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Writer's pictureTumlesh Neti

लोकेश्वरी नेताम:- आदिवासियों की शेरनी के रूप में जाने जाती है यह समाजसेविका

पिछले महीने पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया और महिलाओं के प्रति सम्मान जताया गया। ऐसी ही एक महिला हमारे छत्तीसगढ़ के इस आदिवासी बहुल क्षेत्र गरियाबंद में भी है जिन्हें आजकल लोग बहुत ही सम्मानपूर्वक देखते हैं। हम बात कर रहें हैं, छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के कचना धुरवा की माटी में जन्मी दीदी लोकेश्वरी नेताम का, जिन्हें छत्तीसगढ़ के आदिवासी शेरनी के नाम से जाना जाता है। इन्होंने अपने समाज के हक के लिए अपनी आवाज़ जिला से लेकर राजधानी रायपुर तक में बुलंद किया है। गरियाबंद जिले का ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहाँ लोकेश्वरी नेताम खुद जाकर आदिवासी परिवारों से ना मिली हों, चाहे वह नक्सलियों का गढ़ कहे जाने वाले आमामोरा की पहाड़ियां हो या फिर शहरी इलाके में बसे कोई आदिवासी गाँव सभी जगहों में जाकर आदिवासियों के हाल-चाल, उनकी तकलीफ़ सुनने वाली लोकेश्वरी नेताम जी आदिवासी समाज के हक के लिए लड़ाई करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी हैं।

ट्रेक्टर से रायपुर जाती लोकेश्वरी नेताम जी

लोकेश्वर सिंह नेताम जी जब युवावस्था में थी तब से ही अपने समाज के लिए कुछ करने का जज्बा जुनून उन पर था। उन्होंने हमेशा से ही अपने घर के बड़े बुजुर्गों को अपने समाज के लिए कुछ करते, उनकी आवाज़ उठाते देखा है, तब से उन्हें भी अपने समाज के लिए कुछ करने की इच्छा थी लेकिन वह एक महिला थी इसलिए उनके लिए ये राह आसान नहीं थी, फिर भी लोकेश्वरी नेताम ने अपनी युवावस्था में ही अपने समाज को आगे बढ़ाने के लिए, उनकी आवाज़ को उठाने के लिए बहुत सारे प्रयास किए। जिनसे उन्हें धीरे-धीरे उनके आदिवासी समाज से भी भरपूर सहयोग मिलने लगा और आज यही कारण है कि वे आदिवासी शेरनी के नाम के नाम से जानी जाती हैं। जहाँ पर आदिवासियों का हक़ मारा जाता है, वहाँ जाकर वे आदिवासियों का हक़ वापिस कराती आईं हैं। किसान भाइयों के लिए भी नेताम जी ने एक बार गरियाबंद से ट्रैक्टर में रायपुर राजधानी के राज्य भवन तक कूच कर गई थीं, इनके पीछे गरियाबंद जिले के सभी किसान भाइयों ने ट्रैक्टर की पूरी लाइन लगा दी थी। इससे यही पता चलता है कि समाज के लोगों का भी उनके प्रति बहुत लगाव है।


कुछ दिन पहले उदंती अभ्यारण, जो गरियाबंद जिले और धमतरी जिले के बीच में है। उसके आसपास के आदिवासी क्षेत्रों के आदिवासियों को उनकी ज़मीन से हटाया जा रहा था। इस ज़मीन को आदिवासियों द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया है करके अधिकारियों दावा किया जा रहा था। जब इसकी खबर नेताम जी को मिला तो उन्होंने पहले आवदेन-निवेदन किए परंतु जब उनके निवेदनों को अनसुना कर दिया गया तब उन्होंने एक भीषण आंदोलन का आव्हान किए, और उनके पीछे अनेकों आदिवासी साथियों ने खड़ा होकर फॉरेस्ट ऑफिस की घेराबंदी कर दिए।

जन आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाती लोकेश्वरी जी

इसी तरह आदिवासी क्षेत्रों में विकास के लिए कहीं यदि पुलिया, सड़क आदि की ज़रूरत हो तो उन सुविधाओं की पूर्ति के लिए भी नेताम जी हमेशा तत्पर रहती हैं। उनके इन्हीं सब कार्यों की वजह से आदिवासी समुदाय के लोग भी उनका बहुत ही ज्यादा सहयोग करते हैं। किसी भी राजनीतिक पार्टी से ना होकर भी अपने समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए आज लोकेश्वरी जी जिला पंचायत में सभापति के पद पर हैं। लोकेश्वरी नेताम जी का कहना है कि "मुझे आज अपने आदिवासी समाज के लोगों ने इस पद पर लाया है और अपने समाज को आगे बढ़ाने के लिए पूरा सहयोग दूँगी, अपने समाज को जागरूक मेरी प्राथमिकता है। मैं अपने समाज से हूँ न कि मेरे से मेरा समाज है इसलिए मैं कभी भी किसी भी पार्टी के साथ जुड़कर काम नहीं करूंगी क्योंकि पार्टी ने मुझे नहीं बनाया मुझे मेरे समाज ने बनाया है, इसलिए मैं हमेशा से समाज के लिए ही खड़ी रहूंगी और समाज को साथ लेकर चलूंगी। जो भी मेरे समाज के हक़ को छीनेगा तो मैं उसके ख़िलाफ़ ज़रूर बोलूंगी।"


लोकेश्वरी नेताम के पीछे पूरा आदिवासी समाज है, सिर्फ़ जिला गरियाबंद ही नही बल्कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी महिला प्रकोष्ठ भी उनके साथ हैं, यह देखते हुए छत्तीसगढ़ के बड़े-बड़े राजनीतिक पार्टियां उन्हें अपने पार्टी में शामिल करना चाहती हैं। यह पार्टियाँ अनेकों भेंट लेकर उनके पास जाती हैं लेकिन लोकेश्वरी नेताम जी अपने समाज को छोड़कर किसी भी पार्टी में शामिल नहीं होना चाहती हैं। वे समाजसेवा के बलबूते पर ही समाज में बदलाव लाना चाहती हैं।


आज के दौर में एक आदिवासी समुदाय की महिला का अपने समाज के हक़ के लिए आवाज उठाती हुई दिखाई देना और ज़रूरत पड़ने पर राजनैतिक मंच पर अपने समाज का प्रतिनिधित्व करना यह बहुत बड़ी बात है। लोकेश्वरी नेताम जी युवाओं के लिए उदाहरणस्वरूप हैं, ऐसी अनेक महिला समाजसेवियों को सिर्फ़ आदिवासी समुदायों में ही नहीं बल्कि पूरे देश को ज़रूरत है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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