ग्रामीण आदिवासियों के लिए भाजी (साग) एक आसानी से मिल जाने वाली सब्ज़ी होती है। वैसे तो गाँव-जंगल में बारह महीने कोई न कोई सब्जी जरूर मिल जाती है, परंतु आज हम जानेंगे गर्मियों में प्रयोग की जाने वाली दो भाजियों के बारे में। हम बात कर रहे हैं कांदा और चेंच भाजी के बारे में। गर्मियों में लोग ठंडी-ठंडी चीज़ें खाना ज्यादा पसंद करते हैं, ये दो भाजियां अपनी ठंडकता देने के लिए ही ज्यादा प्रसिद्ध हैं। कई लोग तो इन भाजीयों को अपने शादियों में भी पकवाते हैं।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी हमेशा से ही भाजी के प्रेमी रहे है यहां के लोग अनेको प्रकार की भाजियां खाते रहते है और भाजी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी भी होते हैं। लेकिन कांदा भाजी, कोइलार भाजी और चेंच भाजी को सिर्फ़ गर्मियों में खाने पर ही अच्छा लगता है। वैसे तो चेंच भाजी को बरसात में भी खाते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ के आदिवासी बरसात के समय हरेली त्यौहार के पहले चेंच भाजी को नही खाते हैं, क्योंकि हरेली त्यौहार में चेंच भाजी और खेड़ा भाजी को पूजा में चढ़ाया जाता है। हरेली के बाद से ही चेंच भाजी और खेड़ा भाजी को खाना प्रारंभ करते हैं। जो लोग हरेली त्यौहार मनाते हैं वही लोग इसे त्यौहार के बाद खाते हैं बाकी जो लोग नहीं मनाते वे तो उससे पहले भी खा लेते हैं। कांदा भाजी को तो बरसात में खाते ही नहीं हैं उस समय उस भाजी में पानी की मात्रा अधिक होने के कारण उसकी सब्जी अच्छी से नहीं बनती है और उसका स्वाद भी अच्छा नहीं लगता है। और बात करे कोइलार भाजी की तो गर्मी में इस भाजी की कीमत बहुत ज्यादा होती है इस भाजी की कीमत लगभग शुरुआत में 100 रुपये से ऊपर होती है। कोइलार भाजी शरीर को गर्माहट देने वाली सब्जी है लेकिन यह सब्जी गर्मी में ही अच्छा लगता है और इसके अत्यधिक सेवन से किसी-किसी का पेट दर्द शुरू हो जाता है।
कंवर समुदाय में तो कांदा भाजी को शादियों में सब्जी बना कर भी खिलाते हैं, गर्मी के समय में लोग आलू, मटर, गोभी जैसे सब्जियों को ज्यादा पसंद नहीं करते हैं। जिनके घरों में अत्यधिक मात्रा में यह भाजी लगे रहते हैं वे लोग इस भाजी को शादी में सब्जी बनवाते हैं। कांदा भाजी को लगाना भी बहुत आसान होता है यह भाजी नार के साथ होता है तो इसके नार को काटकर किसी गीले जगह में लगा दिया जाता है, फ़िर वह उसी से जड़ बना लेता है। यह कांदा भाजी भी दो प्रकार के होते हैं। एक प्रकार में कभी भी उसका कंद नहीं होता है वो सिर्फ़ भाजी बनाकर खाने के ही काम आता है। लेकिन दूसरे में भाजी के साथ-साथ उसका कन्द भी खाने को मिल जाता है। गाँव के लोग इस कन्द वाले भाजी को अधिक लगाते हैं जिसमें उन लोगों को डबल फायदा हो जाता है। वे इस कन्द को भी बेचते हैं या खाते हैं।
ग्राम झोरा की अशोक बाई कंवर का कहना है कि "कांदा भाजी और चेंच भाजी बहुत ही स्वादिष्ट भाजी है लेकिन इस भाजी में थोड़ी सी भी अगर गलती हुई तो उस भाजी का पूरा स्वाद खराब हो जाता है। इसलिए इनकी सब्जियों को सावधानी से पकाया जाता है। चेंच भाजी को कभी भी नाखून के सहारे नहीं तोड़ते हैं, अगर ऐसा हुआ तो उस सब्जी में पूरी तरह से कड़वाहट पैदा हो जाती है। जिससे यह सब्जी को खाने में मज़ा ही नही आता है। चेंच भाजी को हँसिया या चाकू से नहीं काटते है इससे भी यह कड़वा हो जाता है। लेकिन जब कोई बीमार होता है और उसे इंजेक्शन लगे होते हैं तो ऐसी स्थिति में उसके लिए सब्जी ठीक नही रहता है। बीमार लोगों के लिए यह उपयुक्त नहीं है क्योंकि यह सब्जी शरीर के लिए ठंडा माना जाता है इन भाजियों को इंजेक्शन लगवाने के बाद या दवाई ले रहे होते हैं तो ऐसे समय मे खाने से दवाई का असर निष्क्रिय हो जाता है और साथ ही हमारे शरीर को नुकसान भी हो सकता है। बीमार लोगो को चेंच भाजी और कांदा भाजियों से परहेज करना चाहिए नहीं तो उनके के लिए यह मुसीबत बन सकती है।"
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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