छत्तीसगढ़ राज्य में लगभग 32 प्रतिशत लोग आदिवासी समुदाय से हैं। गाँव में रहने वाले आदिवासियों का जीवन मुख्य रूप से वनों पर निर्भर रहता है, छत्तीसगढ़ के करीब-करीब 44 फीसदी हिस्सा जंगलों से ढका हुआ है। जिसमें कई प्रकार के वनोपज पाये जाते हैं, इन्हीं वनोत्पादों के सहारे सैकड़ों आदिवासियों का जीवनयापन होता है। यहाँ के जंगलों में मुख्य रूप से महुआ, तेंदू पत्ता,चार, भेलवा, आंवला, बहेड़ा, हर्रा, चारोटा और धवई के फूल पाए जाते हैं। इसी धवई फूल के जरिये अनेक आदिवासी महिलाओं को कमाई का जरिया मिल गया है।
धवई फूल छत्तीसगढ़ के जंगलों के प्रमुख वनोपज है। इसका वैज्ञानिक नाम वुडफोर्डिया फ्रूटीकोसा है, इसे धवई, ढवाई, ढाई, दवाई, धातकी आदि नामों से भी जाना जाता है। यह एक द्विबीजपत्री झाड़ीनूमा वृक्ष है जो उष्ण कटिबंधीय जगलों मे पाया जाता है, इसकी उंचाई लगभग 5-8 फूट होती है, यह मैदानी और पहाड़ी स्थानों पर पाया जाता है। एक खबर के मुताबिक धवई फूल रायपुर के बाजारों में 40-45 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है, और आने वाले दिनों मे इस पर बढ़ोतरी भी हो सकता है। पारम्पारिक तौर पर इस पौधे के छाल और फूलों का औषधियों के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके फूल को तिल के तेल के साथ मिलाकर बनाया गया लेप जलने और छिलने पर लगाया जाता है। सूखे फूलों का उपयोग पेचिस अतिरज (मासिक धर्म में अत्यधिक रक्त प्रवाह ) ल्यूकेरिया, यकृत रोग और बवासीर में किया जाता है।
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला में एक छोटा सा गाँव है रिंगनियां, यह गाँव चारों ओर से वनों से घिरा हुआ है, यहाँ के जंगलों में कई एकड़ जमीनों पर केवल धवई फूल का पौधा है, दूर-दूर तक सिर्फ़ यही नजर आता है। माग-फाल्गुन के महीने में इस पर फूल आते हैं, जंगलों में जाकर देखने से इसकी लाल फूल ऐसे प्रतीत होते हैं, मानो कानन में आग लगी हो। इसी फूल को सुरल (तोड़ना) कर यहाँ की महिलाएं अच्छी आमदनी कर रही हैं। श्रीमती बिधन बाई बिंझवार जी ने बताया कि "धवई फूल हम आदिवासी महिलाओं के आमदनी का अच्छा स्रोत है। हर वर्ष माग-फाल्गुन के महीने में इसके फूल लगते हैं, इन दिनों हम इस फूल को सुरल करके इसे बाज़ार में बेचते हैं।"
फाल्गुन के महीने में गाँव के छोटे किसान अपने सूखे खेतों की जुताई कर उसे ठीक कर रहे होते हैं, वहीं महिलाएँ सुबह खाना-पीना करके जंगलों में फूल इकट्ठा करने के लिए चली जाती हैं तथा शाम होने से पहले घर लौट आती हैं। इस तरह एक महिला प्रतिदिन लगभग 6-7 किलो फूल सुरल लेती है और उसे 3-4 दिन सुखाने के बाद हाट-बाज़ारों में 30-35 रुपये किलो के हिसाब से बेच देती है। इसी तरह एक दिन का 180 से 200 रुपये के बीच कमाई होता है, और सप्ताह में ये महिलाएं 1000 से 1200 के बीच कमा लेती हैं। इसे पुरुष लोग भी सुरलते है लेकिन ज्यादातर महिलाओं के द्वारा यह काम किया जाता है। गाँव में सिर्फ़ एक-दो ही ऐसे पुरुष हैं जो इस काम में रुचि दिखाते हैं।
धवई फूल की बढ़ती मांग को देखते हुए यहाँ के आदिवासी महिलाओं का रुझान इस ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। कई महिलाएँ इसके पेड़ को काट कर फूलों को तोड़ती हैं, यह चिंताजनक है क्योंकि इससे पेडों की संख्या कम हो जाएगी। अत: इसका ध्यान स्वयं आदिवासीयों को रखना होगा और उसके पेड़ों को बिना नुकसान पहुंचाए, इसके फूलों से लाभ लेना होगा।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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