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Writer's pictureSushil M. Kuvar

भादो मास में खेती और अच्छी फसल की कामना के लिए मनाते हैं करम पर्व

भादो एकादशी चाँद खिलने के बाद करम का त्यौहार शुरू होता है। छोटानागपुर के सभी आदिवासी ‘राईज करम’ मनाते हैं। सभी लोग अपने धान के खेतों - दोन, बारी इत्यादि में चिरचिट्ठि पेड़ की टहनी को गाड़ते हैं। यह कीटरोधक का काम करता है।

तस्वीर - धान खेत में चिरचिट्ठि की टहनी। गुमला, झारखंड।

मूलतः ‘करम’ एक पेड़ है। करम के त्यौहार में आदिवासी गीत गाते हुए जंगल जाते हैं। शाम के समय गाँव के आदिवासी जंगल, टोंगरी (छोटे चट्टानी पहाड़) आदि करम पेड़ की टहनी लाने जाते हैं। करम टहनी काटने से पहले बैगा या पहान करम पेड़ की पूजा करता है। बैगा - पहान पूरे गाँव में सांस्कृतिक कार्यों की अगुवाई करता है।करम काटने से पहले करम पेड़ को चावल, पानी, कपड़ा इत्यादि दिया जाता है।इसके बाद करम टहनी काटने के लिए कोई एक पेड़ पर चढ़ता हैऔर काटे हुए टहनी को नीचे खड़ा व्यक्ति झोकता है।फिर करम टहनी को लोगों में वितरित किया जाता है।इसके बाद करम काटने से पूर्व की विधि दुबारा दोहराई जातीहै।फिर गीत गाते हुए करम को गाँव लाया जाता है।


तस्वीर - करम काटने से पहले बैगा-पहान द्वारा पूजा।

करम काटकर सबसे पहले पहान के घर लिया जाता है। वहाँ पहान की पत्नी पहनाई करम लेकर आए लोगों का कांसा थाली में पैर धोती है। इसके बाद करम को चावल,पानी इत्यादि दिया जाता है। पहान घर के छत पर ही करम की टहनियों को रखा जाता है। इन सारी विधि नियमों के बाद पहान ही करम को अखड़ा में गाड़ता है। अखड़ा गाँव के बीचों - बीच सामुदायिक केंद्र है। जहाँ सभी एकत्रित होते हैं।


करम के चारों ओर गाँव के सभी बच्चे बैठते हैं। पहान अथवा कार्य की अगुवाई करने जैसा कोई भी व्यक्ति ‘करम कहानी’ सुना सकता है। करम कहानी सुनाया जाता है ‘करमा और धरमा’ भाईयों की कहानी। कहानी के बीच - बीच में तीन बार मगहा, सिलयारी आदि फ़ूल उपस्थित लोगों में वितरित किया जाता है। ये छोटानागपुर क्षेत्र के स्थानीय फ़ूल हैं। इन फूलों को पहानके कहने परअखड़ा में गाड़े हुए ‘करम’ को समर्पित किया जाताहै। कहानी सुनाने के क्रम में ऐसा तीन बार किया जाता है।


छोटानागपुर के कुड़ुख आदिवासी गाँवों में सात भाईयों की कहानी प्रचलित है, त्यौहार के दिन कहानी सुना जाना विशेष है - सात भाई और उसकी सात पत्नी। सात भाईयों की एक बहन - करमी। कहानी कुछ इस प्रकार है:-


हुलो परिया अर्थात् प्राचीन समय में सात भाई , भाईयों की पत्नी और भाईयों की बहन एक परिवार जैसे हँसी ख़ुशी से रहते थे। भाईयों का नाम था - करमा, धरमा, धनवा, रिझा, मंगरा, भंवरा और लिटा। सातों भाई मलँग ढोने में माहिर थे। मलँग अर्थात् बोझा। एक बार सात भाई सब मलँग लाद कर बहुत दूर राज्य निकल गए थे। उन्हें त्यौहार के समय गाँव वापस लौटना था। पर वे लौट नहीं पाए। करम का त्यौहार आ गया। त्यौहार में उन सात भाईयों की पत्नियों ने आँगन में करम गाड़ा, करम का सेवा किया और फिर नृत्य - गीत में रम गए। गाँव में ख़ूब माँदर - नगड़ा बज रहा था।

तस्वीर - अखड़ा में करम मनाते हुए। रोहतासनगर, गुमला (झारखंड)।

कई दिनों के सफ़र से सारे भाई लौट रहे थे। भूख और प्यास से थक चुके थे। गाँव - घर क़रीब ही था। पर वे थोड़ा सुसताने के लिए इमली पेड़ के नीचे रुक जाते हैं। सबसे बड़ा भाई अपने छोटे भाई को बढ़ने को कहता है — तुम जाओ, देखो घर पर क्या हो रहा है?


“कला तो हिया , एरा बर’आ”


गाँव - घर से ख़ूब माँदर और नगड़ा बजने की आवाज़ आ रही थी। भाई जाकर देखता है कि करम को गाड़कर सब माँदर बजा कर नृत्य करने में मस्त हैं। छोटा भाई अपनी भूख - प्यास भूल गया और वह भी नृत्य - गीत में मस्त हो गया। बड़े भाई ने पीने का पानी लाने को कहा था, छोटा भाई यह भी भूल गया। बहुत देर तक उसके ना आने पर बड़ा भाई अपने दूसरे भाई को भेजता है। वह भी माँदर के रीझ में भूख - प्यास भूल गया। वापस नहीं आता है। बड़ा भाई एक - एक कर सारे भाईयों को भेजता है। सब गाँव जा कर खेलने/नाचने में मस्त हो जाते हैं। बड़ा भाई करमा को सभी भूल जाते हैं। उसे कोई बुलाने भी नहीं जाता है। बड़ा भाई करमा अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करता है। वह घर ही नहीं जाता है।

उसका ग़ुस्सा ख़ूब तेज़ हो जाता है। ग़ुस्से से तिलमिलाते अंदर जाता है और आंगन से करम की टहनी को उखाड़कर फेंक देता है। सब यह देख अचम्भित हो जाते हैं कि वह क्यों ऐसा कर रहा है! फिर सब भाई अपने - अपने घर चल गए। करमा बड़ा भाई की पत्नी उसे हाथ पैर धोने के लिए लोटा में पानी देती है, तब करमा ग़ुस्सा से काँपने लगता है। रात हो गयी। उस रात से उसपर मुसीबत की छाया मँडराने लगी। करम अपनी नाराज़गी बड़े भाई करमा पर व्यक्त करता है। बड़े भाई करमा के सारे काम बिगड़ने लगे, सारे भाईयों में झगड़ा हो गया। सब अलग हो गए। परिवार टूट गया। बाँ - बाँ चींखते हुए उसके जोड़ा बैल मार जाते हैं। जब करमा सोने जाता है तो उसकी गर्दन में ऐठन होने लगती है। गाँव के लोग उसको देखने आते हैं। उसको सभी बोलते हैं — ओह, करम राजा का ग़ुस्सा!


ओरतोस बा’चस। (जाओ करम राजा के पास।) — किसी ने कहा।


सात समुद्र जाओ, करम राजा को लाने जाओ। जाने अनजाने में जो ग़लती किया तुमने, उसकी माफ़ी माँगो। वरना सभी पर करम राजा की नाराज़गी बरसेगी। सबको लगने लगा हम सभी तकलीफ़ से मारे जाएँगे। एक दिन छोटा भाई धरमा रोपा रोप रहा था। रोपा में मदैत (सामूहिक रूप से काम में मदद करना) करने आए लोग उसके घर में खाना खा रहे थे। करमा की पत्नी भी उसके घर गयी थी, रोपा में मदद करने गयी थी। लेकिन करमा को किसी ने न्योता नहीं दिया। शायद धरमा ने सोचा होगा कि वो घर का ही हिस्सा है तो आएगा ही। परंतु बड़ा भाई बुलावे के इंतज़ार में था। इधर करमा आसरा देख देख कर थक गया। उसके पास खाने को भी कुछ नहीं था।

करमा सोचने लगा कि मेरी पत्नी उसके खेत रोपा रोपने भी गयी, परंतु मुझे नहीं बुलाया। फिर वह गुस्साता है। ग़ुस्सा कर वह भाई के खेत जाता है। रात के सारे रोपा खेत को बर्बाद कर देता है। पर सुबह देखता है कि उसके रोपा खेत और भी सुंदर हो गए, सब ठीक है। किसी दिन रात को करमा सपना देखता है कि करम राजा उसे कहते हैं — तुमने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया, इसलिए तुम्हारी स्थिति इतनी ख़राब हो गयी है। तुम आओ मेरे पास, मुझे मनाओ, सेवा करो।


सुबह करमा और उसकी पत्नी निकल गए। घने जंगल - पहाड़ को पार करते हुए करम को खोजने निकल जाते हैं। चलते चलते थक जाते हैं। उन्हें प्यास लगती है। एक पोखरा मिलता है , वे जैसे ही पानी पीने गए , पानी गंदा हो जाता है और वे प्यास से तड़प जाते हैं। आगे बढ़ जाते हैं। रास्ते में डुमर पेड़ मिलता है। डुमर खाने के लिए फल तोड़ते हैं। डुमर को खाने जैसे ही फल लेता है करमा, तो उसमें कीड़े मिलते हैं।


पति - पत्नी आगे बढ़ जाते है। एक गाँव आता है, वह एक औरत मिलती है। वह उनसे पूछती है — कहाँ जा रहे हो?


करमा उत्तर देता - करम को लाने जा रहे, हमसे ग़लती हो गयी है, हम उनकी सेवा करना चाहते हैं।


उस औरत के सिर पर बाल के जगह बिरनी घास है। करमा की पत्नी पूछती है कि ऐसा क्यों है। तब औरत कहती है — अच्छा, आप करम राजा के पास जा रहे तो उनसे यह भी पूछिएगा कि मेरे बाल ऐसे क्यों हैं?


चलते हुए आगे नदी आती है। नदी के दोनों किनारों में गाय और बछड़ा दिखाई देता है। करमा देखता है कि बछड़ा नदी के दूसरे किनारे से दूध के लिए रो रहा है। करमा को माया लगता है, वह बछड़ा को अपने माँ के पास ला देता है। पर देखता है कि बछड़े को दूध पिलाने के बजाय गाय तो उसे ‘बीड़दो’ कर देती है। दूध देना तो दूर, उसने उलटा अपने बछड़े से मुँह फेर लिया। करमा और उसकी पत्नी दुखी होकर सोचने लगते हैं कि हमने करम राजा को दुखी किया, इसलिए शायद ऐसा हो रहा है।


बहुत दिन हो गए चलते चलते, दोनों पति - पत्नी भूख से व्याकुल हो रहे थे। उनकी व्याकुलता बरदास्त से बाहर थी। दोनों भूख से पगला कर समुद्र की तरफ़ भागने लगे। समुद्र में देखता है कि बहुत बड़ा करम का पेड़ लहरा रहा है। पेड़ देख कर उनके पास बल आता है। करमा समुद्र में छलाँग लगा देता है।वह डूबने लगा। वह समुद्र किनारे बालू में लेटे मगरमच्छ को देखता है। वह पानी के लिए तरस रहा था, वह पानी में घुसता है पर पानी उसे अपने में नहीं लेती है। मगरमच्छ और करमा दोनों अपना दुःख बाँटने लगते हैं। करमा कहता है — मैंने करम राजा को दुखी किया, इसलिए वह हमसे बहुत दूर चल गया और मेरा जीवन तकलीफ़ से भर गया है। मगरमच्छ कहता है — मैंने समुद्र पार करते एक नाव को पलट दिया, उसमें बैठी नवविवाहित लड़की को खा गया। उसका मांस तो पच गया पर उसके गहने नहीं पचे। मैंने जोड़ा फूट कर दिया। उसका पति अकेला हो गया। अभी उसी की सज़ा भुगत रहा हूँ। एक दूसरे की कहानी सुनकर दोनों आपस में सलाह कर लेते हैं। मगरमच्छ कहता है कि करमा तुम मुझे कसकर पकड़ लो और मुझ पर बैठ जाओ। मगरमच्छ पर बैठ कर समुद्र के बीचों बीच पेड़ तक करमा पहुँचना चाहता है, जैसे ही वह पास होता करम का पेड़ दूर भागने लगता है। मगरमच्छ और करमा विनती करने लगते हैं, रोते हैं उन्हें अपने कर्मों पर पछतावा होता है। उनका रोना सुनकर करम पेड़ को उनपर दया आ जाती है। वह रुक जाता है। करमा पेड़ के तने को पानी देता है, चावल देता है। अरवा धागा से लपेटता है। विनती करता है। फिर ख़ुश होकर उसकी टहनी लेकर अपने गाँव की ओर निकल जाता है। रास्ते में वही गाय दिखती है। जिसने अपने बच्चे को बीड़दो कर दिया था। करमा पास जाकर फिर से बछड़ा गाय के पास रख देता है। देखता है कि गाय अपने बछड़े से ख़ूब प्यार करने लगी। करमा ख़ुश होकर आगे बढ़ जाता है। रास्ते में वही बिरनी घास वाली युवती मिलती है, वह पूछती है कि करम राजा ने क्या उत्तर दिया? करमा बोलता है कि तुम बहुत ढीठ हो, किसी की बात नहीं सुनती, अपना व्यवहार सुधारो, सब ठीक हो जाएगा। ऐसा कहकर आगे बढ़ जाता है। रास्ता में डुम्बर का पेड़ मिला। उसने डुम्बर तोड़ा। फल ख़ूब अच्छा निकला, उसने भर पेट डुम्बर खाया। फिर पानी पीने बढ़ता है, देखता है कि पानी भी ख़ूब साफ़ है। पानी पिता है।घर पहुँचता है। उसको देख सब सम्मान देने आ जाते हैं। गाँव वाले सब आ जाते हैं और बड़े भाई को ख़ूब सम्मान देते हैं। उसका पैर धोते हैं। अखड़ा में करम गाड़ा जाता है। सब नाचते - गाते अच्छे से त्यौहार मनाते हैं।


कहानी यहीं ख़त्म होती है। कहानी सुनने के बाद गीत, माँदर और नृत्य होता है। आदिवासी रात भर अखड़ा में झूमते हैं। रात की इस कहानी को सुनने के बाद करम की टहनियों को नदियों में समर्पित कर दिया जाता है। सुबह के समय अखड़ा से करम को उखाड़ कर बैगा के घर लाया जाया जाता है। फिर अपना नेग नियम निभाने के बाद नदी ले जाकर पानी में बहा दिया जाता है। करम को बिदा देते हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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