खेल मनोरंजन का उत्तम साधन है, खेलने से हमारे शरीर का हर अंग सुचारु रूप से कार्य करते हैं। जिस प्रकार मनुष्य शरीर के लिए खाना-पीना, सोना आदि अनिवार्य है, उसी प्रकार खेलना भी अनिवार्य है। यह एक तरीके से व्ययाम ही है, हमेशा खेलते रहने से शारीरिक और मानसिक विकास तो होता ही है, इसके साथ-साथ कई बीमारियां भी दूर होती हैं। ग्रामीण आदिवासी समुदायों में ऐसे अनेक खेल हैं जिससे मनोरंजन के साथ-साथ उनका शारीरिक और मानसिक विकास भी होता है।
ऐसा ही एक खेल है अंडा चोर जिसे छत्तीसगढ़ के आदिवासी बच्चे बड़े चाव से खेलते हैं। यह खेल प्राचीन समय से आदिवासी बच्चों द्वारा खेला जा रहा है परंतु आज भी यह बच्चों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। शाम को 5 बजे के बाद जैसे ही सूरज छितिज पर ढलने को होता है, ग्रामीण बच्चे अपना खेल-कूद शुरू करते हैं और अंधेरा होने तक खेलते हैं। कोरबा जिले में स्थित ग्राम पंचायत रिंगनियां के रहने वाले 45 वर्षीय सुख सिंह जी बताते हैं कि "अंडा चोर बहुत पुराना खेल है, इसे हम भी बहुत खेले हैं और हमारे पिताजी लोग भी इस खेल को बहुत पसंद करते थे।"
यह खेल 7 से 10 मीटर के खाली स्थान पर आसानी से खेला जा सकता है। इस खेल में पाँच बच्चे भाग लेते हैं, कहीं-कहीं पर इससे अधिक बच्चे भी खेलते हैं। अंडा चोर खेलने के लिए लकड़ी से रेखा खींचकर चार डब्बे बनाये जाते हैं, हर डिब्बे में एक सदस्य होता है, और बीच में एक खिलाड़ी अंडा रूपी पत्थरों के साथ खड़ा होता है। बाकी खिलाड़ीयों को इन अंडों को चुराकर सभी घरों में घूमना होता है और बीच में खड़ा खिलाड़ी इन अंडों की रक्षा करता है। यदि अंडा चोरी करते हुए वह किसी को छू लेता है तो वह खिलाड़ी अब बीच में आकर अंडों की रक्षा करता है। यदि सभी अंडे चोरी हो जाएं तो बीच की खिलाड़ी की आँखे बंद कर उसकी हथेलियों को अंजुरी बनाकर उसमें रेत भरा जाता है और उस रेत में लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े रखकर उस व्यक्ति को दो-तीन बार इधर-उधर घुमाकर थोड़ी दूर में फेंकवा दिया जाता है, ऐसा उसे आंख बंद कर के करना होता है, फ़िर उसे वापस खेलने के स्थान में लाकर उसकी आँखें खोल दी जाती हैं, और अब उसे फेंके गए स्थान को ढूंढकर लकड़ी के टुकड़े लाने होते हैं और इसी के साथ यह रोचक खेल समाप्त होता है।
आज के जमाने में छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल आ जा रहा है, और वीडियो गेम खेलने के चक्कर में वे इन रोचक खेलों को भूलते जा रहे हैं, जो आगे चलकर उनके शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा बन सकती है। अतः हमें बच्चों को प्राचीन खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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