top of page
Jagmohan Binjhwar

जानिए कैसे यह व्यक्ति, जड़ी-बूटीयों से करता है अनेक बीमारियों का इलाज?

छत्तीसगढ़ वैसे भी विभिन्न तरह के चिकित्सकीय और सुगन्धित पेड़ पौधों से समृद्ध है। इनमें से ज्यादातर जड़ी- बुटियों का इस्तेमाल पीढ़ियों से आयुर्वेद, यूनानी और हर्बल दवाओं के रूप में किया जाता रहा है। यहां का 44 फीसदी हिस्सा जंगलों से ढका है और यहां के घने जंगलों में कई बीमारियों के सटीक इलाज लायक जड़ी बुटियां मौजूद हैं। लेकिन बदलते वक्त में अब उन जंगल की दुर्लभ जड़ी बुटियों की पहचान करने वाले कम ही बचे हैं। हमने एक ऐसे ही जड़ी बुटी के जानकार श्री अंजोर सिंह जी से बातचीत की।

औषधि तैयार करते हुए अंजोर सिंह जी

कई प्रकार के बीमारियों का उपचार प्रकृति में उपलब्ध जड़ी -बुटी से करने वाले अंजोर सिंह का जन्म छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला के अंतर्गत रिंगनियां नामक गांव में हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय हरिचरण एक छोटे किसान होने 99 के साथ- साथ जंगली जड़ी बुटियों के अच्छे जानकार था। इनके समय में हॉस्पिटल और मेडिकल उपलब्ध नहीं थे तो कई घातक और जानलेवा बीमारियों का उपचार ये जड़ी बूटियों के जरिए करते थे। अंजोर सिंह की पढ़ाई कक्षा 6 तक हुई, विद्यालय दूर होने कारण आगे की पढ़ाई न कर पाये। बचपन से ही अंजोर सिंह को जड़ी-बाटियों को जानने की जिज्ञासा थी। ये पिता के साथ कृषि कार्य में हाथ बंटाते थे, और जड़ी बूटियों के खोज में जंगल जाते थे, धीरे-धीरे ये भी औषधीय जड़ी-बूटी को पहचानने लगे और रोगियों का उपचार करने लगे। इनका विवाह पास के गांव सरभोका में रहने वाले कमल सिंह की पुत्री जामबई से हुई, इनके ससुर भी कुछ औषधियों के जानकार थे, उन्होंने ने भी अंजोर सिंह को औषधियों की जानकारी दी। अब ये कई सारी बीमारियों का उपचार कर लेते हैं जिनमे से प्रमुख हैं- सुगर ,गांठिया, पिलिया, मलेरिया, दाद, पेचिस, सर्दी-खांसी, बुखार, टी वी, कमजोरी, खून की कमी, ऐसे लगभग 30 से 35 बीमारियों का उपचार अंजोर सिंह जी जंगली जड़ी-बुटियों से करते हैं।


छत्तीसगढ़ में मौसम का रुख बदल सा गया है, सुबह-सुबह ओस की बुदें और आस-पास घने कोहरे की चादर है। ऐसे में अंजोर सिंह जी घर पर कई सारे लोग गर्मागर्म चाय का मज़ा लेते हैं। सुबह और शाम को इनके घर पर रोगियों का भीड़ लगा रहता है, दो टाइम चाय इनके यहां हर रोज बनता है। अंजोर सिंह जी कई जानलेवा बीमारियों को जंगली औषधियों और अपने हुनर के बलबूते जड़ से समाप्त कर देते हैं। इन्होंने बताया कि "मैं लोगों के कई रोगों को दूर तो करता ही हूँ, इसके अलावा गाय बकरियों का भी उपचार करता हूँ, जैसे - सांप के कटे हुए का उपचार, टूटी हड्डियों को जोड़ना आदि छ: सात बीमारियों को दूर कर देता हूँ। इन सबके उपचार के बदले मैं एक नारियल और थोड़ा सा चुटकी भर दाल-चावल लेता हूँ। जिसे मैं अपने आराध्य देवी-देवताओं को रोगी के ठीक होने पर अर्पित करता हूँ। इसके अलावा रोगी से कुछ भी नहीं माँगता हूँ, चाहे कोई बीमारी हो। लेकिन कुछ रोगी अपने से खुश होकर धन या कपड़ा देते हैं तो ले लेता हूँ।"


45 वर्षीय लखनलाल बिंझवार जी ने बताया कि "मैं लगभग एक साल से पथरी नामक रोग से पीड़ित था। मैं डॉक्टर द्वारा दिये गये दवाइयों का इस्तेमाल किया लेकिन ठीक नई हो पा रहा था। डॉक्टरों का कहना था कि अब ऑप्रेशन करना पड़ेगा जिससे मैं बहुत डर गया था। फिर रिंगनिया में रहने वाले अंजोर सिंह के पास गया, चुटकी भर दाल-चावल और एक नारियल लेकर उन्होंने मुझे जंगली जड़ी बुटियों की दवाई दी और धीरे-धीरे मैं ठीक होने लगा। लगभग एक महीने के अंदर मैं पथरी रोग से मुक्त हो गया अब मुझे कोई परेशानी नहीं हैं, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"


विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 65 फीसदी ग्रामीण भारतीय पारम्परीक चिकित्सा पद्धति से ही अपना इलाज करते हैं। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक चिकित्सकों का महत्व बढ़ जाता है। परन्तु लगातार वनों की कटाई से जंगलों में मिलने वाले कई औषधीय पौधे विलुप्त के कागार् में हैं। ऐसे में जानकारों को ज्यादा भटकना पड़ रहा है। अत: सरकार को इस अद्भुत पारम्परिक ज्ञान को बचाने के लिए वनों को बेहतर तरीके से संरक्षित करना होगा।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

ความคิดเห็น


bottom of page