हम आदिवासीयों का ज्ञान अपने पूर्वजों की देन है, जीवन जीने से संबंधित अनेकों ज्ञान वे हमें देकर गए हैं। संपूर्ण प्रकृति के साथ समन्वय कैसे बनाना है यह भी हमें उन्हीं से सीखने मिलता है। हमारे पूर्वजों ने शरीर में होने वाले अनेक बीमारियों का पारंपरिक इलाज ढूंढ निकाला था। जंगलों में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों के द्वारा ही जटिल से जटिल बीमारियों का इलाज कर लेते थे।
जैसा कि हम सभी जानते है कि आदिवासी अधिकतर गांवों में बसते हैं और जंगलों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। और अपने किसी भी जरूरत की पूर्ती हेतु अधिकतर जंगलों पर निर्भर रहते हैं। यहाँ ऐसा नहीं है कि हर चीज जांगलों से प्राप्त करते हैं बहुत से सामान उन्हे बाज़ार, दुकान आदि से लेना पड़ता है। किंतु जहां बात आती है ईलाज के लिऐ तो बहुत से जड़ी बूटी हैं जो जंगलों में प्राप्त होते हैं और जिनका उचित सेवन करने से हमें लाभ प्राप्त होता है और हम रसायनिक दवाईयों का उपयोग करने से बच सकते हैं।
रासायनिक दवाईयों का प्रचलन इतना बढ़ गया है कि अब लोग अपने पूर्वनों की देन विद्या को भुला रहे हैं और रासायनिक दवाई के अतिशीघ्र असर करने से लोग रसायनिक दवाई की ओर तेज़ी से अग्रसित होते जा रहे हैं। लेकिन रसायनिक दवाई अतिशीघ्र असर तो करता है किन्तु हमेशा के लिए नहीं मिटा पाता। वहीं जंगलों से प्राप्त जड़ी बूटी भले ही धीरे असर करते हैं, किन्तु लम्बे समय के लिए उस रोग को रोक देते हैं या फिर हमेशा के लिए मिटा देते हैं।
आज हम जानेंगे ऐसे ही एक पौधा गावरखर के बारे में जो अनेक बिमारियों के ईलाज में काम आता है। गावरखर एक ऐसा पौधा है जिसका उपयोग अनेक प्रकार से किया जाता है और यह कई बीमारियों के ईलाज के लिए काम आता है इस पौधे की खासियत यह है कि यह इंसानों के साथ साथ पशुओं के बीमारियों का भी ईलाज के लिए काम आता है। अधिकतर पशुओं में कमजोरी होती है, जिसके लिए हम कई प्रकार के रसायनिक दवाईयों का सहारा लेते हैं वहीं गावरखर पौधा को पशुओं को खिला देने से उनकी कमजोरी दूर हो जाती है। साथ ही यह इंसानों में होने वाले कई प्रकार के रोगों को मिटा देता है अधिकतर लोग इसका उपयोग हाथ पैर के नशों में आए तनाव को दूर करने के लिए का उपयोग करते हैं। किसी भी कामकाज को करते समय या खेलते समय या कहीं गिर जाने से हमारे हाथ पैरों में चोट लग जाता है और कभी-कभी अंदरूनी चोट भी लग जाता है, जैसे कि नशों पर तनाव आ जाना या हड्डियों का अपने जोड़ से हिल जाना आदि अंदुरूनी चोटों के ईलाज हेतु यह गावरखर पौधा अत्यन्त कारगर साबित होता है।
इसे उपयोग में लेने के लिए उसके पत्तों को या टहनियों के मिलाकर इसे पीस लिया जाता है और पीसने के बाद उसको छानकर उसके रस अलग कर लिया जाता है, तत्पश्चात हम सेवन करते हैं और इसके बचे हुए पेस्ट को वहाँ लगा देते हैं जहां हमे अंदरूनी चोट लगा हो। इसका उपयोग लगातार तीन दिन तक करना होता है अर्थात् इसका तीन खुराक लेना आवश्यक है।
पूर्वकाल से ही हमारे पुर्वजों द्वारा जंगली जड़ी बूटियों का उपयोग हो रहा है, और आज भी इसका प्रचलन जारी है। किंतु यह सिर्फ ग्रामीण आदिवासियों के पास देखने को मिलता है। गाँवों मे आज भी जंगली जड़ी बूटियों का उपयोग कर लोगों का ईलाज का किया जाता है, भले ही रासायनिक दवाईयों का प्रचलन अधिक हो गया है। शहरों की ओर जाने वाले आदिवासियों को भी अपने इन ज्ञान को सीखकर सहेजने की ज़रूरत है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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