कोयातुर (गोंड आदिवासी) जन सादियों पहले से कोया पुनेम के पुजारी हैं, ये बीहड़, जंगल, पहाड़, पर्वत आदि में निवास करते आ रहे हैं। प्रकृति को देखकर ही आगे बढ़ना एवं जीवन जीने की कला इन्होंने सीखा है। जब लोन (घर) र्नार (गांव) का बसावट नहीं हुआ था तब ये वृक्ष के सहारे रहा करते थे। यही कारण है कि आदिवासी पेड़ों का बहुत अधिक सम्मान करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। ये मानते हैं कि पेड़-पौधों पर इनके पूर्वजों तथा देवी-देवताओं का वास होता है।
ऐसा ही एक पेड़ है महुआ, यह पेड़ गोंडवाना लैण्ड का उष्ण कटिबंधीय पेड़ है, जो मैदानी व पहाड़ी क्षेत्रों के जंगलों में पनपते हैं। इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम मधुका लोगफोलिआ है। यह पेड़ अपने फल तथा फुल के लिए बहुत ही ज्यादा सुप्रसिद्ध है। यह एक सदाबहार पेड़ है। इस पेड़ के फल एवं फूल दोनों का ही उपयोग होता है। कोयतुर लोगों का यह ईरुक मरा कल्प वृक्ष है। कोयतुर जनों के जीवन में इरुक मरा (महुवा वृक्ष) महत्वपूर्ण वृक्ष है इरुक मरा को कोयतुर जन अपनी याया मानते हैं। गोंडी भाषा में याया का अर्थ होता है माँ।
मातृ शक्ति के रुप में इस ईरुक वृक्ष का मान्यता है। कहा जाता है कि जब हज़ारों वर्षों पहले धान, गेहूं, कुटकी, कोदो आदि नहीं होते थे तब आदिवासी लोग इसी महुआ के इरुक लेते थे महुआ के फल-फुल को उपयोग में लाते थे। महुआ वृक्ष को गोडियन लोग आज भी पुज्यनीय मानते हैं। सदियों से चली आ रही परंम्परा को संजोकर रखे हूए है, कोयतुर जनों का ईष्ट, देवी देवता एवं पेन शक्तियां वृक्ष या पहाड-पर्वत पर ही निवास करते हैं। हम जब अपने पर्व त्यौहार को मनाते हैं तो इसी महुआ वृक्ष के पास जाकर सेवा अर्जी करते हैं। कोयतुर जन अपना जतरा, मरमिंग,आदि कार्य में सर्व प्रथम इसी ईरुक मरा (महुवा वृक्ष) का सेवा गोंगो करते हैं।
जतरा नेग - जतरा नेग ऐसा कार्य है जो पिंडी में एक बार किया जाता है। इस नेग में महुआ वृक्ष के नीचे माटी महतारी याया को सत घड़ी में जीवभाव देकर धन्यवाद ज्ञापित किया जाता है।
मरमिंग नेग (विवाह कार्य) :- गोंड आदिवासी, मरमिंग नेग के लिए महुआ वृक्ष के डाली को सम्मानपुर्वक लाकर मंडप में स्थापित कर मरमिंग नेग को सम्पन्न करते है।
कोया पुनेम के धर्म गुरू पहांदी पारी कुमार लिंगों जी ने जब गोत्रवली बनाया तब सभी गोत्र के लोगों को टोटम चिन्ह दिया और उसके साथ-साथ वृक्षों को भी चिन्हांकित किया जिसमें ईरुक मरा भी है जो सभी कोयतुर जनों के लिए पुजनीय व वंदनीय है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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