के जीवन में अनेक कठिनाइयां आते रहते हैं, जिसमें सबसे बड़ी कठिनाई होती है पैसों की कमी, इसलिए वे अपने खान पान व अन्य ज़रूरतों की पूर्ति हेतु जंगलों से कुछ फल-फूल इकट्ठा करते रहते हैं इन्हें बेचकर वे पैसा कमा लेते हैं और अपनी छोटी-मोटी ज़रूरतों को भी पूरा कर लेते हैं।
ग्रामीण आदिवासियों द्वारा इकट्ठा किए जाने वाले फल फूलों में से एक है भेलवा फल। खाने में यह स्वादिष्ट होता है, एवं इसका अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है। आदिवासियों को जंगलों के चीज़ों के बारे में अनेक जानकारी होती है जिससे वे जंगलों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के फल-फूल का सही उपयोग जानते हैं। इन्हीं में से एक है भेलवा फल, इसका फल ही नहीं बल्कि इसका पेड़ भी उपयोगी होता है। इसके पेड़ का उपयोग जड़ी बूटी बनाने में होता है।
भेलवा फल हमें गर्मियों के समय अप्रैल-मई में देखने को मिलता है। इसके फल में दो हिस्से होते हैं एक हिस्से को आंड़ी(बिज) कहा जाता और दूसरा हिस्सा इसके ऊपर होता है एवं इसको खाया जाता है। पकने के बाद इसके फल को आग में भून कर खाया जाता है। जो अलग ही स्वाद देता है। इसका फल हरा रंग का होता है जो पकने के बाद लाल हो जाता है। इसे सूखने के बाद भी खाया जाता है, अधिकतर लोग तो इसे सूखे में ही खाना पसंद करते हैं क्योंकि यह सूखे में अधिक स्वादिष्ट लगता है। इसके फल को पका हुआ और सूखे में तो खाते ही हैं साथ ही इसके आंड़ी को फोडकर उसके अंदर के चिरोंदी को भी खाया जाता है। खाने के साथ ही इसके फल को बेचा भी जाता है। इसका फल स्वादिष्ट होने के कारण खाने वाले इसे अधिक मात्रा में खरीदी करते हैं। यह शहरों में नहीं मिलता है जिस कारण से शहर के लोग अधिकतर खरीदते हैं। इसे बेचकर ग्रामीण आदिवासी कुछ रकम प्राप्त कर लेते हैं। ज्यादातर इसके बीज की ही बिक्री होती है, ग्रामीण आदिवासी इसके फल को बेचने के लिए अपने हिसाब से मूल्य निर्धारित करते हैं, किंतु इसके बीज का मूल्य दुकानदार द्वारा पहले से ही निर्धारित होता है। इसका मूल्य 12 से 15 रु प्रति किलो होता है। ग्रामीण व्यक्ति इसे इकट्ठा करते हैं और बेचते हैं जिससे उन्हें पैसे मिल जाते हैं। इस तरह भेलवा उनके ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आय का साधन बन जाता है।
भेलवा के फल का उपयोग दवाई बनाने के रूप में भी होता है। इसके बिज से जो तेल निकलता है वह घावों के ईलाज में भी काम आता है और उसी से हमें घाव भी होता है। जब हमारी एड़ी अधिक फट जाता है तब इस तेल को गर्म करके उसे एड़ी में डालने से फटी एड़ी का दर्द मिट जाता है और यदि इसका तेल गलती से हमारे त्वचा में लग जाता है तो दाद की तरह घाव कर देता है। इसलिए सावधानी रखना अनिवार्य है। इसका पेड़ भी जड़ी बूटी में काम आता है, यदि किसी को खांसी हुआ हो तो उसे भेलवा पेड़ के जड़ को आग में भूनकर खाने से खांसी ठीक हो जाता है। किंतु बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार इसका जड़ पेड़ पर उगा हुआ होना चाहिए, जैसे कि बरगद के पेड़ पर होता है तभी ईलाज में काम आयेगा अन्यथा नहीं।
पेड़ छत्तीसगढ़ में अनेक हिस्सों में पाया जाता है। छत्तीसगढ़ के कोरबा, सरगुजा, सूरजपुर, कोरिया आदिलगभग सभी जिलों में भेलवा के पेड़ पाए जाते हैं। अलग अलग जगहों में इसके अलग-अलग नाम भी हो सकते हैं। इस पेड़ के नाम पर छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के रिंगानिया नामक गांव में एक मोहल्ला भी है जिसका नाम भेलवा टिकरा है। अब इसे लोग भेलवा पारा के नाम से भी जानते हैं। बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार इस मोहल्ले में अधिक भेलवा पेड़ होने के कारण इसका नाम भेलवा टिकरा पड़ा।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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