'हो' जनजाति के लोग विभिन्न प्रकार के पर्व त्योहार मनाते हैं। जिसमें से मागे पर्व, बा: पर्व, हेरो पोरोब, जोमनामा पर्व, बबा हेर मुउट, बताउलि इत्यादि प्रमुख हैं। ये सभी त्योहार हमारे 'हो' जनजाति के द्वारा बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इतने सारे पर्वों में मागे पर्व सबसे बड़ा पर्व एवं अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए इसे बहुत ही शानदार तरीके से एवं धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार कोल्हान प्रमण्डल (पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम), इसके अलावा राँची, बंगाल में खड़गपुर, मेचेदा, मेदिनीपुर, ओडिशा के क्योंझर, भुवनेश्वर, मयूरभंज, राउरकेला, सम्बलपुर, और असम में भी प्रचलित है।
मागे का अर्थ है 'स्त्री तुम ही हो'। मागे पर्व, मानव के उत्पत्ति यानी सृष्टि की रचना का पर्व है। यह त्योहार फसलों के कटने तथा खेत खलिहान के कार्यों को समाप्त करने के पश्चात मनाया जाता है। हो समुदाय के मान्यता अनुसार जब ईश्वर ने सृष्टि की रचना की तब अन्य जीव जंतुओं के साथ ही प्रथम मानव लुकू और लुकुमी की भी उत्पत्ति की, हम सब उन्हीं की संतान हैं। मागे का शाब्दिक अर्थ ही होता है "माँ"। इस शब्द से स्त्री शक्ति का बोध होता है। माँ के बिना ना सृष्टि की रचना हो सकती है और ना ही वंश वृद्धि हो सकती है। जननी बनने का अनमोल वरदान एक स्त्री जाति को ही मिला है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह पर्व एक स्त्री, नारी, जननी को समर्पित पर्व है। इस लिए इसे “स्त्री तुम ही हो” भी कहा जाता है।
हो समुदाय के मान्यतानुसार ईश्वर ने लुकु, लुकूमी को अलग-अलग रूपों में दर्शन देकर धरती के अनुरूप ढलने एवं अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए उनमें स्त्री पुरुष का बोध करवाया। उन दोनों के बीच हुए घटनाक्रम को ही आज हम पर्व के रूप में मनाते आ रहे हैं।
कहीं-कहीं पर मागे पर्व को चुपके से मनाया जाता है। मतलब दिउरी (पूजा करने वाला/पुजारी) चुपके से पूजा कर देता है, ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि उस गाँव में मागे (जय जय कार) नहीं किया जाता है। पूजा के बाद नाच-गान सामान्य रूप से होता है। इस पर्व में देशाउली स्थान पर दिउरी और सहायक दिउरी के द्वारा पूजा किया जाता है। कुछ-कुछ गाँवों में दिउरी, सहायक दिउरी, दिउरी एरा (पुजारी की पत्नी) के साथ डिंडे कोवा होन (कुंवारा लड़का) डिंडे कुई होन (कुंवारी लड़की) पूजा में बैठते हैं। मागे पर्व में लगने वाले सामानों में रम्बा (बिरी) को कुछ गाँवों में कुंवारी लड़की पिसती (रिड) है और कुछ गाँव में कुंवारा लड़का नदी में धोता (चपि) है।
मागे पर्व 8 दिनों का होता है, उसमें से 'ओतेइलि' को मुख्य दिन माना जाता है। इस दिन नई हंडी में हड़िया, दिउरी के घर लाया जाता है उसके बाद उसी हड़िया से गउमारा, हेए: सकम, गुरि: पोरोब, मरां मागे, जतरा पर्व, हर मागेय पर्व मनाया जाता है। ये हड़िया वही लोग दिउरी के घर ले जाते हैं जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गाँव के पूजा में शामिल रहते हैं। मागे पर्व के पूजा स्थान को देशाउलि या जयरा कहा जाता है।
इस पर्व का मुख्य उद्देश्य धान को खलियान में खत्म करने के बाद अपने रिश्तेदारों के साथ खुशी का इजहार करना होता है। इसलिए हर गाँव में अलग-अलग समय पर मागे पर्व मनाया जाता है, ताकि सभी लोग एक दूसरे से मिल सकें। इस पर्व में रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है और सभी साथ मिलकर त्योहार को मनाते हैं। मागे पर्व के नाच गान के स्थान को सुसुन आकड़ा कहा जाता है। सभी मेहमान, रिश्तेदार ढोल, नगाड़ा, मांदर, बांसुरी इत्यादि के धुन में नाच गान कर पर्व को मनाते हैं।
लेखक परिचय:- चक्रधरपुर, झारखंड के रहने वाले, रविन्द्र गिलुआ इस वक़्त अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर कर रहे हैं, भारत स्काउट्स एवं गाइड्स में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हैं। लिखने तथा फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी करने के शौकीन रविन्द्र जी समाजसेवा के लिए भी हमेशा आगे रहते हैं। वे 'Donate Blood' वेबसाइट के प्रधान समन्वयक भी हैं।
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