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Writer's pictureDeepak Kumar Sori

जानिये कैसे ये जंगली पत्तियाँ तालाबंदी के दौरान छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को आय प्रदान कर रही है

Updated: Jun 23, 2021

छत्तीसगढ़ में कोविड-19 महामारी थमने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार ने संक्रमण रोकने के लिए मार्च के महीने में ही तालाबंदी लागू कर दिया था। लेकिन तालाबंदी का एक नतीजा ये भी हुआ कि बहुत सारे लोगों का रोज़गार प्रभावित हो गया। मई के महीने में सरकार ने आदिवासियों को अनुमति दे दी है कि वे सारे कोविड-19 नियमों का पालन करते हुए तेंदूपत्ता का संग्रह कर सकते हैं। इससे बहुत सारे आदिवासियों को फिर से काम मिल गया है।

तेंदू पत्तियों को इकट्ठा करते समय कार्यकर्ता कोविड नियमों का सख्ती से पालन करते हैं

इस घोषणा के साथ ही वनांचल गाँवों में तेंदूपत्ता तोड़ाई का कार्य जोर-शोर से शुरू हो गया है। तेन्दु पत्ता अप्रैल-मई के माह में जंगलों में पाया जाता है और बहुत सारे गाँववाले इसकी तोड़ाई से आजीविका चलाते हैं। गरियाबंद जिले के आदिवासी गर्मी का महीना शुरू होते ही तेन्दु पत्ता का संग्रहण करने जंगलों में निकल जाते हैं। इस साल एक अच्छे जागरूकता अभियान के बाद, ग्रामीणों ने मास्क पहना और सेनेटाइजर का इस्तेमाल करते हुए जंगल से पत्तियों को इकट्ठा किया। पत्तियों की बिक्री के समय भी मास्क का इस्तेमाल करते हुए देखा गया।

हरा सोना का हरा भरा चित्र छुरा विकासखंड के ग्राम लादाबाहरा का है।

तेंदू के पत्ते गर्मियों के महीनों में एकत्र किए जाते हैं। उनका उपयोग बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है

तेंदूपत्ता तोड़ने वाले कर्मचारी का एक दिन :

गरियाबंद जिले के छुरा विकासखंड में लादाबाहरा गाँव की श्रीमती चमेली बाई सोरी (आयु 40) का कहना है कि, तेंदूपत्ता तोड़ने में महिलाएँ भी बढ़-चढ़कर कार्य करती हैं। यह कार्य सुबह 4:00 बजे से दोपहर लगभग 12:00 बजे तक चलता है। क्षेत्र में बढ़ते तापमान को देखते हुए लोग सुबह ही काम पर निकल जाते हैं। दोपहर के 12 बजते-बजते भूख और प्यास लगने लगती है और थकान भी हो जाती है। दोपहर को तेन्दुपत्ता तोड़ने का काम निपटा के लोग वापस अपने-अपने घर लौट जाते हैं। फिर अगला काम शाम को 4:30 बजे शुरू होता है जब ग्रामीण किसान पत्तों को व्यापारियों को बेचते हैं।


छुरा विकासखंड में प्रमुख तेंदूपत्ता उत्पादक क्षेत्र मलेवा पहाड़ है। यहाँ अधिक मात्रा में तेंदूपत्ता पाये जाते हैं, और तेंदूपत्ता तोड़ाई के कार्य से जुड़े लोगों जनसंख्या भी काफी अधिक है।


इस साल के तेंदूपत्ता का खरीदी बिक्री ब्यौरा :

तेंदूपत्ता फड़ - लादाबाहरा गाँव के मुंशी बिसाहू राम नेताम (आयु 48), का कहना है प्रतिवर्ष तेंदूपत्ता की दर प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति तय करती है। मुंशी बिसाहू राम नेताम एवं आसपास के गाँव के अन्य मुंशियों व तेंदूपत्ता तोड़ने वाले मजदूरों से मिली जानकारी के अनुसार तेंदूपत्ता को एक गड्डी के रूप में तैयार किया जाता है। इन्हें 25-25 की गिनती करके उल्टा-पुल्टा बांधा जाता है, और कुल 50 की एक गड्डी बनाई जाती है। 100 गड्डियों का 400 रुपये मिलता है। ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासियों का कहना है कि तेंदूपत्ता की तोड़ाई से प्रत्येक मजदूर को प्रतिमाह 8000 से 30,000 हजार रुपये तक की कमाई हो जाती है।

छुरा विकासखंड में प्रमुख तेंदूपत्ता उत्पादक क्षेत्र मलेवा पहाड़ है

प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति द्वारा सावधानी बरती जाती है :

मुंशी बिसाहू राम नेताम का कहना है कि मई-जून महीने में तेंदूपत्ता की गड्डियों को एक सप्ताह तक धूप में सुखाया जाता है। 3 दिन धूप लगने के बाद इसे पल्टी किया जाता है। इसके बाद सूखी गड्डियों पर पानी डाला जाता है और दो दिन के लिए फिर धूप में सुखाया जाता है।

तेंदूपत्ता की तोड़ाई, उपचार और भंडारण में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है। थोड़ी सी भी गलती या लापरवाही के कारण इसकी गुणवत्ता खराब हो सकती है, और यह बीड़ी बनाने के लिए अनुपयुक्त हो सकती है।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा तेंदूपत्ता संग्राहकों एवं उनके परिवार के सदस्यों के लिए कुछ कल्याणकारी योजनाएँ और एक बीमा योजना प्रदान किया जाता है।

योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अपने तेंदूपत्ता कार्ड में 500 गड्डी या उससे अधिक फड़ बेचना होगा, फिर आप इसका लाभ उठा सकते हैं ।

प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति द्वारा उत्तम गुणवत्ता तेंदूपत्ता संग्रहण हेतु सामान्य निर्देश :

1. पत्तियों की गुणवत्ता बहुत अच्छी होनी चाहिए। फटे पत्तों को स्वीकार नहीं किया जाता है।

2. कोमल पत्ते व झाड़ के पत्ते फड़ो पर न लाएं।

3. पत्ते तोड़ने के लिए वृक्षों की शाखाओं को हानि न पहुंचाएं।


छत्तीसगढ़ राज्य में तेंदूपत्ता को हरा सोना माना जाता है। सरकार के इस महत्वाकांक्षी योजना से संग्राहकों (तेंदूपत्ता कार्यकर्ता) को कई तरह के तेंदूपत्ता वनोपज से लाभ मिलता है, जैसे - बीमा, बोनस, छात्रवृत्ति, चरण पादुका आदि।

आप लोगों को पता है कि राज्य के कई जिलों में जैसे ही लॉकडाउन लगा, कई लोग रोजगार के लिए तरस रहे थे। अब तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य जैसे ही शुरू हुआ कई क्षेत्रों के आदिवासी बेरोजगार लोगों को रोजगार मिल गया।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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