इमली का नाम लेते ही मुंह में पानी न आए, ऐसा बहुत कम लोगों के साथ होता है। इमली अपने खट्टेपन के कारण हम सभी को लुभाता है, और इसका नाम मात्र सुनते ही हमारे लार टपकने लगते हैं।
इमली का फल जून जुलाई में लगना शुरू होता है और अक्टूबर तक नवम्बर इसके फल बड़े हो जाते हैं। इमली का फल फरवरी मार्च में पकता है, और इसे अप्रैल-मई में तोड़ते हैं। यह कच्चे में खाने से बहुत अच्छा लगता है और बहुत लोग इसके खट्टेपन का स्वाद कच्चे में लेना पसंद करते हैं। पकने के बाद जब यह सूख जाता है तो इसका उपयोग कई प्रकार से किया जाता है। इसे लंबे समय तक संभाल कर घर में रखते हैं ताकि ज़रूरत के समय इसका उपयोग कर सकें। ग्रामीण आदिवासियों के लिए यह बहुत उपयोगी साबित होता है, जिसके पास इमली का पेड़ हो उसके लिए फायदे की बात बन जाती है।
इमली का उपयोग आदिवासियों के द्वारा अनेक प्रकार से होता है। अधिकतर लोग इसे गर्मियों में चटनी बनाकर खाना पसंद करते हैं। चटनियों में इमली का चटनी मन को भा जाता है इसीलिए तो इसे चटनियों का राजा कहा जाता है। इसका स्वाद तेज़ तर्रार धूप में मन को अलग एहसास देता है। आदिवासी घरों इसे अधिकतर शाम के बचे चावल(बासी) या जूढ़ भात (पेज) के साथ खाया जाता है। बासी को पानी में भिगो दिया जाता है और उसके साथ इमली चटनी को खाने से बोरे बासी का मिठास भी बढ़ जाता है। ग्रामीण आदिवासी हमेशा से ही मेहनती होते हैं और गर्मियों में भी वे मेहनत करना नहीं छोड़ते, जितनी धूप सहने की उनकी क्षमता होती है वे उतने धूप तक काम करते रहते हैं और इस परिस्थिति में दोपहर के भोजन में बोरे बासी या जूढ़ भात के साथ इमली चटनी मिल जाए तो भोजन का आनंद ही अलग होता है।
इमली का अधिकतर उपयोग चटनी के रूप में ही होता। साथ ही इसके दाने का उपयोग खेलने के लिए किया जाता है। इसके दाने को "इमली चिठोला" भी कहते हैं। जिसे बच्चे सांप सीढी और लूडो आदि जैसे खेलों को खेलने में उपयोग करते हैं। इसके साथ ही इसको आग से भून कर खाया भी जाता है, जो खाने में काफ़ी अच्छा लगता है। इमली चटनी लोग कई प्रकार से बनाते हैं। जिसमें सबसे जाता प्रचलित है इसे भिगो कर बनाना। इमली चटनी बनाने के लिए सबसे पहले इसके ऊपर के खाल से इमली को निकाला जाता है और उसके बाद उसके दाने को निकाला जाता है फिर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है। इसके उपरांत इसे पानी में भिगोया जाता है इसके साथ प्याज को भी काटकर भिगो देते हैं। जब यह पूरी तरह भीग जाता है तब इसे छान लेते हैं, और उसमें नमक मिर्च डालकर अच्छे से मिला देते हैं, और इस प्रकार बन जाता है हमारा इमली चटनी।
इमली का उपयोग चटनी बनाकर मात्र खाने के लिए नहीं होता है। इसे बेचा भी जाता है, दुकान, बाज़ार में इसकी बिक्री होती है। इस प्रकार यह ग्रामीण आदिवासियों के लिए एक आय का साधन भी बन जाता है। इसे बेचकर वे रुपए प्राप्त कर पाते हैं जिससे उन्हें अपना घर चलाने में काफी मदद मिल जाता है। इसका मूल्य, दाने के साथ 20-25 रु प्रति किलो होता है और बिना दाने के साथ 50-60 रु प्रति किलो होता है। ग्रामीण इस धन राशि से अपने जीवन की कई सारी ज़रुरतों को पूरा कर पाते हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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