरूकता ज़रूरी है?

छत्तीसगढ़ में लगभग 32 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है। ज़्यादातर आदिवासी गाँवों तथा जंगलों में रहते हैं एवं बहुत कम ही लोग औपचारिक रूप से शिक्षित हैं। सदियों से ये आदिवासी अपने प्राचीन रीति रिवाज एवं पारंपरिक ज्ञान के जरिये प्रकृति के साथ तालमेल बिठा कर सफलतापूर्वक अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं।


आज के इस आधुनिक दौर में आदिवासी समुदायों में भी आधुनिकता प्रवेश कर रही है और उनके जीने का तरीका बदल रहा है। बाहरी दुनिया का प्रभाव भोले-भाले आदिवासियों पर तेज़ी से हो रहा है, इन समुदायों में अच्छी चीज़ों के साथ साथ बुरी चीज़ों का भी प्रवेश हो रहा है। आदिवासी समुदायों में एक बुराई जो पूरी तरह से फैलती जा रही है वह है नशा, काफ़ी लोग नशे के शिकार होते जा रहे हैं और इसका बहुत ही बुरा असर समाज पर पड़ रहा है।

आदिवासी समुदाय अधिकतर वनोपज पर ही निर्भर रहा करते हैं, जंगलों से मिलने वाले संशाधनों से ही उनका जीवन चलता है। वन उपज में सबसे महत्वपूर्ण है महुआ का फूल, इसके फूल को सुखाकर बाज़ार में भी बेचा जाता है एवं घर में अपने इस्तेमाल के लिए रखा जाता है। महुआ से ही शराब भी बनता है, सालों से आदिवासी घरों में महुआ से बने शराब का इस्तेमाल औषिधि के रूप में होता आया है। परंतु अब लोग इसी शराब का इस्तेमाल आर्थिक फ़ायदे के लिए भी कर रहे हैं। कुछ लोग अपने घरों में भट्टी बनाकर महुआ के शराब का उत्पादन करने लगे हैं। इसी शराब का इस्तेमाल कर गाँव के लोग नशे के आदि हो जा रहे हैं। शराब से ग्रसित व्यक्ति अपने घर-परिवार में लड़ाई झगड़ा करने लगता है जिससे परिवार टूटने लगे हैं। नशे की लत की वजह से अनेकों परिवार बर्बाद हो जा रहे हैं।


शराब, सिगरेट, तंबाकू, खैनी, गांजा, बीड़ी आदि नशीले पदार्थों का चलन भी गाँवों में तेज़ी से फैलने लगी है। नशे के आदि हो जाने के कारण युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो जा रहा है, एवं लोग अनेकों बीमारियों का शिकार हो जा रहे हैं। नशे की वजह से लोगों के फेफड़ा, एवं लिवर आदि ख़राब होने लगे हैं। गाँवों में प्रयाप्त स्वास्थ्य व्यवस्था न होने की वजह से लोग झाडफूंक का सहारा लेने लगते हैं, ऐसे में कई लोगों की असमय मृत्यु भी हो जा रही है।


मंत्री सिंह जी

कोरबा जिले के ग्राम पंचायत कापू बहरा के रहने वाले श्री मंत्री सिंह जी से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि, वे नशे के रूप में गुड़ाखु का सेवन किया करते थे जिसमें अत्याधिक मात्रा में तंबाकू होता है, परिणामस्वरूप उनके गले में कैंसर हो गई है। उन्होंने इसके इलाज़ के लिए अनेकों अस्पताल में काफ़ी रुपये खर्च किये। उन्हें अब अपने किये का पछतावा है, वे कहते हैं कि यदि वे इस नशे का आदि न होते तो ऐसी बुरी स्थिती कभी नहीं आती। उन्होंने लोगों से नशा न करने का संदेश भी दिया।




अंवल सिंह जी

नवापारा (चैतमा) के रहने वाले श्री अंवल सिंह जी ने बताया कि वे अत्याधिक मात्रा में महुआ से बने शराब का सेवन किया करते थे, और नशे में एक दिन एक व्यक्ति से उनकी लड़ाई हो गई और उनके सीने की हड्डी टूट गई। इसके इलाज़ में उन्हें अनेकों खर्च करना पड़ गया। अब वे शराब पीना छोड़ चुके हैं, उनका कहना है "शराब से मानसिक संतुलन खो जाता है, और सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। मदिरा का कभी भी सेवन नहीं करना चाहिए इससे कुछ फ़ायदा नहीं होता सिर्फ़ नुक़सान ही होता है"


गाँव की महिलाओं द्वारा नशामुक्ति अभियान चलाया जा रहा।

नशामुक्ति अभियान को लेकर बैठकी करती महिलाएं

शराब से हो रही नुक़सान को देखते हुए कई लोग इसके विरोध में नशामुक्ति अभियान चला रहे हैं। इसमें सबसे आगे गाँव की महिलाएं हैं। हाल ही में ग्राम पंचायत बिंझरा में महिलाओं और बच्चों द्वारा नशा मुक्ति अभियान चलाया गया, जिसमें पाँच दिनों तक घर घर जाकर लोगों को जागरूक किया गया और नशा से बचने की सलाह दी गई।


गाँवों में हर दूसरे दिन पुलिस के द्वारा छापामारी भी किया जाता है ताक़ि शराब बनना बंद हो और शराब पीने वालों की संख्या कम हो।


यह एक ऐसा समस्या है जिसका समाधान लोगों को स्वयं ही करना पड़ेगा, उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर इस बुराई से दूर रहना होगा तभी घर परिवार तथा समाज का भला हो पाएगा।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog samaj sevi sanstha और Misereor का सहयोग है l



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