मनोज कुजूर द्वारा सम्पादित
प्रकृति में उगने वाली पेड़-पौधों का क्रियाकलाप प्रकृति के अनुसार संचालित होती है। चाहे वह कंटीला पेड़ अथवा पौधे के रूप में छोटी झाड़ी ही क्यों न हो। इसका एक अच्छा उदारहण लाजवंती का पौधा है। इसके अनोखे गुण के कारण इसे छुई-मुई के नाम से भी जानते हैं। प्रकृति ने मनुष्य को अपने उपयोग के लिए औषधीय वनस्पति और पेड़-पौधे इनके गुणों के अनुसार उपलब्ध कराए हैं। परिस्थिति तंत्र को बनाये रखने के लिए प्रकृती और मनुष्यों में सामंजस्य बहुत आवश्यक है। धरती में ऐसे अनेक वनस्पति, पेड़-पौधे उगते हैं, जिनका मनुष्य अपनी दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं। जब वर्षा होती है, तो धरती में अनेक प्रकार के वनस्पतियों के साथ-साथ औषधीय पौधे भी उग आते हैं। इसी कड़ी में एक ऐसा पौधा भी उगता है, जो बहुत ही अनोखा है और इसे छुई-मुई कहते हैं। जिससे लगभग सभी ग्रामीण परिचित होते हैं और इसे ग्रामीण अंचल में लाजवंती कहते हैं।
इस पौधे का वैज्ञानिक नाम मिमोसा पुडिका है। यह एक तरह का बारहमासी पौधा होता है। जो पुरे साल हरा-भरा रहता है। इस पौधे की प्रवृत्ति शर्मिली होती है। इसलिए इसे छुने पर यह पौधा सिकुड़ जाता है। लाजवंती एक प्रकार का संवेदनशील पौधा है, जिसकी पतियां किसी के भी सम्पर्क में या स्पर्श पाते ही या तेज फूंक मारने पर सिकुड़ कर बंद हो जाती हैं एवं कुछ देर बाद स्वयं ही खुल जाती हैं। यह छुई-मुई आयुर्वेद में एक औषधीय पौधे के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। इसके पौधे कांटेदार और जमीन से करीब 2 से 3 फीट तक ऊंचाई तक के होते हैं। यह गहरे हरे रंग की होती है तथा यह इमली की पत्तियों के समान दिखाई देती है।
आदिवासी लाजवंती पौधे का बहुत सारे कामों में उपयोग में लाते हैं। वे इनके पत्तियों को अनेक प्रकार के समस्याओं से निजात पाने में प्रयोग करते हैं। हमारे बैगा जनजाति के परसदा खुर्द गांव के निवासी, जिनका नाम भीखम नेताम है, इस लाजवंती का उपयोग आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के तौर पर करते हैं। ये वनस्पति से प्राप्त होने वाले विभिन्न जड़ी-बूटियों के जानकार भी हैं। एक समय ऐसा भी था, जब लोग दूर-दूर से आकर इनसे ईलाज कराते थे। किन्तु, अब भीखम नेताम जी बुजुर्ग होने के कारण जंगलों से जड़ी-बूटी लाने में असमर्थ हैं। इसलिए अपने आस-पास पाए जाने वाले पौधों से ही लोगों का इलाज कर रहे हैं। अब उनके पास सीमित किस्म के जड़ी-बूटी होने के कारण आयुर्वेद दवाई बनाने में कुछ वर्षों में गिरावट आई है। क्योंकी, बुजुर्ग होने तथा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने के कारण दुर-दराज नहीं जा पाते हैं। भीखम नेताम जी बताते हैं, वे पैर के समस्याओं से घिरे हुए हैं। जिसके कारण इनके पैर के निचले भाग में सुजन रहता है।
भीखम नेताम अपने पैर के समस्याओं से निजात पाने के लिए कई प्रकार के चिकित्सीय उपचार ले चुके हैं। अंग्रेजी दवाइयों का भी सेवन कर चुके हैं। किन्तु, उन्हें कोई राहत नही मिला। लेकिन, अब वे स्वयं प्रकृति से मिलने वाली छुई-मुई के पत्तों को लाकर उनकी पत्तियों को तोडकर पीस कर, पानी में घोलकर पी रहे हैं। जिससे उनका स्वास्थ्य ठीक होने लगा है। अब वे पहले से अच्छा महसूस कर रहे हैं।
भीखम नेताम जी से बात करने से मालूम हुआ कि, पैरों के जोड़ों में दर्द होने पर छुई-मुई के पत्तों के उपयोग से दर्द भी दूर होने लगा है। विस्तार से बातें करने पर भीखम नेताम जी बताते हैं कि, और भी कई समस्याओं से निजात पाने में छूई-मुई के पत्तों का उपयोग समस्याओं से निजात पाने में कर सकते हैं।
छुई-मुई के पत्तों को पीसकर चूर्ण बना कर या इसका लेप बनाकर दर्द होने वाली जगहों पर लगाने से दर्द में राहत मिलता है और इसे उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से शरीर के जोड़ों के दर्द में फायदा मिलता है। इसको खाली पेट सेवन करने से और भी अच्छा परिणाम मिलता है।
छुई-मुई एक ऐसा पौधा है, जिसके फूल, पत्ती तथा बीज से अलग-अलग तरीके के बिमारियों की दवाईयां तैयार की जा सकती हैं। आदिवासी इन पत्तियों के रस को बवासीर के घाव पर सीधे लेपित करते हैं। इनके अनुसार यह रस घाव को सूखाने का कार्य करता है। साथ ही अक्सर होने वाले खून के बहाव को रोकने में मदद करता है। इसका उपयोग मुत्र सम्बंधी रोगों के इलाज़ के लिए भी उपयोग में लाया जाता है और महिलाओं की मासिक धर्म के समय पेट दर्द को कम करने लिए तथा तनाव से राहत पाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। मधुमेह रोगियों के लिए भी लाजवंती काफी लाभदायक हो सकता है। देखा जाये तो लाजवंती का पौधा कुल मिलकर एक गुणकारी पौधा है, जो हमारे लिए काफी लाभकारी है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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