छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक ऐसा गाँव है जो तीनों ओर से पानी से घिरा हुआ है और यहाँ वनों के मूल निवासी आदिवासियों का बना रैन बसेरा है। यह गाँव काला हीरा का खदान कहलाने वाला कोरबा से 60 से 70 किलोमीटर की दूरी पर है। ज्यादातर इस गाँव में बिरहोर समुदाय के आदिवासी ही रहते हैं।
हम बात कर रहे हैं इस अद्भुत गाँव बोडानाला के बारे जो हंसदेव नदी पर बसा है। यह गाँव हंसदेव बांध से भी सटा हुआ है। यहाँ के ज्यादातर आदिवासी जंगल पर ही निर्भर हैं, जंगलों से प्राप्त लकड़ी से ही वे अपना घर बनाते हैं, तथा उन्हीं लकड़ियों से ही अपना बाड़ी भी बनाते हैं। यहाँ के आदिवासी भयभीत होकर ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं क्योंकि इस क्षेत्र में हाथी का हड़कंप आए दिन मचा रहता है, जिससे उनको बहुत नुकसान उठाना पड़ता है l इस कारण यहाँ के आदिवासी शासन से हमेशा सुरक्षा के लिए मांग करते रहते हैं। राशन लेने के लिए भी इन्हें कोसों दूर किसी दूसरे गाँव मे जाना पड़ता है।
देखने में तो यह गाँव अत्यंत ही खूबसूरत है, तीन तरफ से नीले पानी से घिरे रहने के कारण यह गाँव लोगों को काफ़ी आकर्षित करती है। परंतु यहाँ के लोग अनेकों समस्याओं का सामना करते हुए अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं। यहाँ के लोग नाव के सहारे ही गाँव से आना-जाना करते रहे हैं। हाल-फिलहाल में प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत् घने जंगलों को काटते हुए वहाँ तक सड़क पहुंची है इससे लोगों को कुछ राहत महसूस हुआ है। इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों की मुख्य धंधा वनों से मिलने वाले वस्तुएं तथा नदियों से मछली पकड़ कर अपना जीवन यापन करते हैं। हंसदेव बांध के बनने से यहाँ के कई लोगों का ज़मीन भी बांध में समा गया। इससे यहाँ के लोगों की स्थिति और भी अधिक दयनीय हो गई।
आसपास के गाँवों के कई दयालु समाज सेवी व्यक्ति अपने स्वेच्छा से बिरहोर समाज के लोगों को समय-समय पर आवश्यक सामग्री जैसे- कपड़ा, राशन आदि वितरीत करते रहते हैं जिससे उनको कुछ सहयोग मिल जाता है।
पहले तो इस क्षेत्र में राशन दुकान भी नहीं रहता था लोग कोसों दूर जाकर अपना राशन सामग्री लाते थे l अब लोगों में जागरूकता और शिक्षा आने से जगह-जगह पर राशन दुकान और व्यापारियों का दुकान स्थापित हो चुका है जिसके कारण इस क्षेत्र में संसाधन की बुनियादी सुविधा उपलब्ध होने लगी है। सरकार ने भी प्रधानमंत्री सड़क योजना, मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत उनके घर तक का रास्ता बनाने का कार्य कर दिया है। जिससे इनको आने जाने में सुविधा महसूस हो रही है। परंतु इस गाँव का विकास अभी भी बहुत कम ही हुआ है, इस क्षेत्र के आदिवासियों में शिक्षा का बहुत ही ज्यादा अभाव होने से इनके बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल पा रही है।
यदि यहाँ के आदिवासियों उनके ज़मीन का सही हक़ मिले, और बढ़िया तरीके से यदि इस गाँव का विकास किया जाए तो यह एक सुंदर पर्यटन स्थल बन सकता है, इससे यहाँ के आदिवासियों का भी जीवन सुदृढ़ होगा।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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