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Tejkaran Jade

जानिए आदिवासी गाँव मासुल की अद्भुत कहानी

आदिवासी सदियों से अपने जंगलों तथा ग्रामों में निवास करते आए हैं। स्वाभाविक रूप से उनके पास बताने के लिए अनोखे अनुभव भी बहुत ज्यादा हैं। आदिवासी गाँवों की कोई न कोई इतिहास या उस गाँव से सम्बंधित रोचक घटना जरूर होती है।

मासुल ग्राम का दृश्य

छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के मानपुर विकासखंड से महज 25 किमी की दूरी में मासुल ग्राम स्थित है। गोंडी भाषा में अजगर को मासुल कहा जाता है। गाँव के बुजुर्ग श्री जलशुराम मरकाम जी, वर्तमान गायता (ग्राम प्रमुख) श्री जुगल मरकाम जी एवं एक अन्य बुजुर्ग श्री रामजी मरकाम जी बताते हैं कि, सर्वप्रथम मासुल ग्राम में कोई भूमियार (गाँवबसाने वाला) नहीं था पहली बार वहाँ स्व. श्री मानुराम मरकाम, बालोद जिला से मासुल में खूंटा गाड़ के बैठा (निवास किया) वह पहली पीढ़ी थी, उसके बाद दूसरी पीढ़ी में उनकेदो बच्चे हुए बड़ा पुत्र का नाम हुज्जी तथा दूसरे पुत्र का नाम बाजू था। हुज्जी का पुत्र धनीराम और मानुराम जब इस गाँव में आए तब इस गाँव में 7 परिवार रहते थे जिसमें 6 घर गोंड़ जनजाति के तथा 1 घर यादव में (राऊत) रहते थे। उस समय गाँव में जो भी बच्चा पैदा होता था, आधी रात को अजगर आकर उन बच्चों को खा जाता था, यही कारण है कि धीरे-धीरे वहाँ की जनसंख्या कम होती जा रही थी। सभी गाँव वाले इस घटना से काफ़ी भयभीत और परेशान थे, बताया जाता है कि उसी दौरान एक गुरू बाबा का गाँव में आगमन हुआ और गाँववालों ने बाबा को पूरी बात बताई, उन्होंने सलाह दिया कि लकड़ी के राख को इकठ्ठा करो और ठाकुरदेही (गाँव का प्रमुख देव भगवान) को गूंडो (घेरा) मारो तथा गाँव को भी घेरा मारो उस दिन से झरन निकलना बंद हो गया और गाँव की यह समस्या दूर हो गई।


गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि अपने गाँव से कुछ ही दूरी पर मौजूद गाँव गोटुलमुण्डा से रात के समय कुछ लोग लौट रहे थे, कुछ ने लालटेन पकड़ा हुआ था तो कुछ ने डंडा और झोला, तभी आगे चलने वाले व्यक्ति का पैर एक वस्तु पर पड़ी देखने पर पता चलता है कि वह एक अजगर सर्प है जिसे दीमकों ने खाना शुरू किया है। वह सर्प अभी तक जिंदा भी था, यह देख कुछ लोग डर से अपना सामान छोड़ कर भागने लगे, परन्तु एक बुजुर्ग ने उन्हें रोक कर कहा कि "डरने की कोई बात नहीं" और फ़िर दूध मंगवाकर उस सर्प को दूध पिलाया गया, आगे चलकर यही अजगर देवता कहलाया एवं इसी के नाम पर गाँव का नाम भी मासुल(अजगर) पड़ा। आज भी अजगर देव गाँव वालों को दर्शन देते हैं, एक बार तो इस जिले के कलेक्टर ने भी एक पत्रकार को भेजकर असलियत पता करने के लिए भेजा, उस पत्रकार को भी अजगर देव का दर्शन मिला।

अजगर (मासुल) देव स्थल का दृश्य

पहली बरसात के प्रथम पानी गिरते ही समस्त ग्रामवासी इस देवस्थल पर सेवा अर्जी (प्रार्थना) करते हैं और बताया जाता है कि पूर्व गायता (ग्राम प्रमुख) के द्वारा मासुल (अजगर सर्प) को खाया गया जिससे गायता के परिवार में कई प्रकार की घटना घटने लगी फिर गायता के द्वारा ठाकुरदेही में जाकर पीढ़ा देखा गया तो वहाँ देव शक्ति ने बताया कि तुम सब मेरे देव शक्ति (अजगर सर्प ) को खा रहे हो तो मैं भी खा रहा हूँ, उनको अपनी गलती का एहसास हुआ और देवस्थल पर जाकर माफी के लिए सेवा अर्जी दी गई।


अन्न धन बढ़ाने वाला देव के रूप में आज भी मासुल विख्यात है और आज भी जिस खेत से अजगर सर्प गुजर जाए तो अन्न की उपज अत्यधिक होती है। आज उस देव स्थल पर कोई भी परब (त्योहार) में गुरू बाबा के नाम से भी सेवा अर्जी (प्रार्थना) की जाती है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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