इस महीने जब हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं तो ऐसे में उन आदिवासी महिलाओं को सम्मानपूर्वक याद करना ज़रूरी हो जाता है, जो अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में अर्पित कर दिए हैं और जिन पर समाज के ज्यादातर लोग आश्रित हैं।
हम बात कर रहे हैं आशा वर्करों की जिन्हें छत्तीसगढ़ में मितानिन कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के प्रत्येक गाँव में एक मितानिन हैं, प्राथमिक स्वास्थ्य से जुड़ी हर समस्या का हल गाँवों में ये मितानिन जी ही करती हैं। यही नहीं, स्वास्थ्य से जुड़ी कोई योजना आए तो उसकी जानकारी देना, योजना का लाभ पहुँचवाना, बीमारियों के प्रति लोगों को जागरूक करना यह सारा काम मितानिन जी ही करती हैं।
आदिवासी क्षेत्रों में महिलाएँ अपने स्वास्थ्य और अपने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर बहुत कम जानकारियां रखती हैं, और जानकारियों के अभाव में उन्हें अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता। ऊपर से सामाजिक ताना बाना ऐसा रहता है कि पुरुषों से खुलकर बात भी नहीं कर पाती हैं। ऐसे में इन मितानिनों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती हैं, ये खुद महिलाएं होती हैं जिसके कारण गाँव की महिलाएं बेझिझक होकर अपनी बात रख पाती हैं। मितानिन समय-समय पर टीकाकरण आदि के लिए लोगों को बताती हैं, महिलाओं के प्रसव होने से पहले उनकी देखभाल करना सिखाती हैं, जच्चा और बच्चा दोनों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारियां देती हैं। इन सबके अलावा यदि किसी महिला को स्वास्थ्य से जुड़ी कोई सलाह लेना हो तो वे अपने मितानिन के यहाँ कभी भी जा सकती हैं। वे घर-घर जाकर लोगों को मलेरिया, निमोनिया, टीबी, हैजा आदि बीमारियों के प्रति जागरूक भी करती रहती हैं। कोरोना महामारी के दौरान भी ये मितानिन लोगों को जागरूक करने से लेकर उन्हें टीकाकरण करवाने तक में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं।
मितानिन लोग निःस्वार्थ भाव से 24 घंटे अपना सेवा देने के लिए तत्पर रहते हैं। जिस तरह से वे लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ पहुंचाते हैं, यदि उन्हें गाँवों का देवदूत कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनकी इस सेवा भावना को देखते हुए प्रत्येक वर्ष 23 नवंबर को मितानिन दिवस मनाकर उन्हें सम्मानित किया जाता है।
मितानिन अंजनी जी बताती हैं कि "कुछ समय पहले पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा था। जिसमें मितानिनों ने लोगों को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल अपने कर्तव्य निष्ठा से लोगों तक सुविधा पहुंचाई बल्कि लोगों के जीवन को सुरक्षित रखा और आज उन्हीं के मेहनत से ही अनेक लोग सुरक्षित हैं। वे बताती हैं कि मितानिनों का मुख्य काम है - टीकाकरण करवाना, प्रसव पूर्व जांच करवाना आदि। इन सबके बदले प्रशासन की तरफ़ से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। हर साल हमें मितानिन दिवस पर सबके सामने सम्मानित किया जाता है, श्रीफल (नारियल) और साड़ी देकर हमारे कार्यों की सराहना भी की जाती है।"
आज मितानिनों के वजह से ही छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य की स्थिति थोड़ी बेहतर बनी हुई है। पहले तो गाँवों में हैजा, कुपोषिण जैसी बीमारीयां फैली हुई थी, और गाँव वालों को इतना भी मालूम नहीं था कि उस बीमारी से कैसे बचा जाए। लेकिन मितानिनों के गठन के बाद उनमें जानकारियां बढ़ी। इन्हीं मितानिनों के होने से यहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में मातृ मृत्यु दर तथा शिशु मृत्यु दर में भी भारी कमी आयी है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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