पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
छत्तीसगढ़ में वैसे तो विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। लेकिन, कुछ पकवान ऐसे होते हैं जो अपने समय (सीजन) में ही उपलब्ध हो पाते हैं। क्योंकि, उनको अन्य समय में बनाने के लिए जरूरत का सामान नहीं मिल पाता है। इसलिए, वह पकवान एक ही समय में ही उपलब्ध हो पाता है। और बाकी पकवान तो सामग्री उपलब्ध होने पर हर मौसम में बनाए जाते हैं, जैसे खोवा, गुलाब-जामुन, काजू-कतली, पेड़ा और जलेबी अदि पकवान आपको हर माह देखने को मिल जाएगा। लेकिन, मौसमी पकवान जैसे रखिया, पाग और कतरा केवल एक समय तक ही उपलब्ध रहते हैं।
गन्ने के रस से बनाए जाने वाला पकवान, जिसे स्थानीय बोली में कतरा कहते हैं, वह केवल नवंबर से मार्च तक ही बनाए जाते हैं। चूँकि, बाकी समय में गन्ना उपल्ब्ध नहीं रहता है। इसलिए, केवल सीजन में ही कतरा को बनाया जाता है।
कतरा बनाने के लिए गन्ने के रस की आवश्यकता होती है। तस्वीर में आप देख सकते हैं कि, कुछ लोग साथ मिलकर भैंसों के द्वारा चरखा चला रहे हैं और एक व्यक्ति भैंस को गोल-गोल घुमा रहा है। चरके का मुख्य सिरा भैंसो से बंधा हुआ है, जिससे भैंसों के साथ-साथ चरखा भी घूम रहा है। और दूसरा व्यक्ति चरखे में गन्ना को डाल रहा है और चरखों में दबने से गन्ने का रस निकाल रहा है, जिसको एक पाइप की सहायता से डिब्बे में भरा जाता है और पूरे गन्ने की पेराई हो जाने के बाद, गन्ने के बदले उन लोगों को रस दे दिया जाता है और बदले में उनसे एक डिब्बे के हिसाब से रूपये ले लेते हैं। गन्ने से रस निकालने के लिए दो प्रकार के चरखा होते हैं, एक इलेक्ट्रॉनिक चरखा और दूसरा बैल-भैंस चरखा। लेकिन, कतरा बनाने के लिए बैल-भैंस चरखा उत्तम रहता है। क्योंकि, इस चरखे में तेल अंश भर भी नहीं रहता है और रस सम्पूर्ण तारिक से शुद्ध रहता है।
रस निकालने के पश्चात, रस को एक पतीले में रखकर गैस या फिर चूल्हे के माध्यम से उबाला जाता है। तस्वीर में आप देख सकते हैं कि, गन्ने के रस को उबाला जा रहा है और उबलने के साथ रस के ऊपर में काला सा मरी बाहर आ रहा है। कतरा बनाने के लिए गन्ने के रस से मरी को निकालना जरूरी रहता है। क्योंकि, मरी के निकलने पर ही रस साफ होता है। उबालने की प्रक्रिया के साथ ही सारे वेस्ट पदार्थ बाहर निकल जाते हैं, जिन्हें एक झारे की मदद से छानकर निकाला जाता है। फिर, रस साफ होने के बाद, उसने (उसना) चावल का पिसान डालकर पकाया जाता है और साथ में दूध डाला जाता है। फिर उस मिश्रण को उबाल कर पकाया जाता है। कतरा पुरी तरह बन जाने के बाद, उसको एक थाली या प्लेट में डाल दिया जाता है और अच्छे से चारों तरफ फैला दिया जाता है और उसको ठंडा होने के लिए रात भर छोड़ दिया जाता है। फिर, अगले दिन सुबह कतरा को छोटे-छोटे पीस में कटिंग करके खाया जाता है।
तस्वीर में आप देख सकते हैं कि, गन्ने के रस से बनाया गया कतरा थाली में रखा गया है। इसका स्वाद गन्ने के जैसा मीठा रहता है और इसको बनाने में ज्यादा सामग्रियों की आवश्यकता भी नहीं पड़ती और एक से डेढ़ घंटे में बनकर तैयार हो जाता है। और यह पकवान एक से डेढ़ दिन तक ही अच्छा रहता है। गन्ना-पूजा होने के बाद से कतरा बनाना शुरू होता है और गन्ने की समाप्ति तक बनता रहता है। स्थानीय लोग इसको बना-बना कर लुफ्त उठाते हैं, जब तक की गन्ना मिलना बंद ना हो जाए।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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