मनोज कुजूर द्वारा सम्पादित
आप सभी भली-भांति जान रहे होंगे कि, आज भी आदिवासी लोग ज्यादातर जंगलों में ही निर्भर रहते हैं। चाहे वह औषधि हो या अपने जरूरी चीजों को इकट्ठा करना हो। आदिवासी पेड़-पौधे से प्राप्त फल-फूल इकट्ठा करते हैं। साथ ही साथ जंगल से मिलने वाली कंदमूल फल का भी प्रयोग करके जीवन व्यतीत करते हैं और जंगल से प्राप्त बांस का प्रयोग कर विशेष प्रकार के झउहा, टुकनी, सुपा का निर्माण करते हैं। जिसका ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता हैं। आज भी आदिवासी लोग जंगलों में रहते हैं और जंगलों से मिलने वाली सभी प्रकार के जड़ी-बूटी का उपयोग कर अपने स्वास्थ्य को ठीक करते हैं। आप सभी जान रहे हैं कि, जंगलों में ऐसे बहुत से पेड़-पौधे पाए जाते हैं, जो रोगों के निवारण के लिए प्रयोग में लाया जाता है। उसी तरह जंगल में पाए जाने वाला सिनकोना पौधा को गांव क्षेत्रों में कोरिया के नाम से भी जानते हैं। जिससे आदिवासी लोग अपने लिए औषधि तैयार करते हैं।
आइए जानते हैं कोरिया का पौधा कैसा होता है?
कोरिया का पौधा 8 से 10 फीट की होता है। जिसका तना खुरदुरा होता है और पत्ती नुकीली एवं मुलायम होती है। उसके सफेद रंग के फूल होते हैं। कोरिया पेड़ का फूल बहुत ही मनमोहक और खुशबूदार होता है। आदिवासी लोगों का कहना है कि, कोरिया पौधे का फूल को वे सब्जी बनाकर भी खाते हैं। यह कोरिया का पौधा जंगल में आसानी से नहीं मिलती है। अलग-अलग क्षेत्रों में कोरिया को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। अलग-अलग क्षेत्रों में कोरिया पौधे का प्रयोग अलग-अलग रूपों में करते हैं। अन्य जगहों में कोरिया के पौधे का प्रयोग बाड़ी बनाने में करते हैं। क्योंकि, कोरिया का पौधा बहुत ही ज्यादा मजबूत होता है। जिसको पार कर जानवर फसल को नष्ट नहीं कर पाते हैं, जिससे फसल सुरक्षित रहता है। इसका प्रयोग ज्यादातर गांवों में ही होता है। क्योंकि, अक्सर आपने देखा होगा कि, गांव में ही पेड़-पौधों से प्राप्त लकड़ियां को इक्कठा करते हैं। अब तो इस तरह के पेड़-पौधे को लाने के लिए हमें दूसरे जंगलों की ओर भी रुख करना पड़ता है, जो बहुत ही ज्यादा मुश्किल भरा होता है। कुछ दशकों से ऐसा हो गया है कि, अब तो जंगलों में भी पेड़-पौधों की कमी देखने को मिलने लगी है। जिससे आदिवासियों को सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ रही है। क्योंकि, आप सभी जानते ही हैं कि, आदिवासी पेड़-पौधे पर ही सबसे ज्यादा निर्भर होते हैं। जंगल आदिवासियों का आय का साधन भी है, जिसके द्वारा वे अपना जीवन-यापन कर रहे हैं।
आइए जाने आदिवासी लोग कोरिया पौधे का उपयोग किस प्रकार करते हैं
आदिवासी लोग आज भी जंगलों में निवास करते हैं। कोरिया पौधे के जड़ से आदिवासी लोग जड़ी-बूटी बना कर मलेरिया रोग को दूर करने के लिए उपयोग करते हैं। आइए जाने ग्राम लाफा के निवासी बिशनाथ जी जिनका उम्र 65 वर्ष है जो एक किसान है। उनका कहना है कि, जो सिनकोना पौधा है, इससे आदिवासी लोग औषधि के रूप में प्रयोग करते हैं। अपने रोगों का निवारण करते हैं। कोरिया का जो लाल छाल होता है। वह विभिन्न रोगों के लिए काम आता है।
उन्होंने भिन्न भिन्न औषधि पौधों के बारे में बताया जो सिर्फ जंगलों में ही पाया जाता है। यह जो कोरिया पौधा है, वह सिर्फ जंगल में ही पाया जाता है। जो ये विभिन्न इस प्रकार के जो औषधि होते हैं, उन सभी को सिर्फ आदिवासी ही पहचान सकते हैं। क्योंकि आदिवासीयों और पेड़ पौधों के बीच मित्रता का संबंध होता है। वे लोग बचपन से पेड़ पौधों के बीच अपना जीवन-यापन करते हैं। जिससे उन्हें सभी प्रकार के जड़ी-बूटी के बारे में जानकारी होती है। वे अपना छोटे-मोटे रोगों का इलाज चिकित्सालय में ना करा कर, जड़ी-बूटी से ही अपने रोगों का निवारण करने में सक्षम होते हैं।
आइए जाने इतनी सारी औषधियों के बारे में उन्हें कहां से जानकारी मिली है।
हमने उनसे और भी प्रशन पूछे कि उन्हें औषधीय पौधे की इतनी सारी जानकारी कैसे हुई? तो उन्होंने हमें बताया कि जब वे छोटे थे, तो उनके दादा जी जंगल जाया करते थे और औषधि पौधा से जड़ी-बूटी तैयार करते थे। उनके दादाजी सभी तरह के औषधि को तैयार करते थे। इनके साथ ही साथ संजय मरकाम भी सभी तरह के औषधि तैयार करना सीख लिए।
आइए जाने किस तरह से जड़ी-बूटी से औषधि तैयार करते हैं।
कोरिया के जड़ को पानी में अच्छी तरह से धो लेते हैं। उसके बाद उस जड़ को पीसते हैं। इस पीसे हुए कोरिया के जड़ को पानी में मिलाते हैं। फिर कोरिया पौधे की जड़ को छलनी में छानकर बिना कुछ खाए खाली पेट पानी को पीते हैं। लगातार तीन दिन तक ऐसे ही जड़ को पीसकर प्रयोग में लाते हैं। जो बचा हुआ खादा (पेस्ट) को सिर में लगाते हैं। आदिवासीयों का कहना है कि, खादा को सिर में लगाने से सिर दर्द खत्म हो जाता है। इस तरह के जड़ी बूटी का प्रयोग संजय कुमार ने स्वयं के लिए किया है। गांव के लोगों के लिए भी इस प्रकार दवा तैयार करते हैं। जो लोंगों के लिए बहुत ही लाभकारी साबित हुआ है।
आइए जाने इस पौधे का प्रयोग जड़ी-बूटी बनाने के साथ-साथ आदिवासी और कौन-कौन से रूप में प्रयोग करते हैं।
आदिवासी लोग इस पेड़ की लकड़ी से अपने घरों के लिए कंडी तैयार करते हैं। जो बहुत ज्यादा मजबूत होता है। जिसका उपयोग घर का छत बनाने के लिए किया जाता है। आदिवासी लोग बड़े कोरिया वृक्ष से दरवाजा, खाट, टेबल, जैसी कई उपयोगी चीजें बनाते हैं। आदिवासियों का कहना है कि, बड़ा कोरिया का वृक्ष बहुत कम ही मिलता है। क्योंकि, छोटे कोरिया पेड़ से बहुत सी चीजों का निर्माण बहुत पहले से ही कर लेते हैं। जिससे कोरिया का पौधा विशाल पेड़ के रूप में तब्दील नहीं हो पाता। जिससे आदिवासियों को छोटे ही पौधों का प्रयोग करना पड़ता है। पहले तो इतने घने जंगल होते थे कि, कोरिया का पेट इकट्ठा करना इतनी मुश्किल नहीं था। लेकिन, आज के दौर में ऐसा हो गया है कि, कोरिया का पौधा भी बड़ी मुश्किल से जंगलों में मिलने लगा है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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