शहद में वे सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के पाचन क्रियाओं को सुचारु रखने के लिये आवश्यक हैं। मानव शरीर के लिए शहद अमृत समान है, इसका उपयोग हम आहार के साथ-साथ औषधि के रूप में भी कर सकते हैं।
शहद एक ऐसा आहार है जो शरीर के विकास एवं पाचन क्रियाओं को सुचारू रुप से चलाए रखने में सहायक होता है। यह रोग-नाशक उत्तम भोज्य पदार्थ है।
आयुर्वेद में बच्चों के लिये, माँ के दूध के बाद शहद को ही सर्वाधिक पोषक तत्व बताया गया है। शीतकाल में सोते समय ठंडे दूध के साथ उपयोग करने पर यह शरीर को मोटा एवं सुडौल बनाता है। ठीक इसके विपरीत, सुबह शौच से पहले ग्लास भर पानी में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। इसके अलावा शहद को हल्के गर्म दूध,दही,गर्म पानी में नीबू के रस के साथ, चावल, दलिया, केला, खीर, सलाद आदि के साथ अलग-अलग समय में उपयोग किया जा सकता है।
शहद के कुछ औषिधिए गुण
अदरक के रस में शहद मिलाकर चाटने पर यह खांस तथा श्वास रोग को दूर करता है।
अडूसे के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से भी यह खाँसी को दूर करता है।
कांस की जड़ के रस में शहद मिलाकर सूंघने पर हिचकी चली जाती है।
कपूर, कजरी, पुष्कर मूल तथा आंवले का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने पर श्वास रोग को दूर करता है।
बैगन के भर्ते में शहद मिलाकर सेवन करने से तुरंत नींद आ जाती है।
पके आम के रस में शहद मिलाकर पीने से पीलिया रोग दूर हो जाता है।
गोखुरु का चूर्ण शहद के साथ लेने से पथरी रोग दूर होता है।
कमजोर जिगर वाले बच्चे के भोजन में शहद मिलाकर देने से भोजन आसानी से पच जाता है।
पके केले में शहद भरकर खाने से प्रदर रोग दूर होता है।
लकवा रोगी के लिये शहद सर्वोत्तम औषधि है।
बहुत छोटे बच्चे को सीमित मात्रा में शहद चटाने पर उसके आहार की पूर्ति होती है।
चक्कर आने पर चार-चार घंटे पर पानी में शहद की थोड़ी मात्रा मिलाकर पीना चाहिए।
उल्टी होने पर शहद और पुदीने के रस को मिलाकर पीने पर उल्टी से राहत मिलती है।
एक निश्चित अनुपात में घी, दही, एवं शहद के मिश्रण को मधु पर्क की संज्ञा दी गयी है यह अत्यंत बलिष्ठ, पवित्र एवं विशेष लाभकारी होता है।
शहद का उपयोग अलग अलग पदार्थों के साथ उपयोग करने से यह विभिन्न प्रभाव दर्शाता है। अतः इसका उपयोग करने से पहले चिकित्सक या वैद्य आदि की सलाह लेना उत्तम होगा।
अगर छोटा बच्चा गलती से आग से जल जाए तो, असली शहद जली हुई जगह पर लेप की तरह लगाने से जलन तुरन्त शांत हो जाती है।
अगर जलने से शरीर पर कहीं सफेद हो जाय तो त्रिपला (आंवला,हर्रा ,बहेरा) पानी में पीसकर उस जगह पर लगाने से कुछ दिन में असली रंग आ जायेगा। और अगर शरीर में सफेद दाग पड़ जाये तो जामुन की पत्तियां पीसकर उस जगह पर लगाने से दाग मिट जाते हैं।
जानते हैं इसके अलावा कुछ और भी औषधियों के बारे में।
कनेर के पत्ते या फूल को पानी मे धो कर, इसके पानी को आधे किलो के जैतून तेल में डालकर उसे गर्म करें। जब पानी उबल कर भाप बन जाये और सिर्फ़ तेल बचे तब उसमें एक चौथाई मोम डालकर उतार लें। अब इस तेल को शरीर में हो रही किसी भी तरह की खुजली पर लगाने से खुजली तुरंत ठीक हो जाएगी।
कनेर की जड़ को पानी मे उबालकर उसमे राई का तेल डालकर उबालें। जब पानी उबल जाए और उसमें मात्र तेल रह जाए, तब उसको उतार कर छान लेवें। इस तेल को चर्म रोगों पर मलने से चर्म रोग आसानी से ठीक हो जाता है।
प्रति दिन मेथी की सब्जी का सेवन करने से वायु कफ़ एवं बवासीर की बीमारी ठीक होती है।
लोकल वैद्यों की सलाह लेकर इन औषधियों के द्वारा हम अपने घरों में ही आसानी से खतरनाक बीमारियों का इलाज सरलता से कर सकते हैं। इससे हॉस्पिटल के बड़े खर्चों से बचा जा सकता है।
आदिवासी इलाकों में शहद प्राकृतिक रूप से मिल जाता है, गाँवों तथा जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय को मधुमक्खी के छत्तों से शहद निकालना अच्छे से आता है। जंगलों से मिले शहद एकदम सौ प्रतिशत शुद्ध होते हैं, बाज़ार में मिलने वाले शहद के मुकाबले ये ज्यादा प्रभावी होते हैं।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog samaj sevi sanstha और Misereor का सहयोग है l
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